अंतर्नाद
काव्य साहित्य | कविता उमेश ताम्बी7 Nov 2007
आज हमारे अंतर्मन में ऐसी
एक आवाज उठी
सुनकर जिसको तीव्र गति से
मन की इच्छा जाग उठी
कहा हृदय ने उठो वीर,
अब जागो हुआ सवेरा
समय धर्म और सत्कर्म का
है, जीवन रैन बसेरा
सूरज चाँद सितारे ये
सब देते हमें उजियारा
दिशाहीन मानव है,
जैसे घटा घोर अँधियारा
सुनकर शास्त्र और वेद-पुराण,
हम सबने ये जाना है
मानव जब हो कर्म प्रधान,
ना कभी उसे पछताना है
अंतर्नाद मन का सुनकर,
किया ये निर्णय प्रतिदिन का
कर्म ही सबसे बड़ी क्रिया है,
ज्ञान प्रकाश है जीवन का
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