अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

योगिनी भाग - 1

भाग - 1

अल्मोड़ा जनपद में चीड़ के वृक्षों से आच्छादित ऊँची पहाड़ी के ढलान पर बसे मानिला गाँव में मानिला /माँ अनिला/ के दो मंदिर हैं- मानिला मल्ला और मानिला तल्ला। आज ग्रामों के नगरीकरण की मार से मानिला गॉव कुछ कुछ एक मैदानी कस्बे जैसा लगने लगा है- अहर्निश बढ़ती आबादी, दिन प्रतिदिन कटते वृक्ष, ग्राम में पानी की ऊँची टंकियाँ, सड़कों के किनारे खड़े होते बिजली के खम्भे, हाथों में मोबाइल और घरों में टी० वी०, तथा रामनगर से आने वाली मुख्य सड़क पर लगी चार पहियों के वाहनों की कतार सभी कुछ इस तपोमय भूमि के उच्छृंखल स्वरूप धारण कर लेने की कहानी कह रहे हैं। मुख्य सड़क के किनारे स्थित होने के कारण मानिला तल्ला मंदिर अपनी नैसर्गिक आभा त्यागकर एक मैदानी मंदिर के व्यापारिक स्वरूप को ओढ़ चुका है, परंतु पर्वत शिखर पर स्थित मानिला मल्ला मंदिर अपनी विशिष्ट स्थिति के कारण आज भी अपनी प्राकृतिक कमनीयता पूर्ववत संजोये हुए है। यद्यपि ग्राम मानिला से इस मंदिर को जाने वाली पहाड़ी पर एक डामर की सड़क बन गई है, तथापि सड़क के दोनों ओर लगे हुए वृक्षों और झाड़ियों से कोई छेड़छाड़ नहीं की गई है और वहाँ न तो कोई निर्माण कार्य हुआ है और न कोई दूकान खुली है। मानिला मल्ला मंदिर आज भी पूर्ववत चीड़ और साल के ऊँचे ऊँचे वृक्षों से ढका हुआ है।

लगभग एक दशक पूर्व जब मानिला मल्ला मंदिर के वयोवृद्ध स्वामी के गोलोकवासी हो जाने के उपरांत भुवनचंद्र वहाँ योगी स्वरूप में आकर बस गये थे और फिर कुछ समय पश्चात मीता उनकी संगिनी एवं योगिनी बनकर आ गई थीं, तब से मंदिर की ख्याति देश विदेश में दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ती रही है। योगिनी के व्यक्तित्व में अहर्निश निखार आ रहा था और उनकी ख्याति चहुंदिश प्रस्फुटित हो रही थी। योगिनी का गहन ज्ञान, ओजस्वी वाणी, एवं देदीप्यमान व्यक्तित्व बरबस लोगों को इस मंदिर पर खींच लाता था। वर्ष दो वर्ष में ही सुदूर देशों के लोग मानिला के मंदिर को मानिला की योगिनी के मंदिर से जानने लगे थे।

 “योगिनी जी! योर रिसाइटेशन आफ दी शांतिपाठ इज शियर एंचांटमेंट ऐंड दैट आफ  गायत्री मंत्रा ब्रिंग्स दी सब्लाइम आफ वन्स सोल एलाइव। आई फाइंड फार मोर मैग्नेटिज्म इन यू दैन ह्वाट आई हैड हर्ड अबाउट यू।” /योगिनी जी! आप का शांति पाठ मुग्ध करने वाला है एवं आप द्वारा गायत्री मंत्र का पाठ आत्मा के सूक्ष्म तत्व को जाग्रत कर देता है। मैंने आप के विषय में जितना सुना था, उससे कई गुना अधिक चुम्बकत्व आप के व्यक्तित्व में है।/

             प्रातःकालीन योगाभ्यास के उपरांत एक अमेरिकन, जो कल सायं ही मंदिर पर आया था, योगिनी मीता से कह रहा था। इस पैंतीस वर्षीय अमेरिकन ने अपना नाम माइक बताया था। वह बड़ा बातूनी था और कल से ही मानिला मंदिर के प्राकृतिक, शांत, एवं भक्तिभाव जगाने वाले वातावरण का गुणगान करते थक नहीं रहा था। प्रातःकालीन योगसाधना में उसने बड़े मनोयोग से भाग लिया था और तदोपरांत योगिनी के सामने जाकर अपने हृदय के उद्‌गार व्यक्त किये थे। योगिनी ने उसे आपादमस्तक देखा, उनके होंठों पर एक मंद स्मित उभरी और उन्होंने कहा था, “थैंक्स।”

योगी, जो योगिनी के बगल में अपने आसन पर प्रणायाम कर रहे थे, ने आँख उठाकर एक क्षण दोनों को देखा। उस क्षण उनके मन में ईर्ष्या का लावा सा फूटा जिसे डन्होंने सागर-मंथन से निकले गरल सम गले में गटक लिया। फिर उन्होंने भी माइक की ओर एक क्षीण मुस्कान फेंकी। योगिनी ने तिरछी निगाहों से उन क्षणों में योगी के मन में हुए सागर-मंथन, फिर योगी द्वारा उससे उत्पन्न गरल को गटक जाने और फिर क्षीण स्मित के साथ माइक को देखने की प्रक्रिया को देखा। माइक द्वारा प्रशंसा किये जाने से योगिनी के मन में जो प्रफुल्ल्ता आई थी, वह तिरोहित हो गई और उनका मन ऐसे सिकुड़ गया जैसे ठंडी बयार का आनंद लेने अपने खोल से बाहर निकला शंख का कीड़ा किसी अवांछित वस्तु के सामने आ जाने पर एकाएक अपने खोल में सिकुड़ जाता है।

                                                           

हेमंत चायवाला, भुवनचंद्र और मीता के प्रेम प्रसून के उदयन एवं प्रस्फुटन का आद्योपांत साक्षी रहा था- उन दोनों के योगी स्वरूप घारण करने के पूर्व मिलन, फिर अंतर्धान होने, एवं योगी तथा योगिनी के रुप में अवतरित होकर मानिला मंदिर में रम जाने की कोई घटना उसके लिये रहस्य नहीं है। वह आज तक उनके प्रेम की थाह लेते रहने की उत्कंठा से अपने को मुक्त नहीं कर पाया था। अतः वह प्रायः ब्राह्मवेला अथवा संध्याकाल में ऐसे समय मानिला मंदिर आता रहा है जब योगी एवं योगिनी एकांत विहार हेतु वन वृक्षों की आड़ में घूमने निकलते थे। उन्हें कबूतर के जोड़े की तरह गुटरगूँ करते हुए छिपकर देखने में हेमंत केा रूमानी आनंद मिलता था। उसने अनेक बार योगिनी को योगी से अनवरत बोलते हुए एवं योगी को एकटक सुनते हुए देखा था। वह जिस दिन उन दोनों के प्रेम को जितना अधिक परवान चढ़ा हुआ पाता था, उस दिन उतना ही अधिक प्रफुल्ल-चित्त रहता था। परंतु इस शाश्वत सत्य को कौन टाल सका है कि जब चंद्रमा अपनी पूर्णता को प्राप्त करता है, तभी उसमें ग्रहण लगता है- विगत कुछ वर्षों से हेमंत को योगी एवं योगिनी के एकांत विहार को लुकछिपकर देखते हुए कभी कभी ऐसा लगता था कि योगी कुछ कुछ अंतर्मुखी हाता जा रहा है। यद्यपि योगिनी के नेत्रों में वह योगी के प्रति पहले जैसा ही आकुल आकर्षण देखता, परंतु उसे लगता था कि योगी का मन उस आकर्षण की प्रतिक्रियास्वरूप पूर्व की भाँति उद्वेलित न होकर कहीं खोया खोया सा रहता है। हेमंत जिस दिन योगी को इस प्रकार खोया खोया सा देखता, उस दिन उसका स्वयं का मन भी खोया खोया सा रहता था।

प्रारम्भिक दिनों में सभी लोग केवल योगी को प्राथमिकता देते थे, और योगिनी को केवल उनकी शिष्या के रूप में देखते थे; परंतु शनैः शनैः मानिलावासियों एवं सुदूर प्रदेशों से आने वाले दर्शनार्थियों को यह अनुभव होने लगा था कि योगी पढ़े लिखे नहीं हैं एवं उनका ज्ञान मात्र अनुभवजन्य एवं सीमित है जब कि योगिनी का ज्ञान अविरल स्रोतों से अर्जित है एवं उसका विस्तार हो रहा है। तब से अप्रयत्न ही सबकी श्रद्धा का भाव योगिनी पर सीमित होने लगा था। प्रारम्भ में योगी को यह अच्छा लगा था कि उनकी प्रेमिका की प्रतिष्ठा एवं ख्याति का विस्तार हो रहा था, परंतु जब दर्शनार्थी योगी के समक्ष ही उनकी उपस्थिति को नकारते हुए योगिनी के प्रति श्रद्धावनत होने लगे, तो उनका पुरुष-अहम् इस स्थिति को अंगीकार करने से इन्कार करने लगा था। इस मनःस्थिति को छिपाने के प्रयत्न में वह कम मुखर होते गये थे और दर्शनार्थी उनकी ओर और कम ध्यान देने लगे थे। फिर अपने अंतर्द्वंद्व को नियंत्रित रखने के प्रयत्न में वह अपना अधिक समय दर्शनार्थियों से मिलने के बजाय मंदिर के प्रबंधन में देने लगे थे। योगिनी योगी के मन की गहराइयों में एक कुशल गोताखोर के समान प्रवेश कर उसकी थाह लेने में इतनी निपुण थी कि योगी अपनी मुस्कराहट में अपनी अकुलाहट को कितना भी छिपाना चाहे, योगिनी उसे पलमात्र में भाँप कर स्वयं भी छटपटाने लगती थी। योगी के मन की दशा का  कारण वह  समझने लगी थी। वह यह जानती भी थी कि पुरुष का मन चाहे कितना भी विशाल क्यों न हो, वह अपनी महिला संगिनी को अपने से ऊपर बढ़ते हुए निःस्पृह एवं ईर्ष्यारहित भाव से देखने में अक्षम होता है और योगी के मन की वही दशा है। दर्शनार्थियों में योगिनी की मान-थाप का जितना विस्तार हो रहा था, योगी का मन उतना ही संकुचित होता जा रहा था। योगी को जब भी लगता कि कोई व्यक्ति उनके स्थान पर योगिनी को प्राथमिकता दे रहा है, तो न चाहते हुए भी उनके मन मे सागर मंथन प्रारम्भ हो जाता, जो उनके द्वारा गरलपान करने पर ही रुकता था। फिर मंथन चाहे थम जाये, परंतु गरल अपना प्रभाव योगी के संत्रास के रूप में दिखाता रहता था। योगिनी उनके इस संत्रास को निरखती, समझती एवं अपने को और अधिक समर्पित कर उन्हें समझाने का प्रयत्न करती थी, परंतु योगी का चोटिल मन अपनी असामान्य स्थिति पर नियंत्रण करने के प्रयत्न में और अधिक घायल हो जाता था। फिर योगिनी को ऐसा लगने लगा कि उसके सद्प्रयत्नों का प्रभाव योगी के मन पर उल्टा पड़ रहा है तो उसने योगी की हीनभावना जनित इस प्रतिक्रिया के प्रति सचेष्ट तटस्थता ओढ़ ली थी, और उस प्रकार की स्थिति उत्पन्न होने पर उससे बच निकलने का प्रयत्न करने लगती थी। इसमें योगी को योगिनी का अपने प्रति प्रेम का भाव छीजता दिखता था।

उन्हीं दिनों दो माह तक योगसाधना सीखने माइक वहाँ आया था और मंदिर परिसर में ही रहने लगा था। वह योगिनी से सचमुच प्रभावित हुआ था और उसने अमेरिकनों के प्रत्येक अच्छी वस्तु की खुलकर प्रशंसा करने वाले स्वभाव की भाँति अपनी उन्मुक्त प्रशंसा योगिनी के समक्ष प्रकट कर दी थी। उसके हृदय की गहराई से निकली प्रशंसा को योगी पचा नहीं पाया था और यह बात योगिनी ने भी भाँप ली थी। योगिनी भी माइक के खुले व्यक्तित्व से प्रभावित हुए बिना न रह सकी थी। वातावरण में सहजता लाने के उद्देश्य से योगिनी ने माइक से पूछ लिया,

 “माइक! ह्वाट डू यू डू इन दी यूनाइटंड स्टेट्स?”

