अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

योगिनी भाग - 2

भाग - 2

अमेरिकन एयरलाइंस की फलाइट सोमवार की रात के सवा बारह बजे दिल्ली से सीधी शिकागो के लिये चली थी और उसी दिन शिकागो में वहाँ के प्रातः सवा पाँच बजे पहुँची थी। मीता को विंडो सीट मिली थी और माइक उसके साथ की बीच की सीट पर बैठा था। यद्यपि अभी तक योगिनी सप्रयत्न योगी को अपनी स्मृति के वितान से बाहर किये रही थी, परंतु हवाई जहाज के उड़ चुकने के पश्चात मीता को अकेले रह गये भुवनचंद्र की याद आने लगी थी। अतः माइक द्वारा कोई बातचीत छेड़े जाने के प्रयत्न पर मीता नींद मे होने का बहाना बनाकर चुप हो जाती थी। माइक भी मीता को अन्यमनस्क पाकर चुप हो गया था। पूरे रास्ते घनी रात्रि बनी रहने के कारण मीता को नीचे कुछ विशेष दिखाई नहीं दिया था, बस कहीं कहीं बादल घनी रुई के गद्दे के समान बिछे हुए दिख जाते थे। परंतु हवाई जहाज जब ऐटलांटिक महासागर में ग्रीनलैंड के ऊपर से जा रहा था, तो वहाँ तीन बजे रात का समय होने के बावजूद उत्तरी ध्रुव से निकटता के कारण खूब उजाला था। ग्रीनलैंड का दृश्य देखकर मीता आँखें बंद न रख सकी थी। धरती पर सर्वत्र सफेदी की चादर तनी थी, कहीं एक इंच भी जगह ग्रीन /हरी/ नहीं थी।  बर्फ के पहाड़ जमे हुए थे- कहीं ऊँचे कहीं नीचे; न कहीं कोई हरियाली थी और न कहीं कोई जीवन का चिन्ह। इतने लम्बे चौड़े बर्फीले सुनसान की मीता ने कभी कल्पना भी नहीं की थी। जब ग्रीनलैंड का भूभाग समाप्त होने लगा तब पहले से भी अनोखा दृश्य दिखाई दिया- भूभाग से कटकर अनेकों  पर्वताकार हिमखंड समुद्र में जाकर आइसबर्ग का रुप धारण कर बह रहे थे। भूभाग एवं समुद्र के बीच सैकड़ों मील तक हिम के पर्वत एवं नाले बह रहे थे। मीता को इन दृश्यों में लिप्त पाकर माइक ने प्रश्न किया था,

 “आप जानतीं हैं कि पूरे ग्रीनलैंड में ग्रीन कुछ भी नहीं है, फिर भी इसे ग्रीनलैंड क्यों कहते हैं।”

मीता द्वारा उत्तर जानने की उत्सुकता दिखाने पर वह आगे कहने लगा था,

“सबसे पहले कुछ यूरोपियन्स आइसलैंड पहुँचे थे, जो उन्हें बहुत हरा भरा और सुंदर लगा था तथा उन्होंने उस पूरे द्वीप पर अपना आधिपत्य स्थापित करने का मन बना लिया था। फिर वे वहाँ से चलकर ग्रीनलैंड गये और इसे पूर्णतः बर्फ से आच्छादित पाकर उल्टे मुँह लौट आये थे। उन्होंने पूरे आइसलैंड पर अपना आधिपत्य बनाये रखने के उद्देश्य से यूरोप वापस लौटने पर हरियाली से भरे द्वीप का नाम आइसलैंड और बर्फ से ढंके द्वीप का नाम ग्रीनलैंड बता दिया था। इसके कारण बहुत दिनों तक अन्य यूरोपीय आइसलैंड जाने से कतराते रहे थे और सीधे ग्रीनलैंड को चल देते थे जहाँ से बचकर वापस आना कठिन होता था। तभी से ये उल्टे नाम प्रचलित हो गये हैं।”

