आरक्षण
काव्य साहित्य | कविता ई. भारत रत्न गौड़16 Aug 2008
जब से देश में आया ये आरक्षण
इस देश का भक्षक बन गया ये आरक्षण
पूरब से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण
दिख रहे हैं देश विभाजन के लक्षण
पहले थे सिर्फ हिन्दु, मुस्लिम, सिक्ख और ईसाई
कहते थे हम सब जिनको भाई भाई
आरक्षण से अब ये कहावतें बदल गईं
चार नही चालीस जातियाँ बन गईं
सीमाएँ जातियों से विभाजित हो गईं
नेताओं की भी सीटें आरक्षित हो गईं
जातियों के दम पे जीत सुनिश्चित हो गई
नेता फेंक रहे हैं ये कैसी गोटियाँ
आरक्षितों के मुंह में दे रहे हैं बोटियाँ
आबाद कर दी इनकी पीढ़ियों की पीढ़ियाँ
बुद्धिजीवियों पर लगा रहे हैं कसोटियाँ
और फाड़ रहे हैं उनकी लंगोटियाँ
दुनिया में जाना जाने वाला सोने की चिड़िया
बरबाद कर दी इसकी पीढ़ियों की पीढ़ियाँ
पहलें सुना था सिर्फ रेल और बस में आरक्षण
आजकल पैदा होते ही सुनिश्चित है आरक्षण
इंजनीयरिंग और डॉक्टरी में आरक्षण
राजनीति और उच्च शिक्षा में आरक्षण
नौकरी और पदोन्नति में भी आरक्षण
यहाँ वहाँ सब जगह मिलता है आरक्षण
नहीं है तो केवल जीने मरने में आरक्षण
नेताओं को नहीं दिया गया ऐसा प्रशिक्षण
नहीं तो ये दे दें जीने मरने में भी आरक्षण
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