माइक ने सहज भाव से उत्तर दिया,

 “आई ऐम ए रिसर्च स्कालर इन सोशल स्टडीज़ इन दी यूनिवर्सिटी आफ शिकागो. आई हैव बीन एसाइन्ड दी टास्क टु एसर्टेन ह्वाई विमेन आर स्टिल मीकली एक्सेप्टिंग दी डोमीनेंट रोल आफ मेन- पार्टीकुलर्ली इन लेस डेवेलप्ड सोसाइटीज?

योगी के अकारण रुष्ट रहने के कारण मीता कुछ समय से अवसादग्रस्त सी रहने लगी थी- महिलाओं के शोषण की बात ने उसकी हृत्तंत्री को इस प्रकार झंकृत कर दिया जैसे ध्वनि के दो स्रोतों की आवृत्ति एक हो जाने पर उनका सम्मिलित तरंगदैर्ध्य /एम्प्लीच्यूड/ कई गुना बढ़ जाता है। अनुज ने भी सदैव डोमीनेंट रोल निभाने के बावजूद उसके साथ धोखा किया था जिससे अंततः मीता योगिनी बन गई थी। अब योगी अपनी कमियों केा दूर करने के बजाय उस पर अपनी पुरुष-अहम् से जनित अवांछनीय प्रतिक्रिया को थोपने का प्रयन कर रहा था।  फिर योगी के अहम् को अंगीकार करके भी उसे सामान्य बनाये रखने के उसके समस्त प्रयत्न योगी के मन पर उल्टा प्रभाव ही डाल रहे थे। मीता को माइक की शोध का विषय बड़ा रुचिकर लगा और उसने उस पर विस्तार से माइक से पूछना प्रारम्भ कर दिया। माइक ने बताया कि अमेरिका के विमेंस लिबरेशन मूवमेंट की सदस्याओं के साक्षात्कार से शोध प्रारम्भ कर वह इथियोपिया, सऊदी अरेबिया, पाकिस्तान होता हुआ भारत आया है और मैदानी गर्मी सहन न होने पर यहाँ की ख्याति सुनकर मानिला चला आया है। यहाँ पहाड़ी क्षेत्र में महिलाओं की स्थिति पर शोध का अच्छा अवसर भी मिल गया है।

अंग्रेजी भाषा का ज्ञान न होने के कारण योगी उन दोनों की बात स्पष्ट समझ नहीं पा रहा था, परंतु माइक एवं योगिनी की मुद्राओं से उसकी समझ में जो भी आ रहा था, उससे योगी तिलमिला रहा था। योगिनी यह सोचकर चुप रही कि माइक की बात का अर्थ बताने से योगी और तिलमिला जायेगा, परंतु आज वह योगी की अनुचित प्रतिक्रियाओं पर अपने मन को दबा नहीं पा रही थी। आज योगिनी के मन में क्षोभ भी उत्पन्न हो रहा था।

“ह्वेयर डू यू लिव इन दी स्टेट्स माइक?”

दूसरी सायं जब योगिनी मंदिर के परिसर के बाहर फूलों की क्यारियों की देखभाल में लगी थी, तभी माइक टहलते हुए उधर आ गया था। ’गुड ईवनिंग‘ के औपचारिक आदान प्रदान के उपरांत माइक योगिनी को अपने दक्ष हाथों से पौधों को सहलाते सम्हालते देख रहा था। माइक द्वारा इस प्रकार चुपचाप देखे जाने पर योगिनी को कुछ असहजता की अनुभूति हो रही थी, अतः उसने माइक से बातचीत प्रारम्भ करने हेतु उपरोक्त प्रश्न किया था।

“आई लिव इन शिकागो नियर दीवान मार्केट।”

दीवान शब्द सुनकर योगिनी को उत्सुकता हुई और उसने कहा,

“दीवान इज ऐन इंडियन नेम। इज इट देयर इन अमेरिका टू?”