लगभग पौने पाँच बजे जब हवाई जहाज मिशिगन झील के ऊपर पहुँच गया था, तब माइक ने बताया था कि यह लेक ३०० मील लम्बी और औसतन १०० से अधिक मील चौड़ी है और मीठे पानी का संसार का सबसे बड़ा भंडार इसी में है। उषा की किरणें झील पर स्वर्णिम छटा बिखेर रहीं थीं, और उनके प्रकाश में झील पर चलने वाले पानी के जहाज रेगिस्तान में खड़े पिरामिड सम दिखाई दे रहे थे। जब मीता ने ल्रेक के किनारे खड़े शिकागो नगर के बहुमंजली भवनों की ऊँची ऊँची अट्टालिकायें देखीं तो उसे मानिला के ऊँचे ऊँचे पहाड़ी वृक्षों की याद आ गई और उसके मन में योगी के लिये पुनः एक टीस उभरी थी। तभी प्लेन की लैंडिंग का उद्‌घोष होने लगा और मीता परियों के लोक में उतरने को तैयारी करने लगी थी।

एयरपोर्ट से टैक्सी लेकर माइक मीता को अपने फ्लैट पर लाया था। यह एक बहुत ऊँचे भवन की नवीं मंजल पर था। माइक ने उसे वहाँ से पश्चिम में दीवान मार्केट की दूकानें और पूर्व में १०५ मंज़िला सियर्स टावर दिखाई थी। सामने मिशिगन लेक अपनी विशालता में खोई सी निर्द्वंद्व हरहरा रही थी। सूर्य्र चढ़ आया था और सड़कों पर अनवरत चलनें वाली कारें शिकागो की व्यस्तता को मूर्त रूप प्रदान कर रहीं थ। माइक ने मीता को अपना फ्लैट दिखाया और फिर किचन में जाकर चाय बना लाया। चाय पीते पीते मीता ने पूछा,

 “मेरे रहने को कहाँ जगह मिलेगी।”

इस पर माइक ने एक आँख झपकाते हुए उत्तर दिया,

 “माई फ्लैट इज बिग एनफ। हम दोनों इसमें साथ रह सकते हैं।”

माइक की भाषा एवं भाव दोनों में साथ रहने से कहीं अधिक अर्थ छिपा हुआ था। मीता को पुरुष की इस हर जगह लार टपकाने वाली प्रवृत्ति पर क्रोध आ गया और उसने दृढ़ता से कहा,

 “नो आई वुड लाइक टु लिव एलोन।”

पाश्चात्य सभ्यता ें वैयक्तिक स्वतंत्रता को इतना महत्व दिया जाता है कि किसी महिला द्वारा इस प्रकार अपने मन की बात स्पष्ट कह देने पर पुरुष बुरा नहीं मानते हैं और न अपने अहम् पर ठेस आने की बात सोचते हैं, अतः माइक बोला,

“ओ. के., आइ शैल लुक फार सम विमेन्स हौस्टल।”

फिर माइक ने विमेन्स लिबरेशन मूवमेंट की कुछ सदस्याओं के फोन खटखटाये और एक विमेन्स हौस्टल में एक कमरा मीता के नाम रिजर्व करा लिया। माइक ने जब विमेंस लिबरेशन मूवमेंट की अध्यक्ष को फोन पर मीता का भारत की प्रसिद्ध योगिनी होने के रूप में परिचय दिया, तो उसकी रुचि मीता में बढ़ गई और माइक की संस्तुति पर उसने मीता को अपने सहायक के रूप में कार्य करने की जौब दे दी।

खाना बनाकर मीता को खिलाने के बाद माइक मीता को हौस्टल में भेज आया। चलते चलते माइक ने बताया कि यह हौस्टल दीवान मार्केट से मुश्किल से आधा मील दूर है और मीता जब चाहे दीवान मार्केट जाकर भारतीय शहर के बाजार जैसे दृश्य का आनंद ले सकती है।

मीता दीवान मार्केट जाने को बेचैन थी- वहाँ ’अनुज दी हेड बेयरा‘ जो था।

मीता ने हौस्टल के कमरे में दोपहर में आराम से सोकर लम्बी यात्रा की थकान निकाली। जब उसकी आँख खुली तो घड़ी में देखने पर ज्ञात हुआ कि सायंकाल के साढ़े छः बज रहे थे। परंतु उसे बाहर यह देखकर आश्चर्य हुआ कि तब भी सूरज अपनी पूरी तेजी से आकाश में चमक रहा था और ऐसा लग रहा था जैसे चार बजे हों। उसने किचन में चाय बनाकर पी। बाहर हवा में ठंडक थी, अतः मीता ने शाल डाल लिया और दीवान मार्केट की ओर चल दी। रास्ते में फुटपाथ के दोनों ओर बने हुए मकान ऐसे लग रहे थे जैसे किसी चित्रकार द्वारा कैनवैस पर चित्रित किये गये हों, परंतु दीवान मार्केट पहुँचने पर मीता ने पाया कि वहाँ के भवन, दूकानदार व ग्राहक सब ऐसे थे जैसे दिल्ली के करोलबाग में मिलते हैं। वहाँ उसे ऐसा लग ही नहीं रहा था कि वह भारत में न होकर अमेरिका में हो। फुटपाथ पर कुछ दूर पैदल चलने पर उसे बाईं ओर गाँधी इंडियन रेस्टोरेंट दिखाई दिया। वह उसी के सामने आस पास इस आशा से टहलने लगी कि अनुज यदि काम पर आया होगा, तो रेस्टोरेंट के अंदर शीशे की दीवाल के पार दिख जायेगा। उसे अधिक प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी क्योंकि तभी अनुज दोनों हाथों में एक एक फुल-प्लेट में दोशा लेकर जाता हुआ दिखाई दिया। फिर एक मेज पर उन्हें रखने के पश्चात अनुज ने बगल की मेज से जूठी प्लेटें उठाईं और उन्हें ले जाकर सिंक पर रखने लगा। मीता की आँखों में आँसू छलकने को हो आये। उसने निश्चय किया कि अनुज ने उसके साथ चाहे जैसा भी व्यवहार किया हो, वह अनुज के निकलने पर उससे बात  करेगी। वह देर तक रेस्ट्रां के बाहर अनुज की प्रतीक्षा करती रही। परंतु अनुज जब बाहर निकला, तब एक गोरी महिला की कमर उसकी बाँह में थी।

मीता का मन असहनीय क्षोभ से भर गया।

“हाय! ह्वेयर आर यू फ्राम” दीवान मार्केट से लौटकर मीता जब अपने कमरे का ताला खोल रही थी, तभी पीछे से एक गोरी अधेड़ महिला की चहकती सी आवाज आई।

मीता के “आय ऐम फ्राम इंडिया” कहने पर उस महिला ने तपाक से अपना हाथ मिलाने को बढ़ाया और अपना परिचय देने लगी।

“आय ऐम शेली फ्राम इंग्लैंड।”

मीता के आश्रम में गोरे लोगों का आना जाना लगा रहता था और वह उनसे मिलने के तौर तरीकों से परिचित थी। उसने हाथ बढ़ाकर “हाऊ डू यू डू” कहा और अपना परिचय दिया। भारतीय सभ्यता के अनुसार उसने शेली को अपने कमरे में चलने का आमंत्रण दिया और शेली बिना नानुकुर किये अंदर चली  आई । फिर वह मीता से ऐसे बातें करने लगी जैसे पुराने मित्र आपस में बोलते- बतियाते हैं। शेली ने बताया कि वह इंग्लैंड में ही विमेंस लिबरेशन मूवमेंट की सक्रिय सदस्य बन गई थी और वहाँ के समाज में स्त्रियों के स्वतंत्र अस्तित्व को स्थापित करने में बहुत कुछ सफल हुई थी। विमेंस लिबरेशन मूवमेंट की ब्रिटिश शाखा द्वारा देश विदेश से चंदा इकट्ठा कर वैज्ञानिकों को प्रोजेक्टस दिये जाने पर  वहाँ के वैज्ञानिक इस खोज में सफल हुए हैं कि बिना पुरुष के संसर्ग के स्त्री लड़कियाँ पैदा कर सकती है। यह कहने के पश्चात अपने स्वर में शरारत भर कर शेली बोली ’और जब लड़की मे मजा आने लगे तो लड़कों की आवश्यकता ही क्या है‘। दो वर्ष पूर्व उसे मूवमेंट का महामंत्री चुन लिया गया था और तब वह मूवमेंट के मुख्यालय शिकागो में चली आई थी। अमेरिका अनेक संस्कृतियों के संगम का देश है और यहाँ पर तीसरी दुनिया से आये हुए अनेक परिवारों में अभी भी स्त्री की स्थिति पुरुष से बहुत नीची है। अतः यहाँ काम बहुत है, परंतु मुझे प्रसन्न्ता है कि यहाँ की स्त्रियाँ मूवमेंट के सिद्धांतों को तेजी से स्वीकार कर उन पर अमल कर रहीं हैं।

मीता को शेली की बात एकतरफा लगी और उसने पूछ दिया कि पुरुषों से इस प्रकार का द्वंद्व क्या सचमुच आवश्यक है। शेली ने उत्तर में कहा कि विमेंस लिबरेशन मूवमेंट का प्रारम्भ सदियों से दबी कुचली नारी को पुरुषों के बराबर मानसिक, शारीरिक एवं लैंगिक स्वतंत्रता दिलाने के उद्देश्य से हुआ था। प्रारम्भ में पुरुषों ने कुछ तो अपनी विशालहृदयता दिखाने हतु और कुछ महिलाओं से खुले खेल का आनंद लेने हेतु इसे बढ़ावा भी दिया था, परंतु जब पश्चिमी देशों में महिलायें हर क्षेत्र में पुरुष को पछाड़ने लगीं, तब से दोनों में वर्चस्व की लड़ाई प्रारम्भ हो गई है। इस खोज के पश्चात कि महिलायें बिना पुरुष की सहायता के लड़कियों के प्रजनन में सक्षम हैं, यह लड़ाई पुरुष के अस्तित्व की लड़ाई में परिवर्तित हो गई है। अब यहाँ की महिलायें महिलाओं के साथ मित्रवत व्यवहार करतीं हैं और पुरुष को हेय दृष्टि से देखतीं हैं। यहाँ की अधिकतर महिलायें अब प्रजनन के लिये महिलाओं के शरीर के सेल का ही उपयोग करतीं हैं जिससे पुरुषों की जन्म दर तेजी से घट रही है।

मीता चकित होकर शेली की बात सुन रही थी और उसके मन में  कई प्रश्न भी उठ रहे थे, परंतु तभी शेली की एक मित्र ने बाहर आकर कहा,

’शेली! वी आर लेट फार डिनर।‘

और शेली ’एक्सक्यूज मी‘ कहकर चली गई।

मीता आश्चर्यचकित थी कि क्या पुरुष के बिना भी कोई नारी अपने केा पूर्ण मान सकती है- शेली की बात एवं अपने कार्य की सफलता के वर्णन पर उसके मुख पर विकसित उल्लास से तो यही स्पष्ट हो रहा था कि शेली पुरुषविहीन मानव समाज की कल्पना से रोमांचित है और सम्भवतः उसकी सहयोगी महिलायें भी। रात में मीता घंटों इसी ऊहापोह में पड़ी रही कि कैसे कोई स्त्री पुरुष के बिना अपने दैहिक एवं मानसिक अधूरेपन को शांत कर सकती है, और उसे बड़ी देर से नींद आई।

 “वेल्कम मीटा! मइक हैड टोल्ड ए लौट एबाउट यू, ऐंड आइ ऐम श्योर यू वुड प्रूव ऐन आउटस्टेंडिग ऐडीशन टू अवर मूवमेंट।”

गोरी, छरहरी, अधेड़ आयु की प्रेसीडेंट सूजैन ने यह कहते हुए मीता का अपने आफ़िस में स्वागत किया था। मीता प्रेसीडेंट के व्यवहार की आत्मीयता से आश्चर्यचकित थी क्योंकि उसने भारत में बौस के प्रायः नकचढ़े होने के किस्से सुन रखे थे। प्रेसीडेंट ने स्वयं मीता को अपने साथ लेकर आफ़िस की अन्य सहयोगियों से परिचय कराया था। मीता को आफ़िस का वातावरण बड़ा अपनत्व वाला लगा था। सूजैन ने मीता को उसका कमरा भी दिखाया था जो सूजैन के कमरे से सटा हुआ था। कमरा छोटा होते हुए भी सुरुचिपूर्ण ढंग से सजा हुआ था। अपने कमरे में जाते हुए  सूजैन ने कहा था कि अभी  शेली यहाँ आयेगी, तुम्हें कम्प्यूटर पर काम करना सिखायेगी और तुम्हारा रोज का काम बतायेगी। कुछ देर में शेली आ गई और उसने मीता को उसकी मेज पर रखे कम्प्यूटर का बटन दबाने को कहा। मीता बड़े मनोयोग से कम्प्यूटर पर काम करना सीखती रही। बाद में शेली ने उससे कहा कि संस्था के उद्देश्य के विषय में तो वह मीता को पहले ही बता चुकी है। प्रेसीडेंट की अस्स्टिेंट के रूप में उसे मुख्यतः वे काम करने होंगे जो प्रेसीडेंट उसे दिन प्रतिदिन बतायेंगी। प्रेसीडेंट काम के विषय में सख्त हैं और पूर्ण अनुशासन की अपेक्षा रखतीं हैं। शेली जाते समय मीता को एक पैम्फलेट देकर गई जिसमें अंग्रेजी में टायपिंग का अभ्यास करने की विधि लिखी थी और मीता का वह दिन मुख्यतः कम्प्यूटर पर टायपिंग सीखने के अभ्यास में बीता।

अगले शनिवार को माइक मीता का हालचाल लेने उसके हौस्टल पर आया और मीता ने अपना प्रथम सप्ताह संतोषजनक ढंग से गुजरना बताया।उसने यह भी कहा कि उसका काम ज्ञानवर्धक एवं एक्साइटिंग है। शेली द्वारा उसकी सहायता करने एवं उससे मित्रता का प्रारम्भ होने की बात भी बताई। माइक को यह सुनकर प्रसन्नता हुई। चलते समय माइक ने मीता को बताया कि वह अगले सप्ताह अपने शोधकार्य के सम्बंध में दक्षिणी एशिया के देशों में जायेगा और काफी समय पश्चात लौटेगा।

शनैः शनैः मीता की दिनचर्या एक ढर्रे पर चल पड़ी थी और उसके दिन ठीकठाक बीतने लगे थे। वह न केवल अपना काम सीख और समझ गई थी वरन् उसे दक्षता के साथ करने भी लगी थी। सूजैन उसके काम सीखने की प्रगति पर बहुत प्रसन्न थी और मीता उसकी विश्वासपात्र बन गई थी। मीता अनुज एवं भुवनचंद्र द्वारा अपने प्रति किये गये व्यवहार से तो भरी हुई थी ही, विमेंस लिबरेशन मूवमेंट के कार्यालय की लाइब्रेरी में रखा हुआ साहित्य पढ़कर पुरुषों से उसकी वितृष्णा और बढ़ रही थी। वह सूजैन के लिये जो भाषण तैयार करती उनमें विश्व में नारियों के प्रति किये जाने वाले अत्याचार के रोमांचकारी उदाहरण प्रस्तुत करती थी। कभी कभी तो सूजैन उसके द्वारा तैयार किये गये भाषण से इतनी प्रभावित हो जाती थी कि उसे ही पढ़ने को कह देती थी। उन्हें पढ़ते समय मीता अपने हृदय में भरे हुए उद्‌गारों को निकाल कर रख देती, जिससे श्रोताओं पर गहरा प्रभाव पड़ता था।

पर फिर भी कुछ बातें ऐसी थीं जो मीता के मन में अनजाने ही आकर चुभन पैदा कर देतीं थीं। एक तो अनुज का बेयरे के रूप में दोशा की ट्रे लेकर चलना और दूसरे प्रातःकाल जब वह योगासन करने हेतु बैठती थी, तो उसे लगता कि योगी सदैव की भाँति उसके सामने पद्मासन लगाये बैठे हैं और उनके चेहरे से विषाद का भाव परिलक्षित हो रहा है। उसको एक बात और खटकती थी- वह अपनी संस्था के गठन के कारण एवं अधिकतर उद्देश्यों से सहमत होते हुए भी कभी भी इस नीति से समझौता नहीं कर पाई थी कि नारी को अपना एकछत्र प्रभुत्व स्थापित करने के लिये मानव समाज को पुरुषविहीन कर देना चाहिये। उसकी प्रेसीडेंट इस विचार की घनघोर पक्षधर थी, अतः वह अपने द्वारा तैयार किये गये भाषणों में इस विषय पर कोई विचार रखने से कतराती थी। पहले तो प्रेसीडेंट ने इस विषय में मीता की सोच को स्वयं के अनुकूल बनाने का प्रयत्न किया, परंतु जब मीता ने इस विषय में अपनी असहमति स्पष्ट कर दी, तो मीता द्वारा तैयार भाषण में वह इस विषय पर स्वयं लिखने लगीं थीं।

एक बात और थी जो मीता को उद्विग्न करती थी और वह थी शेली द्वारा अति-आत्मीयता का प्रदर्शन। प्रायः भोजनोपरांत रात में वह मीता के कमरे में गपशड़ाके लड़ाने के बहाने आ जाती थी और उसके कमर में घुसते ही मीता को कसकर चिपका लेती थी। मीता द्वारा कसमसाने पर ही कठिनाई से उसे अपने आलिंगन से दूर करती थी। फिर बातचीत के दौरान भी शेली प्रायः अपना हाथ मीता के किसी न किसी अंग पर रख देती थी और जब तक मीता की आपत्ति स्पष्ट न लगने लगे, वहाँ से नहीं हटाती थी। शेली के इन अतिरेकों को मीता उसके व्यवहार की अति आत्मीयता मानकर देखा अनदेखा करती रहती थी। विमेंस हौस्टल में शेली न केवल उससे स्वतः सप्रेम मिलने वाली प्रथम महिला थी, वरन् शनैः शनैः उसकी अंतरंग भी बन गई थी। संस्था का काम सिखाने एवं कार्यालय में  मीता की स्थिति को सुदृढ़ करने में शेली ने उसकी भरपूर सहायता की थी। परंतु एक रात्रि ऐसी घटना घटित हो गई कि मीता का धैर्य चुक गया। उस रात्रि शेली जब मीता के कमरे में आई, तब उसकी जुबान लड़खड़ा रही थी। उसने मीता के कमरे में घुसने पर उसे न केवल अपने आलिंगन में दबोच लिया, वरन् मीता के प्रतिरोध के बावजूद उसे पलंग पर गिराकर उसके अंगों से खेलने लगी। मीता से सहन न हुआ और उसने शेली का झोंटा पकड़कर उसको धक्का मारकर पलंग से नीचे गिरा दिया। शेली अब क्रोघ से बिफर उठी और मीता को गाली देती हुई कमरे के बाहर निकल गई। उसके जाते जाते मीता ने चिल्लाकर कहा, ’नेवर डेयर टु एंटर माई रूम अगेन‘।

इस अकथनीय घटना को मीता गरल समान अपने कंठ में दबा गई और फिर शेली ने भी उसके कमरे में आने का प्रयत्न नहीं किया। शेली कार्यालय में भी उससे बचकर ही रहने लगी। मीता को शेली की यह प्रतिक्रिया तो स्वाभाविक लगी, परंतु इसके अतिरिक्त उस ऐसा भी लगा कि उसके प्रति सूजैन के व्यवहार में भी रूखापन आ गया है।

एक दिन सूजैन ने उसे बुलाकर कहा कि अगले शुक्रवार को लास वेगस में कान्फरेंस है और मीता को भी उसके साथ चलना है। शिकागो से लास वेगस जाने वाले प्लेन में चढ़ने पर मीता ने पाया कि सूजैन के साथ शेली भी लास वेगस चल रही थी। मीता को शेली प्रारम्भ से ही अच्छी लगी थी ओर उसके मन में विचार आया कि चलो अच्छा ही है, इस बहाने शेली से मनमुटाव समाप्त हो जायेगा और पूर्ववत सम्बंध स्थापित हो जायेंगे, परंतु रास्ते में दोनों के बीच चुप्पी ही रही।

शुक्रवार को प्रातः ३ बजे उनका जहाज लास वेगस पहुँचा। मीता ने हवाई जहाज के उतरते हुए देखा कि लास वेगस नगर मनुष्यकृत वृहत् सुंदरता की पराकाष्ठा है। कहते हैं कि लास वेगस में कभी रात्रि नहीं होती है और सचमुच उसकी सड़कों एवं दी वेनेशियन होटल, जिसमें इन सबके कमरे रिजर्व थे, में ऐसी गहमागहमी थी जैसे दिन के चार बजे हों। लगभग आधा फर्लांग लम्बे, रंग-बिरंगे जुआ खेलने के हाल में सैकड़ों स्लौट मशीनों की झनक, ताश खेलने वालों एवं रूले में पैसा लगाने वालों की बकुलदृष्टि, तथा अप्सरा समान सुंदरियों द्वारा अदा से जुआड़ियों को मद्य पेश करने का दृश्य स्वर्गलोक में लगे किसी मेले जैसा लग रहा था। होटल में चेक करने के पश्चात सूजैन, शेली और मीता अपने अपने कमरे में सोने चले गये और घड़ी में भरे हुए अलार्म के बजने पर सुबह सात बजे जागे। तैयार होकर ब्रेकफास्ट के लिये एस्केलेटर से प्रथम तल पर बने फूडकोर्ट में गये। वहाँ सूजैन और शीला ने हैम्बर्गर खाये और मीता ने वेजीटेरियन सबवे लिया। फिर होटल के विशाल कान्फरेंस हाल को चल दिये। लंच ब्रेक के अतिरिक्त लगभग चार बजे तक कोनफरेंस चलती रही। आज का सूजैन का भाषण बहुत ओजपूर्ण था। समाप्ति पर यह घोषणा हुई कि रात्रि में १० बजे से एम. जी. एम. ग्रैंड होटल में एक विशेष शो का आयोजन होगा, जिसमें सभी प्रतिभागी आमंत्रित हैं।

अपने कमरों में लौटने पर सूजैन ने कहा कि चाय पीने के उपरांत हम लोग लास वेगस के प्रमुख होटलों को देखेंगे। कमरे से निकलकर जब मीता अपने दी वेनेशियन होटल में ही भ्रमण करने लगी तब उसकी भव्यता एवं सुंदरता को देखकर आश्चर्यचकित रह गई। जुआ खेलने वाला हाल तो उस होटल का एक भाग मात्र था। उसमें ऐसे अनेक विंग थे। उसके एक विंग में जाते हुए मीता को लगा कि अचानक सायं की वेला घिर आई है, आकाश में तारे निकल आये हैं और कहीं कहीं बादल छा रहे हैं। इस अकस्मात वातावरण परिवर्तन से मीता चकित हो रही थी कि सूजैन ने बताया कि होटल का यह भाग वेनिस शहर के समान बनाया गया है। वहाँ न केवल वेनिस नगर के समरूप भवन, बाजार, मूर्तियाँ,  नगर के अंदर बहने वाली नहरें, उनमें चलाये जाने वाले गोंडोला और उनको चलाने वाले प्रेम-गीत गाते हुए नाविक थे, वरन् आकाश को भी वेनिस में सामान्यतः पाये जाने वाले आकाश के अनुरूप बना दिया गया था। यद्यपि यह आकाश एक-डेढ़ फर्लांग लम्बे क्षेत्रफल में बने बाजार एवं नहर आदि के ऊपर ही था परंतु ऊपर देखने में उसका कोई ओर छोर नहीं दिखाई देता था और वह अनंत लगता था। दी वेनेशियन होटल देखने के पश्चात तीनों लोग मोनोरेल से पैरिस, मांडले बे, दी स्टे्टोस्फियर, एक्स-कैलिबर, दी सीजर, अलादीन आदि होटलों को देखने गये। सब अपने में निराले थे। अंत में नौ बजे रात में ये लोग एम. जी. एम. ग्रैंड होटल में आ गये। वहाँ चायनीज रेस्ट्रां में भोजन खाकर ये लोग शो देखने हेतु जिस हाल में घुसे, वह अपने आकार एवं भव्यता में मीता के लिये कल्पनातीत था। गेट पर एक अर्धनग्न सुंदरी ने मुस्कराते हुए उनका स्वागत किया। हाल में हल्का प्रकाश था और उसकी ऊँचाई कम से कम पचास फीट रही होगी। सामने का स्टेज का भाग खाली था और उसमें नीचे से कभी आग के भभोके, कभी पानी की बौछार और कभी शीत बयार उठने लगती थी। शो प्रारम्भ होने से पूर्व हाल में अंधेरा हो गया और तभी एक वस्त्र-विहीन सी दिखने वाली लड़की पीने हेतु पेय पदार्थ लाई। ट्रे में तरह तरह के रंगों के पेय पदार्थ रखे थे। उस लड़की के निकट की सीट पर शेली सबसे पहले बैठी थी, उसके बाद सूजैन और उसके बाद मीता थी। अतः शेली ने सूजैन को एक ड्रिंक उठाकर देने के बाद उस लड़की से पूछा कि नौन अल्कोहलिक ड्रिंक कौन सा है और उस लड़की के बताने पर एक गिलास उठा लिया। फिर मीता को उसे लेने को कहकर दे दिया। उसके बाद अपना अल्कोहलिक ड्रिंक लिया। उनके ड्रिंक लेना प्रारम्भ करते ही सामने स्टेज तिरछा सा उठता दिखाई दिया और नाटक प्रारम्भ हो गया। कुछ देर बाद मीता का सिर कुछ भारी सा होने लगा था और नाटक की कहानी एवं पात्रों द्वारा बोली जाने वाली अंग्रेजी मीता की बिल्कुल समझ में नहीं आ रही थी। नाटक की कहानी मीता को एक लड़की से दूसरी लड़की के प्रेम की कहानी जैसी लग रही थी। नाटक में कोई पुरूष पात्र नहीं था। नंगी दिखने वालीं लड़कियाँ अपने अभिनय के दौरान नटी के समान करतब दिखा रहीं थीं। नाटक का अंत कई लड़कियों के बीच खुली प्रेम-क्रिया के प्रदर्शन से हुआ। मीता का सिर पहले से दुखने लगा था और अंतिम दृश्य देखकर मन वितृष्णा से भर गया था।

मीता बड़ी कठिनाई से होटल वापस आ सकी थी। वहाँ आकर लड़खड़ाते कदमों से जब उसने अपने कमरे का दरवाजा खोला, तो उसको सम्हालते हुए शेली और सूजैन उसके साथ कमरे में अंदर आ गईं थीं। पलंग पर गिरने के बाद मीता को कुछ पता नहीं कि आगे क्या हुआ, परंतु आँख खुलने के पश्चात सब कुछ देखकर वह अपना सामान लेकर सीधे एयरपोर्ट्र चली आई थी और दिल्ली का टिकट कटा लिया था।

 

मीता की बस जब मानिला पहुँची थी तब रात्रि हो चुकी थी। मीता के मन में एक अपराधबोध था जिसके कारण वह दिन के उजाले में मानिला जाना भी नहीं चाहती थी। मंदिर में पहुँचने पर योगी ने ही दरवाजा खोला था। योगी को देखकर मीता किंर्तव्यविमूढ़ सी खड़ी हो गई थी। योगी कुछ क्षण तक मीता को ऐसे देखता रहा था जैसे वह उससे पूछकर बाजार तक गई हो और वहाँ से वापस आ रही हो। फिर योगी सहज भाव से बोला था, “अंदर आ जाओ मीता, बाहर बड़ी ठंड है।” उसके शब्दों में वही पुराना अपनत्व पाकर मीता उसके कंधे पर सिर रखकर सिसकने लगी थी। जब मीता देर तक अपने आँसू न रोक सकी थी, तो योगी उसे चुप कराते हुए बोला था, “तुम मुझसे दूर गईं ही कहाँ थीं; ऐसा कोई दिन नहीं आया जब तुम्हें अपने समक्ष बिठाये बिना मैं योगसाधना कर पाया हूँ।”

हेमंत चायवाला मीता के वापस आ जाने से अब फिर मगन रहने लगा है। उसने निश्चय किया है कि वह यह बात किसी को नहीं- मीता को भी नहीं- बतायेगा कि सायं के धुंधलके में उसने अनेक बार योगी को ऊँचे ऊँचे वृक्षों की आड़ में आँसू बहाते देखा है।

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

......गिलहरी
|

सारे बच्चों से आगे न दौड़ो तो आँखों के सामने…

...और सत्संग चलता रहा
|

"संत सतगुरु इस धरती पर भगवान हैं। वे…

 जिज्ञासा
|

सुबह-सुबह अख़बार खोलते ही निधन वाले कालम…

 बेशर्म
|

थियेटर से बाहर निकलते ही, पूर्णिमा की नज़र…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

नज़्म

हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी

कविता

स्मृति लेख

हास्य-व्यंग्य कविता

सामाजिक आलेख

कहानी

बाल साहित्य कहानी

व्यक्ति चित्र

पुस्तक समीक्षा

आप-बीती

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं