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अहसास! पहले प्यार का . . . 

 

वह जुलाई की शुरूआत थी, प्रिया ने ग्यारहवीं के लिये ‘विज्ञान संकाय’ को चुना लिहाज़ा उसके पापा शुरूआत से ट्यूशन भेजना शुरू कर दिया। पर दिक़्क़त थी कि प्रिया अकेली इतनी दूर जायेगी कैसे? इसका समाधान मिला अपनी सहेली विद्या से क्योंकि उसे भी अकेले जाने की समस्या थी। अब दोनों साथ-साथ जाने लगी थीं। उसी समय कोई स्थानीय चुनाव होने वाले थे, जिसके कारण मिलिट्री फ़ोर्स आई हुई थी। जब प्रिया पहले दिन गयी तो उसकी नज़र मिलिट्री आवास के छत पर खड़े राइफ़लधारी जवान पर पड़ी, पता नहीं क्यों वह चलते-चलते रुक गयी और कुछ सेकेंड को अपलक देखती रही। मिलिट्री की गणवेश में ही एक अनोखा तेज़ था जो उसे अपनी ओर खींच रहा था। उसकी तंद्रा तब टूटी जब उसने जवान को मुस्कुराते हुए पाया, वह शरमाकर चुपचाप आगे बढ़ गयी। 

लगभग छह दिन हो गये प्रिया के जाने के समय वह अक्सर बिना ड्यूटी के भी छत पर खड़ा हो जाता और उसके साथ छत पर ही कुछ दूर साथ जाता और जब दूर पहुँच कर प्रिया मुड़कर देखती तो रमन उसे हाथ हिलाकर विदा करता। 

शनिवार को स्वास्थ्य प्रतिकूल होने के कारण प्रिया ट्यूशन नहीं गई विद्या को अकेला देखकर रमन निराश हो गया, फिर कुछ सोचकर नीचे उतरा और दौड़कर विद्या के पास पहुँचा और कहा, “आज आपकी सहेली नहीं आईं?” 

“हाँ, उसकी तबियत ठीक नहीं है, पर आप उसे क्यों पूछ रहे हैं।”

“मुझे उनसे कुछ काम है, ख़ैर कल तो वह आएँगी न?” 

“नहीं, कल रविवार है कोचिंग बंद रहती है।”

“अर्रे यार, आप मेरा एक काम करेंगी?” 

“पहले काम सुनूँ, फिर बताऊँगी।”

“प्लीज़ आप कैसे भी कर के मेरी एक बार उनसे बात करवा दीजिये प्लीज़।”

“क्यों?” 

“मैं उन्हें बहुत चाहता हूँ, वह समझें या न समझें पर उन्हें अपनी हालत बताना चाहता हूँ, प्लीज़ आप मना मत करना।”

“हम्म, देखती हूँ।”

“प्लीज़, पूरी ज़िन्दगी अहसान रहेगा मुझपर।”

सोमवार को जब विद्या ने प्रिया को रमन के बारे में बताया और उससे पूछा कि बात करेगी न?

“धत्, मैं न करूँगी, और यदि घर में किसी ने बता दिया तो ज़िन्दा दफ़ना देंगे मुझे और उसकी भी ढंग से ख़बर लेंगे पूरी मिलिट्रीगिरी निकाल देंगे।”

“प्लीज़ यार, देख लेना, वह बहुत उम्मीद से मुझसे बोला था, और मुझे वह बंदा सही लगा।”

“सही लगा तो तुम ही बात कर लो न, पागल ही हो, सात बजने ही वाले हैं समय ही नहीं है, ट्यूशन शुरू होने वाली होगी।”

चौराहे से थोड़ा आगे जाकर विद्या ने कहा, “तुम रुको मेरी रफ़ कॉपी भर गयी है दो मिनिट में लेकर आती हूँ।”

तभी सफ़ेद टीशर्ट और नीले लोअर में रमन सामने खड़ा था, प्रिया कुछ कहती उससे पहले रमन बोला। 

“नमस्ते, आप मुझे बहुत सुंदर लगती हैं।”

प्रिया समझ ही नहीं पा रही थी कि क्या बोले, हाँ वह अंदर तक सिहर ज़रूर गयी, अगस्त की उमस में भी उसके रोम-रोम खड़े गये। उसे चुप देखकर रमन ने कहा, “मैं कल ही यहाँ से चला जाऊँगा। कारगिल में भी जंग छिड़ी हुई है, हो सकता है वहाँ जाऊँ और लौट कर न आऊँ। जब भी तुम्हें देखता हूँ मेरा दिल दुगुनी रफ़्तार से धड़कने लगता है। तुम्हें देखकर पहली बार दिल में प्यार का अहसास हुआ, वह मैं छुपाना नहीं चाहता इसलिए कल तुम्हारी सहेली से रिक्वेस्ट की, किसी भी तरह तुमसे बात करवा दे।” 

“मैं इलेवन्थ में हूँ, अभी,” प्रिया का अभिप्राय अपनी छोटी उम्र को लेकर था जिसे फ़ौजी बख़ूबी समझ गया। 

“हैलो, मैं भी अभी बाइस का ही हूँ और वैसे भी मैं कहाँ, अपने साथ चलने को बोल रहा हूँ। बस तुम्हारी कोई निशानी चाहिये थी, जिसे हमेशा अपने पास रख सकूँ और अपनी पहली मुहब्बत को ताउम्र महसूस करता रहूँ।”

प्रिया अब भी चुप थी। तब रमन ने पूछा, “क्या मैं तुम्हें अच्छा नहीं लगता, मेरे दोस्त तो बताते हैं बहुत स्मार्ट हूँ।”

“आप मुझे अच्छे तो लगते हैं पर . . .”

“क्या पर?” 

“पर, मिलेट्री की यूनिफ़ॉर्म में, दरअसल मैंने पहली बार फ़ौजी के रूप में आपको देखा और आप वाक़ई बहुत आकर्षक लगे, आपके जगह कोई और होता तब भी शायद वह मेरा पहला प्यार होता।”

“ओह, तो आपको हमारी वर्दी से लगाव है, पर आप हमें हर ड्रेस में अच्छी लगीं, बहुत ख़ूबसूरत, ख़ैर, जय हिंद!” नम आँखें, लिये ज़बरदस्ती मुस्कुराते हुए रमन मुड़ने को हुआ कि प्रिया ने पुकारा, “सुनिये . . .”

“जी, कहिये।”

“मेरे पास और तो कुछ भी नहीं है, आप ये पेन रख लीजिये,” पन्द्रह रुपये वाला 'रेनॉल्ड जैटर' पैन देते हुए प्रिया ने कहा। 

रमन ने वह पेन हाथ से लिया और धीरे से गाल पर थपकी देते हुए कहा, “थैंक्स।”

“मेरे पास तो पेन भी नहीं, बस तुम अकेली मिली और मन की बात कह दी।”

“कोई नहीं, आपकी वह छवि जो पहली बार मैंने देखी थी मरते दम तक दिल में रहेगी।”

तब तक विद्या कॉपी लेकर आ चुकी थी, रमन ने उसके हाथ से कॉपी ली और अपना पता लिखा। तभी प्रिया को पता चला उसका नाम रमन है। 

रमन ने कहा, “जब तुम चिट्ठी लिखोगी तभी मैं तुम्हें चिट्ठी लिखूँगा जवाबी, ‘जय हिन्द’।” 

“जय हिंद!” बोलकर प्रिया ने अपने प्रथम प्रेम को अलविदा कह दिया। 

रास्ते में प्रिया ने विद्या को हज़ारों क़समें रखवाईं यहाँ तक कि ये भी कहा कि यदि किसी को ये बात बतायी तो मेरा मरा हुआ मुँह देखोगी।

वह समाचार पत्र में अब ख़ास रुचि लेने लगी थी। 

एक दिन शहीद जवानों में उसके पहले प्यार का नाम भी था ‘रमन झा’। वह दो दिन बहुत रोई खाना भी नहीं खाया। फिर धीरे-धीरे सब सामान्य हो गया। 

रमन इस दुनिया से जा चुका था पर प्रिया के लिये तिरंगे में अब भी ज़िन्दा है। 

आज बीस साल गुज़र जाने पर जब भी लहराता हुआ तिरंगा देखती उसे राइफ़ल लिये हुए रमन दिखाई देता, सैल्यूट की मुद्रा में। और उसके होंठ बरबस मुस्कुरा उठते साथ ही आँखें भी नम हो जाती हैं। 

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