अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

बाल दिवस और अध्यापक

जैसे कि हम जानते हैं पंडित जवाहरलाल नेहरु के जन्म दिवस 14 नवंबर को बाल दिवस के रूप में पूरे विश्व में मनाया जाता है। यह निर्णय नेहरू का बच्चों के प्रति लगाव को देखकर ही लिया गया था। 

बाल दिवस के दिन स्कूलों में पढ़ाई की जगह खेलकूद या फिर अलग-अलग कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। जिसमें बच्चों और अध्यापकों दोनों का योगदान समांतर रूप में देखने को मिलता है। डॉ. यास्मीन अली हक़, यूनिसेफ इंडिया राष्ट्र प्रतिनिधि ने कहा है “विश्व बाल दिवस एक मनोरंजक दिन होने के साथ-साथ हमें संदेश भी देता है।”

एक अध्यापक एक बच्चे का सर्वांग विकास करता है कभी एक गुरु के रूप में, कभी एक मार्गदर्शक के रूप में, कभी एक दोस्त के रूप में, कभी बड़े भाई या बहन के रूप में और कभी माता-पिता के रूप में। बाल दिवस का अर्थ बस खेलना कूदना ही नहीं है बल्कि बाल दिवस का अर्थ स्कूल में रहते हुए अध्यापक के द्वारा बच्चे की गुणों अवगुणों को भी देखना तथा अपने छात्रों में विकासात्मक गुणों को भरना है। उनको बच्चों के प्रति नेहरू जी की तरह प्यार और लगाव भी रखना पड़ेगा। जिससे बच्चे अपनी हर समस्या को एक दोस्त की तरह अपने अध्यापक को बता सकें और अध्यापक भी एक अच्छे गुरु की तरह अच्छे दोस्त की तरह समस्या को सुने तथा उसका हल भी निकाल के दे। जवाहरलाल नेहरू जी कहते थे, “आज के बच्चे कल का भारत बनाएँगे। जिस तरह से हम उन्हें पालेंगे, वही देश का भविष्य तय करेगा।” बाल दिवस का उद्देश्य पंडित नेहरू को श्रद्धांजलि देने के अलावा बच्चों के अधिकारों, देखभाल और शिक्षा के प्रति जागरूकता को बढ़ाना भी है। आज के समय में बाल शोषण और बाल यौन शोषण सबसे ज़्यादा होता इसलिए अध्यापक का कर्तव्य है उनको बाल अधिकारों का पूरी तरह पता होना चाहिए जिससे अपने छात्रों के साथ होने वाले किसी भी तरह के शोषण से उनको सुरक्षित रख सके। 

इसके लिए भारतीय संविधान में सभी बच्चों के लिए कुछ ख़ास अधिकार सुनिश्चित किये गये हैं:

  • अनुच्छेद 21-कः 6 से 14 साल की आयु वाले सभी बच्चों की अनिवार्य और निःशुल्क प्रारंभिक शिक्षा। 

  • अनुच्छेद 24: 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को जोखिम वाले कार्य करने से सुरक्षा। 

  • अनुच्छेद 39 (घ): आर्थिक ज़रूरतों की वजह से जबरन ऐसे कामों में भेजना जो बच्चों की आयु या समता के उपयुक्त नहीं है, से सुरक्षा। 

  • अनुच्छेद 39 (च): बालकों को स्वतंत्र और गरिमामय माहौल में स्वस्थ विकास के अवसर और सुविधाएँ मुहैया कराना और शोषण से बचाना। 

इसके अलावा भारतीय संविधान में बच्चों को वयस्क पुरुष और महिला के बराबर समान अधिकार भी प्राप्त है। अनुच्छेद 14 के तहत समानता का अधिकार, अनुच्छेद 15 के तहत भेदभाव के विरुद्ध अधिकार, अनुच्छेद 21 के तहत व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार अनुच्छेद 46 के तहत जबरन बंधुआ मज़दूरी और सामाजिक अन्याय और सभी प्रकार के शोषण से कमज़ोर तबक़ों के बचाव का अधिकार आदि शामिल है। 

 मैं अपने शब्दों को विराम देते हुए यही कहूँगा कि आओ मिलकर हम बच्चों के साथ बाल दिवस मनाएँ और साथ ही उनके भविष्य को उज्जवल तथा सुरक्षित भी बनाएँ। तो जो आने वाला हमारा नव भारत उज्जवल तथा सुदृढ़ बन सके। 

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता

नज़्म

बाल साहित्य कविता

सामाजिक आलेख

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं