आँखें
काव्य साहित्य | कविता अमिता15 Mar 2022 (अंक: 201, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
आज फिर से देखा
तुम्हारी आँखों को
जिसको जितना
देखा जा सकता था
बिना कहे बहुत कुछ
पढ़ा जा सकता था
समन्दर सा गहरा
तिनके सा डूबा था
वो ओझल सवाल
मन में कुछ मैला सा
सैलाब सा बिखरा था
तुम्हारी आँखों को मैंने
फिर से आज देखा था
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