उदासी
काव्य साहित्य | कविता डॉ. शिवांगी श्रीवास्तव1 Nov 2020
उदासी अपने आप में
हज़ारों सवाल समेटे रहती है
कुछ के जवाब हम जानते हैं
कुछ के बस ढूँढ़ते रहते हैं।
उदास होने के भी अपने कारण है
कभी तो सीधे सुलझे से
कभी अनबूझ पहेली से
कभी तो उल्टे पुल्टे से
कभी किसी नटखट सहेली से।
ढलती शाम सी आती है
सुन्दर दिन के बाद
हज़ार सपनों के बीच
टूटे मन सी जैसे किसी
प्रश्न चिह्न सी।
उदासी ना हो तो जीने का मज़ा
भी कहाँ आएगा?
ख़ुशियों भरे समय का
मोल कैसे कोई जान पायेगा
उदासी यूँ तो मन को भारी कर जाती है
पर ये ना हो तो
सुख की अनुभूति
अतृप्त सी लगती है।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
"पहर को “पिघलना” नहीं सिखाया तुमने
कविता | पूनम चन्द्रा ’मनु’सदियों से एक करवट ही बैठा है ... बस बर्फ…
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं
{{user_name}} {{date_added}}
{{comment}}