अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

स्टेंडर्ड औपरेटिंग प्रोसीजर

केंद्र ने देश में शांति-व्यवस्था भंग होने के विभिन्न प्रकरणों में की गई कार्यवाही का अध्ययन कराया, तो उनमें एक ‘स्टेंडर्ड औपरेटिंग प्रोसीजर (एस.ओ.पी.)’ पाया। यह भी पाया कि यह प्रोसीजर अनेक प्रांतों में विगत 2-3 दशक से बड़ी कड़ाई से लागू किया जा रहा था। उत्तर प्रदेश में यह प्रोसीजर 25 वर्ष पूर्व लागू हो गया था, जब इलाहाबाद उच्च न्यायालय के वकीलों ने मुख्य न्यायाधीश के चैम्बर में घुसकर तोड़-फोड़ की थी। इस प्रकरण में ख़बर उड़ गई थी कि मुख्य न्यायाधीश केंद्र को लिखने वाले हैं कि राज्य सरकार संविधान-सम्मत चल पाने में अक्षम है। अतः आनन-फानन में आई.जी. ज़ोन, इलाहाबाद को निलम्बित कर दिया गया था। फिर सभी पक्ष पूर्णतः संतुष्ट हो गये थे और अपराध में संलिप्त वकीलों के विरुद्ध कार्यवाही से किसी को कोई मतलब नहीं रह गया था। 

 इस स्टेंडर्ड औपरेटिंग प्रोसीजर में निम्नलिखित सात पायदान पाये गये हैं:

  1. हिंसा एवं विध्वंस को रोकने हेतु अतिरिक्त पुलिस बल की तैनाती

  2. अराजक तत्वों द्वारा पुलिस की अवज्ञा एवं विध्वंस करने पर पुलिस द्वारा बल प्रयोग

  3. अधिकांश मीडिया द्वारा उस बल प्रयोग का एकपक्षीय प्रस्तुतिकरण

  4. कतिपय स्वयम्भू विद्वानों, निपट अज्ञानियों एवं विपक्षियों द्वारा पुलिस कार्यवाही की निंदा और पुलिस का दानवीकरण

  5. पीड़ितों (कभी-कभी विध्वंसकों को भी) को मुआविज़ा

  6. न्यायिक जाँच अथवा सीबीआई जाँच का आदेश

  7. पुलिस कार्यवाही में कोई न कोई खोट (जो पुलिस के प्रत्येक कार्य में कहीं न कहीं अवश्य निकाला जा सकता है) निकालकर पुलिस वालों का स्थानांतरण, निलम्बन

 केंद्र द्वारा विभिन्न क्षेत्रों के विद्वानों से इस प्रोसीजर में सुधार सम्बंधी सुझाव माँगे गये। उन सब का निष्कर्ष यह था कि शांति-व्यवस्था स्थापित करने का यह स्टेंडर्ड औपरेटिंग प्रोसीजर समय नष्ट करने वाला, ख़र्चीला एवं अराजक तत्वों को विध्वंस के अवसर प्रदान करने वाला है। अधिकांश विद्वानों का सुझाव था कि यदि हम इस प्रोसीजर के सात सोपानों के क्रम को उलट दें, तो अनेक झंझटों, विध्वंस एवं अपव्यय से बचा जा सकता है। 

हम विंदु 7 की कार्यवाही अर्थात्‌ पुलिस वालों का निलम्बन सर्वप्रथम कर दें, फिर विंदु 6 की कार्यवाही अर्थात्‌ सीबीआई या न्यायिक जाँच का आदेश दे दें और फिर विंदु 5 की कार्यवाही सीबीआई पीड़ितों को मुआविज़ा दे दें, तो विंदु 1, 2, 3 और 4 की कार्यवाही की आवश्यकता ही नहीं रहेगी। सभी पक्षों की माँगें प्रारम्भ में ही पूर्ण हो जायेंगी और असंतुष्टि का कोई कारण ही नहीं रहेगा—‘न रहेगा बाँस और न बजेगी . . .

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

'हैप्पी बर्थ डे'
|

"बड़ा शोर सुनते थे पहलू में दिल का …

60 साल का नौजवान
|

रामावतर और मैं लगभग एक ही उम्र के थे। मैंने…

 (ब)जट : यमला पगला दीवाना
|

प्रतिवर्ष संसद में आम बजट पेश किया जाता…

 एनजीओ का शौक़
|

इस समय दीन-दुनिया में एक शौक़ चल रहा है,…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

नज़्म

हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी

कविता

स्मृति लेख

हास्य-व्यंग्य कविता

सामाजिक आलेख

कहानी

बाल साहित्य कहानी

व्यक्ति चित्र

पुस्तक समीक्षा

आप-बीती

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं