उदासी
काव्य साहित्य | कविता डॉ. शिवांगी श्रीवास्तव1 Nov 2020 (अंक: 168, प्रथम, 2020 में प्रकाशित)
उदासी अपने आप में
हज़ारों सवाल समेटे रहती है
कुछ के जवाब हम जानते हैं
कुछ के बस ढूँढ़ते रहते हैं।
उदास होने के भी अपने कारण है
कभी तो सीधे सुलझे से
कभी अनबूझ पहेली से
कभी तो उल्टे पुल्टे से
कभी किसी नटखट सहेली से।
ढलती शाम सी आती है
सुन्दर दिन के बाद
हज़ार सपनों के बीच
टूटे मन सी जैसे किसी
प्रश्न चिह्न सी।
उदासी ना हो तो जीने का मज़ा
भी कहाँ आएगा?
ख़ुशियों भरे समय का
मोल कैसे कोई जान पायेगा
उदासी यूँ तो मन को भारी कर जाती है
पर ये ना हो तो
सुख की अनुभूति
अतृप्त सी लगती है।
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