माइक प्रसन्न होकर बोला,

 “यू हैव राइट्ली गेस्ड दैट। इट इज ऐन इंडियन नेम। अर्लियर इट वाज डीवन मार्केट, बट ग्रेजुअली  इंडियन्स ऐंड पाकिस्तानीज पर्चेज्ड ईच ऐंड एवरी शाप आफ इट ऐंड स्टार्टेड कौलिंग इट दीवान मार्केट। आई मेक मोस्ट आफ माई पर्चेजेज फराम दिस मार्केट ओन्ली ऐंड हैव क्वाइट ए फयू फ्रेंड्स एमंग इंडियन्स।”

फिर अपनी बात में योगिनी को रूचि आते देखकर आगे बोला,

“आई पार्टीकुलर्ली एंज्वाय ईटिंग दोशा-इडली इन ’गाँधी इंडियन रेस्ट्रां‘ ऐंड इट्स हेड बेयरर अनुज हैज बिकम माई फ्रेंड। इन हिज कम्पनी आई हैव लर्टं एनफ हिंदी टु स्पीक।......... लेकिन मैं हिंडी रुक रुक कर बोल पाता हूँ।”

हेड बेयरर का नाम सुनकर योगिनी के हृदय का एक तार झंकृत हुआ था परंतु तभी योगी, जो मंदिर के बाहर आकर चबूतरे पर खड़े होकर दोनों को देखने लगा था, का तीक्ष्ण स्वर सुनाई दिया,

“मीता, ज़रा अंदर आना।”

योगिनी इस स्वर से कुछ चौंक सी गई और उसे लगा कि योगी उन दोनों की जासूसी कर रहा है- अतः वह अंदर को चल तो दी परंतु अवज्ञा दर्शाने वाले मंथर कदमों के साथ। योगी भी उस मंथर चाल का अर्थ समझ रहा था और उसका मन उद्विग्न हो रहा था। उस दिन योगी एवं योगिनी में अन्य कोई बात नहीं हुई।

योगिनी का मन आशान्वित था कि योगी किसी न किसी समय उससे माइक के विषय में बात छेड़ेगा और तब सम्भवतः उसके द्वारा स्थिति को स्पष्ट कर देने पर योगी की निराधार आशंकायें  बहुत कुछ समाप्त हो जायेंगी। योगी को और अधिक भड़क जाने से बचाने के उद्देश्य से योगिनी ने अगले तीन दिन तक सप्रयत्न माइक के समक्ष अकेले में पड़ने से अपने को बचाया भी, परंतु योगी बस अन्यमनस्क रहा, उसने मजबूरी में ही कोई बात की। योगी अब सायंकाल वन भ्रमण हेतु भी नहीं निकलता था, वरन् सायं होने से पूर्व ही वह ध्यानावस्थित हो जाता था। यह असहज स्थिति योगिनी को असह्य लगने लगी थी कि चौथी सायं माइक ने आकर योगिनी से कहा,

“योगिनी जी, क्या आप मेरे साथ फौरेस्ट में थोड़ा घूमना पसंद करेंगी?”

योगिनी के मन की दशा ऐसी हो रही कि उसके मुँह से अनायास ’यस‘ निकल गया और वह बिना योगी को कुछ बताये माइक के साथ वन में निकल पड़ी। ध्यानावस्थित होते हुए भी योगी उसके बाहर जाते प्रत्येक कदम को ऐसे अनुभव कर रहा था जैसे वे उसके हृदय के ऊपर से होकर गुजर रहे हों। योगिनी के कदम भी ऐसे उठ रहे थे जैसे मन-मन भर के हों, परंतु वह उन्हें रोक भी नहीं पा रही थी।

ऊँचे ऊँचे वृक्षों के नीचे आते ही माइक ने योगिनी से कहा,

“मुझे लगता है कि उस दिन जब मै ’गाँधी इंडियन रेस्ट्रां‘ की बात कर रहा था तब आप मुझसे कुछ पूछना चाहतीं थी, परंतु योगी जी द्वारा आप को बुला लेने पर बात अधूरी रह गई थी।”

योगिनी को लगा कि माइक तो जैसे दूसरे का मन पढ़ लेने वाला जादूगर है। उससे कोई बात छिपाना बेकार है। अतः उसने स्पष्ट कहा,

“माइक, तुम उस हेड बेयरर का नाम क्या बता रहे थे?”

