तब की बात
काव्य साहित्य | कविता संजीव बख्शी30 Apr 2012
तब की बात
कुछ और थी
एक कंकर को
हथेली पर
रख
उसने जब
खाई
पृथ्वी की कसम
सबने
उसकी हथेली पर
पृथ्वी को
रखी देखा था।
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