तुम्हारी मुस्कान
काव्य साहित्य | कविता इला प्रसाद18 May 2012
तुम मुस्कुरा दो
तो मन पर छाया कोहरा
हट जाए।...
वरना बादल घिरते रहे हैं लगातार
जाने कब से
संशय के
अस्वीकृति के
और उससे उपजी
उदासी के!
तुम्हारी मुस्कान
इस सबके बीच
घिरे अंधियारे आसमान में
दामिनी की द्युति सी,
अंधेरे कमरे में
दीपक की लौ सी
चमकती है,
झरती है धार धार
बारिश की बूँदों सी
और मन,
नहा धोकर
स्वच्छ हो आता है!..
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