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स्त्री होने का गर्व

 

गर्व करो ख़ुद पर, कि स्त्री हो तुम! 
 
चुप क्यों रहती हो तुम 
घाव क्यों सहती हो तुम
क्या दर्द नहीं होता तुम्हें 
क्या कोई तकलीफ़ नहीं होती
आख़िर किस मिट्टी की बनी हो तुम 
या सिर्फ़ मिट्टी की ही बनी हो तुम 
 
गर्व करो ख़ुद पर, कि स्त्री हो तुम! 
 
या इस देह के भीतर कोई आत्मा भी है 
क्या वो तुम्हें धिक्कारती नहीं 
क्या सम्वेदनाएँ तुम्हारी 
कभी तुम्हें ख़ुद के लिये पुकारती नहीं 
जानती हो कि ज़ुल्म करने वाले से बड़ा गुनाहगार 
ज़ुल्म सहने वाला होता है 
फिर क्यों ज़ुल्म किसी के सहती हो तुम 
 
गर्व करो ख़ुद पर, कि स्त्री हो तुम! 
 
कुछ तो बोलो 
लब तो खोलो 
बोलो कि तुम मात्र एक देह नहीं हो 
दिल है तुम्हारे सीने में जो धड़कता है 
एक आत्मा बसती तुममें भी 
बोलो कि दर्द तुम्हें भी होता है
जब बिन बात सताई जाती हो 
बेवजह कोख में मिटाई जाती हो 
जब दहेज़ के हवन कुंड में 
समिधा बना, जलाई जाती हो तुम। 
 
गर्व करो ख़ुद पर, कि स्त्री हो तुम! 
 
हवस भरी गिद्ध नज़रें 
जब तुम्हारे जिस्म को भेदती हैं 
वासना के पंजों तले 
जब देह से लेकर आत्मा तक रौंदी जाती है 
और उँगलियाँ ज़माने की गुनहगारों की बजाय 
तुम्हारे ही चरित्र पर उठाई जाती हैं 
तब कैसी-कैसी तकलीफ़ें झेलती हो तुम 
 
गर्व करो ख़ुद पर, कि स्त्री हो तुम! 
 
ये सब क्यों नहीं कहती हो तुम 
अरे क्यों चुप रहती हो तुम 
अरे! हाँ बोलोगी भी कैसे 
लब खोलोगी कैसे 
बचपन से तो तुमने ये ही सीखा है 
शर्म स्त्री का गहना है 
कोई कुछ भी कहे कुछ भी करे 
अपनी मर्यादा, लक्ष्मण रेखा में रहना तुम
 
गर्व करो ख़ुद पर, कि स्त्री हो तुम! 
 
संस्कारों की बेड़ियाँ डाले 
घुट घुट के मर जाना 
पर आवाज़ मत उठाना 
वरना लोग क्या कहेंगे 
क्या सोचेंगे क्या समझेंगे 
अरे कोई कुछ नहीं सोचता तुम्हारे बारे में  
न ही कोई तुम्हें कुछ समझता है 
क्योंकि ख़ुद को कुछ नहीं समझती हो तुम 
 
गर्व करो ख़ुद पर, कि स्त्री हो तुम! 
 
कभी देवी बनाकर मंदिरों में बिठाई गयी 
कभी पातुरि बना कोठे पर नचाई गयी 
कभी डायन कहकर 
सरेआम निर्वस्त्र घुमाई गयी 
जब चाहा इन ज़मीं के देवताओं ने 
व्यक्तित्व से तुम्हारे खिलवाड़ किया 
स्वार्थ के लिये मनचाहा रूप तुम्हारा गढ़ दिया 
और उसे ही अपना नसीबा मान बैठी हो तुम 
 
गर्व करो ख़ुद पर, कि स्त्री हो तुम! 
 
माँ हो, बेटी हो 
बहन हो, बीवी हो 
हर रिश्ते तुम्हें याद रहते हैं
पर तुम्हारा ख़ुद से भी, है इक रिश्ता  
इन सबसे परे ख़ुद का भी 
इक अस्तित्व है तुम्हारा 
कि इन सबसे जुदा 
इक व्यक्तित्व है तुम्हारा 
भला ये क्यों भूल जाती तुम
 
गर्व करो ख़ुद पर, कि स्त्री हो तुम! 
 
आख़िर किस बात की कमी है
क्यों ख़ुद को औरों से हीन समझती हो तुम 
महसूस तो करो ज़रा कि देखो 
दुनिया के इस उजड़े चमन में
अपने हुनर की ख़ुश्बू लिये 
किस क़द्र खिलती कली हो तुम 
 
गर्व करो ख़ुद पर, कि स्त्री हो तुम! 
 
पहले ढूँढ़ो तो ख़ुद को फिर देखो 
धरती से लेकर अंतरिक्ष तक 
कामयाबी की इबारत लिखी है तुमने
रचा है ईश्वर ने तुमको अपने ही हाथो से, 
उस ईश्वर की सबसे अनोखी हस्ताक्षर हो तुम 
गर्व करो ख़ुद पर कि स्त्री हो तुम! 

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