तेरे बरसाती वादे
काव्य साहित्य | कविता संजय कुमार26 Jun 2014
सूखने न दिया
तेरे बरसाती वादों ने
सागर को उम्मीदों के
ये बात अलग के
आँखें रूखी रहीं
लब सूखे।
तू आज भी
टपकता है
मेरे पक्के संकल्पों
की मोटी छत से
और मैं हथेलियों में
भर लेने का
अक्सर करता हूँ
प्रयास
ताकि चुल्लू भर ही सही
तुम में डूब जाऊँ
भीग जाऊँ
पर तुम तो ठहरे
खुश्क नीर
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