अमर शहीद मैं कहलाऊँ
काव्य साहित्य | कविता प्रो. प्रभा पन्त15 Aug 2025 (अंक: 282, प्रथम, 2025 में प्रकाशित)
अभिलाषा है यह मेरी, मैं अमर शहीद कहलाऊँ
तिरंगे का आँचल ओढ़े, घर अपने वापस जाऊँ।
वीर शहीद अनेक हुए हैं, बहनें सती ही हो पाईं
कर्तव्यपरायण होकर भी, वे बेचारी ही कहलाईं।
अखण्ड भारत की कामना, मैं वीरांगना कहलाऊँ
माँ भारती के चरणों में, शत्रुओं का शीष चढ़ाऊँ।
अभिलाषा है यह मेरी, मैं अमर शहीद कहलाऊँ।
माँ शत्रु की हो या मेरी, ममता का सागर लहराता।
होता माँ का आँचल सूना, बेटा जब वीरगति पाता।
कर्त्तव्य निभाता सैनिक, किन्तु शत्रु क्यों कहलाता?
पूछें बच्चे, मात-पिता, मैं कैसे इनको समझाऊँ?
अभिलाषा है यह मेरी, मैं अमर शहीद कहलाऊँ।
युगों-युगों से निर्बल को, शक्तिशाली कुचलता आया।
बुद्धिमान बुद्धिबल अपने, सहृदय को सदा छलता आया।
अज्ञान, अभिमान, अहंकार ने, हर युग में मन को उलझाया।
कर्त्तव्य-पथ पर चलकर मैं, हर मन की उलझन सुलझाऊँ।
अभिलाषा है यह मेरी, मैं अमर शहीद कहलाऊँ।
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