कटे पेड़ के पास
काव्य साहित्य | कविता डॉ. कैलाश वाजपेयी23 Apr 2008
तुम्हारा तना ले गए लोग
छोड़ गए मिट्टी से जुड़ा ठूँठ
पानी की, धरती में
बन्द बहती है चादर
ओढ़ कर
जड़ गाना गाएगी
जल्दी ही घाव पर
कोंपल आ जाएगी
कई काफ़िले नर्म रुइए
गुज़रेंगे आसमान से
वर्ष पर वर्ष पर
तुम फिर पूरे संपन्न
झूमोगे
शाखों के सरगम पर
पक्षी
आसावरी गाएँगे
सिर कटे धड़ के साथ यह नहीं होता
काश आदमी पेड़ होता
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