तेरी अदाएँ
काव्य साहित्य | कविता महेन्द्र देवांगन माटी15 Jun 2020 (अंक: 158, द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)
काली काली ज़ुल्फ़ों को क्यूँ,
नागिन सी लहराती हो।
चंचल नयना मस्त अदाएँ,
क्यों हरदम इठलाती हो॥
लाल गुलाबी होंठ शराबी,
देख नशा चढ़ जाता है।
फूलों सी ख़ुशबू को पाकर,
भौंरा गाने गाता है।
कली गुलाब सी कोमल काया,
धूप लगे मुरझाती हो।
चंचल नयना मस्त अदाएँ,
क्यों हरदम इठलाती हो॥
पाँवों की पायल से तेरी,
धुन संगीत निकलता है।
सुन आवाज़ें ताल मारकर,
आशिक़ रोज़ थिरकता है॥
कोयल जैसा कंठ तुम्हारा,
गीत मधुर तुम गाती हो।
चंचल नयना मस्त अदाएँ,
क्यों हरदम इठलाती हो॥
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
लघुकथा
कविता
दोहे
बाल साहित्य कविता
किशोर साहित्य कविता
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं