आत्मनिरीक्षण
काव्य साहित्य | कविता इन्द्रभूषण मिश्र30 Apr 2012
कभी- कभी मैं अज्ञात
बालक बन जाता हूँ।
कभी- कभी मैं छोटी सी
बात पे भी रूठ जाता हूँ॥
कभी- कभी मैं अपनी
समझ पे इतराता हूँ।
कभी-कभी मैं अपनी कमियों का
अनुभव कर दुखी हो जाता हूँ॥
कभी- कभी मैं भविष्य की
आशंकाओं से घबराता हूँ।
कभी- कभी मैं स्वयं को जीवन की
बाधाओं से अकेले ही टकराने में परिपूर्ण पाता हूँ॥
कभी- कभी मैं सांसारिकता के
भ्रम में भटक जाता हूँ।
कभी-कभी मैं जीवन के गूढ़
रहस्यों को समझने मे लग जाता हूँ॥
लेकिन सर्वदा मैं स्वयं को
मानव कर्म निभाने के प्रयास में संलग्न पाता हूँ…
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