अहसासों की नदी
काव्य साहित्य | कविता सुदर्शन रत्नाकर16 May 2007
एक नदी बाहर बहती है रिश्तों की
एक नदी भीतर बहती है अहसासों की।
नदी के भीतर कुछ द्वीप हैं
बन्धनों के नदी में प्राण हैं साँसों के।
नदी उफनती भी है,
नदी सूखती भी है।
कुछ बन्धन हैं काँटों के
कुछ रिश्ते हैं फूलों के
मैंने जीवन में जो बोया है
उसको ही काटा है;
दु:ख झेला और
क़तरा-क़तरा सुख बाँटा है।
अपनों का दिया विष पी-पीकर
अमृत के लिए मन तरसा है;
कितनी नदियाँ झेली हैं बाहर
कितनी नदियाँ झेली हैं भीतर
एकान्त कोने में
मन हरदम बरसा है ।
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