माइक बोला,

 “अरे वह अनुज।..........ही ऐपियर्स टु बी ए हाइली एजूकेटेड गाई ...... उसने बताया था कि उसके पास इंडिया में सौफटवेयर की अच्छी सी जौब थी, और वह इंडिया गवर्नमेंट द्वारा अमेरिका भेजा गया था। वहाँ आकर वह किसी छिछोरी लड़की के प्यार के चक्कर में फँस कर वहीं रुक गया। वह लड़की एक दिन उसके एपार्टमेंट से उसके पासपोर्ट सहित सब सामान लेकर गायब हो गई। चूँकि वह इंडियन और अमेरिकन सरकार की अनुमति के बिना अवैध रुक गया था और अब अपना पासपोर्ट भी खो चुका था, इसलिये इंडिया वापस भी न जा सका। तब  ’गाँधी इंडियन रेस्टोरेंट‘ के ओनर ने मेहरबानी करके उसे अपने रेस्ट्रां में चुपचाप वेटर की जौब दे दी थी। वर्क परमिट न हाने के कारण वह और कहीं तो जौब पा नहीं सकता है। अतः तब से वहीं काम कर रहा है और अब रेस्ट्रां का सबसे सीनियर वेटर बन गया है।”

मीता समझ गई कि यह अनुज और कोई दूसरा नहीं वरन् उसका ही अनुज है। उसकी दुर्दशा की बात सुनकर मीता का हृदय भर आया, परंतु साथ ही अनुज द्वारा धोखा दिये जाने की बात यादकर वह ऐसी द्विविधा में पड़ गई कि उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह हँसे या रोये। आगे वह माइक की बातों पर केवल हूँ-हाँ करती रही, कुछ सुन-समझ नहीं पाई। उस रात मीता का मन इतना उद्विग्न रहा कि पल भर को सो नहीं पाई। जब शरीर एवं मन क्लांत होकर शांत हो गये तो वह दिवास्वप्न सा देखने लगी। उसे लगा कि वह पूर्णतः अंधकारमय एवं शांत आकाश में तैर रही है एवं पूर्ण एकांत चाहती है। तभी अनुज  उसके समक्ष आकर उससे क्षमा माँगने का उपक्रम करने लगता है और वह जब उससे बचने का प्रयत्न करती है तो योगी उसके समक्ष आकर उससे अपने मन का दुखड़ा रोने लगता है। मीता घबराकर अपने कान बंद कर लेती है और सुदूर आकाश में उड़ जाने का प्रयत्न करती है परंतु उसके हाथ-पैर अचानक बोझिल हो जाते हैं और वह अपने स्थान पर बंध सी जाती है। अपनी असमर्थता से खीझकर उसकी श्वांसे तीव्रता से चलने लगती हैं और वह अपने पलंग पर घबराकर उठ बैठती है। उठ कर बैठने पर उसे लगा कि कितना अच्छा होता यदि वह दोनों पुरुषों के संसार से कहीं दूर जाकर बस जाती।

माइक अगले दिन सायं होते ही पुनः उसी समय उसे टहलने हेतु बुलाने आया। मीता ने कोई उत्तर देने से पहले योगी की ओर देखा परंतु योगी ने पूर्ववत घ्यानमुद्रा धारण कर ली थी। योगी के इस व्यवहार से मीता का पारा चढ़ गया और फिर वह पीछे देखे बिना माइक के साथ टहलने चल दी थी। आगे यह सब कुछ तीनों की दिनचर्या का अंग बन गया था और सायं होते होते मीता साथ टहलने जाने हेतु माइक की प्रतीक्षा करने लगती थी। माइक न केवल वाकपटु था वरन् आधुनिक विषयों का अच्छा ज्ञाता भी था। वह योगिनी से अनेक आधुनिक विषयों जैसे ’जैव-विज्ञान की नई खोजें और मानव के जीवन एवं अस्तित्व पर उनका प्रभाव‘, ’ब्रह्मांड के तारासमूहों, तारों, ग्रहों आदि की नवीन खोजें एवं मानव के वहाँ कालोनियाँ बनाकर बसने के प्रयत्न‘, ’ऐंटीमैटर एवं ऐंटी-वर्ल्ड को जानने की दिशा में प्रगति‘, लैंगिक स्वातंत्र्य को मानवीय अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के रूप में स्थापित करने का प्रयत्न‘ एवं ’पश्चिम में स्त्री-पुरुष में वर्चस्व का संघर्ष‘ आदि पर विस्तार से बोलता था और योगिनी बड़े मनोयोग से उसे सुनती थी। माइक के विभिन्न विषयों के गहन ज्ञान ने योगिनी को अत्यंत प्रभावित किया था। उसकी बातें सुनकर योगिनी को लगता था कि मानिला की पहाड़ियों की गोद में यदि उसने प्रकृति की निकटता का भरपूर आस्वादन किया है, तो ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में मानव द्वारा उत्तरोत्तर लगाई जाने वाली छलांगों के रोमांच से वह वंचित भी रही है।

बातों बातों में एक दिन माइक मुस्कराते हुए बोला था,

“यू नो योगिनी, आई विल नौट बी सर्पराइज्ड इफ मेन मे सून बिकम रिडंडेंट आन दिस अर्थ।”

योगिनी माइक को प्रश्नवाचक निगाह से देखने लगी थी, तो माइक आगे कहने लगा था,

 “आप जानतीं होंगी कि स्त्री के एग-सेल्स में केवल XX क्रोमोज़ोम्स होते हैं और पुरुष के स्पर्म में XY क्रोमोजोम्स होते हैं। स्पर्म के एग से मिलन पर यदि XX क्रोमोजोम्स पहले मिल जाते हैं तो लड़की और यदि XY क्रोमोज़ोम्स मिल जाते हैं तो लड़का पैदा होता है। आक्सफर्ड यूनिवर्सिटी के डा. ब्रायन सायक्स, जो डा. डी. एन. ए. के नाम से प्रसिद्ध हैं, का मत है कि जब स्त्रियों के एक X क्रोमोज़ोम्स में कोई म्यूटेशन /प्रतिकूल परिवर्तन/ होता है तो दूसरे X क्रोमोज़ोम्स के डी. एन. ए. के सम्फ में आकर वह उसे सुधार लेता है, परंतु पुरुष में Y क्रोमोज़ोम्स के अकेला होने के कारण उसे वह सुविधा उपलब्ध नहीं है। अतः पुरुष का Y क्रोमोज़ोम्स लगातार कमज़ोर होता जा रहा है और इस प्रकार लगभग १,२५,००० वर्ष में इस धरा से पुरुषों का अस्तित्व समाप्त होना तय है।......”

योगिनी को अपनी ओर अवाक देखते हुए माइक फिर बोलने लगा था,

 “परंतु अब वैज्ञानिकों ने स्त्री के बोन-मैरो से स्पर्म-सेल बनाने में सफलता प्राप्त कर ली है। इससे अब गर्भ धारण हेतु स्त्रियों को पुरुष संसर्ग की आवश्यकता समाप्त हो गई है। स्त्रियों के बोन-मैरो में केवल XX क्रोमोज़ोम्स होते हैं अतः उससे बने स्पर्म सेल से केवल स्त्रियों का पैदा करना सम्भव है। अतः यदि स्त्रियाँ चाहें तो केवल स्त्रियों के बोन मैरो से बच्चे पैदा करके बहुत जल्दी इस संसार से पुरुष का अस्तित्व समाप्त कर सकतीं हैं।....”  

माइक ने पुनः योगिनी केा गौर से देखा और कहने लगा,

“और पश्चिमी देशों में स्त्रियों की कुछ इंस्टीट्यूशन्स ने इस हेतु अभियान भी छेड़ दिया है कि पुरुषों को संसार से समाप्त कर दिया जावे। इन इंस्टीट्यूशन्स की सदस्यायें स्त्रियों में विपरीतलिंगता पर समलैंगिकता की श्रेष्ठता स्थापित करने के अभियान में भी जुटी हुई हैं। उनके विचार से पुरुष के स्त्रियों पर वर्चस्व केा समाप्त करने का सबसे कारगर उपाय पुरुष के अस्त्तिव को समूल नाश कर देना ही है। अमेरिका का विमेंस लिबरेशन मूवमेंट भी इस प्रयत्न में लगा हुआ है।”

पुरुषविहीन समाज का विचार योगिनी को अटपटा तो लगा था, परंतु सर्वथा नवीन एवं विचारोत्तेजक भी लगा था। उसे काफी समय से लग रहा था कि नारी पुरुष को चाहे जितना भी समर्पण दे, कभी न कभी और किसी न किसी भाँति वह पुरुष द्वारा ठगी अवश्य जायेगी; नैसर्गिक प्रवृत्तियों के वशीभूत होकर पुरुष अपने स्ववर्चस्व की इच्छा एवं बहुल-प्रेम की कामना पर नियंत्रण नहीं रख पायेगा और केवल एक का होकर नहीं रह सकेगा। अनुज के प्रति उसके समर्पण में क्या कमी थी अथवा योगी के लिये अपने भूत एवं वर्तमान को होम देने में उसने कौन सी कसर छोड़ी थी, परंतु किसी न किसी बहाने दोनों ही उससे दूर हो गये थे। यद्यपि योगिनी पुरुषविहीन समाज के विचार से सहमत नहीं थी, तथापि उसके मन में यदा कदा यह विचार अवश्य कौंध जाता था कि यदि इस संसार में पुरुष न होते तो उनके द्वारा दिये जाने वाले घात नारियों को न सहने पड़ते।

योगिनी को गम्भीर सोच में डूबे देखकर माइक बोला,

 “आज के संसार एवं उसके भविष्य का वास्तविक स्वरूप अमेरिका चलकर ही देखा जा सकता है। आप मेरी वापसी पर मेरे साथ चलें तो आप का वहाँ के समाज में दिल खोलकर स्वागत होगा। आप का पासपोर्ट एवं  वीसा मैं जल्दी ही बनवा दूँगा।”

उस सायं योगिनी ने माइक के प्रस्ताव का कोई सीधा उत्तर नहीं दिया था। रात्रि में वह तरह तरह के विचारों में डूबी रही थी। वह आश्चर्य में पड़कर सोचती कि क्या सचमुच ऐसा संसार सम्भव है जिसमें पौरुषेय अहम् न हो, स्त्रियों की पुरुष पर पराधीनता न हो, एवं पुरुषों के संसार की भाँति मनुष्य मनुष्य में मारकाट न हो? आज उसे अपने उस पति को बैयरा के रूप में अपनी आँखों से देखने की उत्कंठा भी जाग्रत हो रही थी, जो अपने हाथ से लेकर पानी भी नहीं पीता था। दूसरी सायं योगिनी ने माइक से अमेरिका चलने की हामी भर दी और माइक उससे पासपोर्ट व वीसा के फार्म भरवाने के बाद उन्हें लेकर दिल्ली चला गया। एक माह पश्चात लौटने पर माइक ने योगिनी को बताया कि अगले सोमवार को अमेरिकन एयरलाइंस की फलाइट से दिल्ली से शिकागो चलना है। योगिनी ने जब यह बात योगी को बताई, तो योगी ने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की, बस ऐसी मुद्रा बनाकर योगिनी को देखता रहा था जैसे पहले से बताई हुई बात के दुहराये जाने पर कोई ’अच्छा‘ कह रहा हो।

- क्रमशः

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

......गिलहरी
|

सारे बच्चों से आगे न दौड़ो तो आँखों के सामने…

...और सत्संग चलता रहा
|

"संत सतगुरु इस धरती पर भगवान हैं। वे…

 जिज्ञासा
|

सुबह-सुबह अख़बार खोलते ही निधन वाले कालम…

 बेशर्म
|

थियेटर से बाहर निकलते ही, पूर्णिमा की नज़र…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

नज़्म

हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी

कविता

स्मृति लेख

हास्य-व्यंग्य कविता

सामाजिक आलेख

कहानी

बाल साहित्य कहानी

व्यक्ति चित्र

पुस्तक समीक्षा

आप-बीती

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं