अबकी बार दिवाली में जब घर आएँगे मेरे पापा
काव्य साहित्य | कविता डॉ. अमर ज्योति 'नदीम'28 Dec 2008
अबकी बार दिवाली में जब घर आएँगे मेरे पापा
खील, मिठाई, दिये, फुलझड़ी सब लाएँगे मेरे पापा।
दादी का टूटा चश्मा और फटा हुआ चुन्नू का जूता,
दोनों की एक साथ मरम्मत करवाएँगे मेरे पापा।
अम्मा की धोती तो अभी नई है; होली पर आई थी;
उसको तो बस बातों में ही टरकाएँगे मेरे पापा।
जिज्जी के चेहरे की छोड़ो, उसकी आँखें तक पीली हैं;
उसका भी इलाज मंतर से करवाएँगे मेरे पापा।
बड़की हुई सयानी, उसकी शादी का क्या सोच रहे हो?
दादी पूछेंगी; और उनसे कतराएँगे मेरे पापा।
बौहरे जी के अभी सात सौ रुपये देने को बाकी हैं;
अम्मा याद दिलाएगी और हकलाएँगे मेरे पापा।
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