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काव्य साहित्य | कविता डॉ. कैलाश वाजपेयी23 Apr 2008
एक साथ इतनी ज्ञान राशि
देखकर
रो पड़ा मेरा मन
पहले पहल जिस जंगल में
जन्मा होगा
यह काव्य
यह चिंतन
संज्ञान, सार, भूमिका
वहाँ अब रेत ही रेत है।
उम्र के इस पायदान पर
क्यों रोया मैं?
क्या हर किताब, वध किए वृक्ष का
प्रेत है इसलिए
या फिर यह सोचकर
शब्दों के आक्षितिज फैले
साम्राज्य में
मैं रिरियायकर मर जाऊँगा अन्ततः
उस बच्चे की तरह
जिसके पूर्वज
वाग्येयकार थे
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