बाल दिवस और अध्यापक
आलेख | सामाजिक आलेख राजीव डोगरा ’विमल’15 Nov 2022 (अंक: 217, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
जैसे कि हम जानते हैं पंडित जवाहरलाल नेहरु के जन्म दिवस 14 नवंबर को बाल दिवस के रूप में पूरे विश्व में मनाया जाता है। यह निर्णय नेहरू का बच्चों के प्रति लगाव को देखकर ही लिया गया था।
बाल दिवस के दिन स्कूलों में पढ़ाई की जगह खेलकूद या फिर अलग-अलग कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। जिसमें बच्चों और अध्यापकों दोनों का योगदान समांतर रूप में देखने को मिलता है। डॉ. यास्मीन अली हक़, यूनिसेफ इंडिया राष्ट्र प्रतिनिधि ने कहा है “विश्व बाल दिवस एक मनोरंजक दिन होने के साथ-साथ हमें संदेश भी देता है।”
एक अध्यापक एक बच्चे का सर्वांग विकास करता है कभी एक गुरु के रूप में, कभी एक मार्गदर्शक के रूप में, कभी एक दोस्त के रूप में, कभी बड़े भाई या बहन के रूप में और कभी माता-पिता के रूप में। बाल दिवस का अर्थ बस खेलना कूदना ही नहीं है बल्कि बाल दिवस का अर्थ स्कूल में रहते हुए अध्यापक के द्वारा बच्चे की गुणों अवगुणों को भी देखना तथा अपने छात्रों में विकासात्मक गुणों को भरना है। उनको बच्चों के प्रति नेहरू जी की तरह प्यार और लगाव भी रखना पड़ेगा। जिससे बच्चे अपनी हर समस्या को एक दोस्त की तरह अपने अध्यापक को बता सकें और अध्यापक भी एक अच्छे गुरु की तरह अच्छे दोस्त की तरह समस्या को सुने तथा उसका हल भी निकाल के दे। जवाहरलाल नेहरू जी कहते थे, “आज के बच्चे कल का भारत बनाएँगे। जिस तरह से हम उन्हें पालेंगे, वही देश का भविष्य तय करेगा।” बाल दिवस का उद्देश्य पंडित नेहरू को श्रद्धांजलि देने के अलावा बच्चों के अधिकारों, देखभाल और शिक्षा के प्रति जागरूकता को बढ़ाना भी है। आज के समय में बाल शोषण और बाल यौन शोषण सबसे ज़्यादा होता इसलिए अध्यापक का कर्तव्य है उनको बाल अधिकारों का पूरी तरह पता होना चाहिए जिससे अपने छात्रों के साथ होने वाले किसी भी तरह के शोषण से उनको सुरक्षित रख सके।
इसके लिए भारतीय संविधान में सभी बच्चों के लिए कुछ ख़ास अधिकार सुनिश्चित किये गये हैं:
-
अनुच्छेद 21-कः 6 से 14 साल की आयु वाले सभी बच्चों की अनिवार्य और निःशुल्क प्रारंभिक शिक्षा।
-
अनुच्छेद 24: 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को जोखिम वाले कार्य करने से सुरक्षा।
-
अनुच्छेद 39 (घ): आर्थिक ज़रूरतों की वजह से जबरन ऐसे कामों में भेजना जो बच्चों की आयु या समता के उपयुक्त नहीं है, से सुरक्षा।
-
अनुच्छेद 39 (च): बालकों को स्वतंत्र और गरिमामय माहौल में स्वस्थ विकास के अवसर और सुविधाएँ मुहैया कराना और शोषण से बचाना।
इसके अलावा भारतीय संविधान में बच्चों को वयस्क पुरुष और महिला के बराबर समान अधिकार भी प्राप्त है। अनुच्छेद 14 के तहत समानता का अधिकार, अनुच्छेद 15 के तहत भेदभाव के विरुद्ध अधिकार, अनुच्छेद 21 के तहत व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार अनुच्छेद 46 के तहत जबरन बंधुआ मज़दूरी और सामाजिक अन्याय और सभी प्रकार के शोषण से कमज़ोर तबक़ों के बचाव का अधिकार आदि शामिल है।
मैं अपने शब्दों को विराम देते हुए यही कहूँगा कि आओ मिलकर हम बच्चों के साथ बाल दिवस मनाएँ और साथ ही उनके भविष्य को उज्जवल तथा सुरक्षित भी बनाएँ। तो जो आने वाला हमारा नव भारत उज्जवल तथा सुदृढ़ बन सके।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
अगर जीतना स्वयं को, बन सौरभ तू बुद्ध!!
सामाजिक आलेख | डॉ. सत्यवान सौरभ(बुद्ध का अभ्यास कहता है चरम तरीक़ों से बचें…
अध्यात्म और विज्ञान के अंतरंग सम्बन्ध
सामाजिक आलेख | डॉ. सुशील कुमार शर्मावैज्ञानिक दृष्टिकोण कल्पनाशीलता एवं अंतर्ज्ञान…
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
- अंतिम छाया
- अंतिम राह
- अकेलापन
- अघोरी हूँ
- अट्टहास
- अतिरिक्त
- अथाह अनुभूति
- अनदेखे अनसुने
- अनुभूति
- अभी
- अमूक कविता
- अलख निरंजन
- अस्तित्व
- अक़्सर
- आंतरिक ग़ुलाम
- आंतरिक गुनाहगार
- आंतरिक दर्द
- आक्रोश
- आग़ाज़
- आजीवन
- आदत है अब
- आधुनिक घुसपैठिए
- आधुनिक मुखौटा
- आनंदमयी
- आम सी लड़की
- आसार
- आस्तीन के साँप
- आज़माइश
- आज़माइश-2
- इंसाफ़
- ईश्वर की आवाज़
- उड़ने दो
- उड़ान
- उड़ूँगा
- एक दिन
- एक नई दीपावली
- एक पत्र ईश्वर के नाम
- एहसास
- ऐयाश मुर्दो
- काल
- काव्य प्रेम
- काश (राजीव डोगरा ’विमल’)
- किसी ओर से
- कुछ इस तरह
- कुछ तो हो
- कुछ भी नहीं
- कुवलय
- कृष्ण अर्जुन
- कृष्ण पथ
- कोई पता नहीं
- कोई फ़र्क़ नहीं
- कौन सा वक़्त
- क्या कहूँ
- क्या?
- क्षितिज
- ख़्वाहिश
- खोज
- गर्माहट
- गुनाह
- गुनाह मोहब्बत का
- गुरु प्यारा
- चलो केशव
- चहुँ ओर
- जगदंबा स्तुति
- जागो
- जान लिया
- जाने क्यों (राजीव डोगरा ’विमल’)
- जीना सीखो
- जीवंत जीवन
- जीवंत पंथ
- जीवन-मृत्यु
- झूठी यारी
- तलब
- तांडव
- तुम मुझ में
- तुम में हम
- तुमने कोशिश की
- तुम्हारे साथ
- तेरा सानिध्य
- तेरी तलाश में
- दर्द की सज़ा
- दस्तूर
- दिल की गहराई
- दिव्य दृष्टि
- दीप
- दीप
- दृढ़ता की दौड़
- दोस्ती
- दोस्ती का रंग
- दौर
- नई मोहब्बत
- नए साल
- नया वर्ष
- नया साल
- नादान जीवन
- नापाक दर्द
- नासूर
- पथिक
- परवाह छोड़ दो
- पहले
- पिंजरे में बंद मानव
- पीड़ा
- प्रलय
- प्रेम
- फिर से
- बचपन की कहानी
- बताओ ज़रा
- बदलता हुआ वक़्त
- बदलते इंसान
- बदलते जज़्बात
- बदलते रंग
- बदलाव – 1
- बदलाव – 2
- बदलाव – 3
- बदलियां गल्लां
- बरसो न बादल
- बाक़ी है
- बेईमान व्यक्तित्व
- बेचारा आवारा
- भगवती वंदना
- भीतर
- भेड़िये
- भौतिक सत्ता
- मत वहन करो
- मतलबी
- महाकाल
- महाकाल आदेश
- महादानव
- माँ का आँचल
- माँ काली
- मुश्किल
- मृत्यु
- मृत्यु का अघोष
- मृत्यु का अट्टहास
- मेरा ज़माना
- मेरे प्रभु
- मेरे महाकाल
- मेरे शहर में
- मैं कहाँ?
- मैं शनि हूँ
- मैं समय हूँ
- याद रखना
- यादों के संग
- रंग राहु
- रणचंडी
- रहने दो
- रहने दो –01
- राम
- लौट आना
- वजह
- वजह
- वजूद
- वहम
- वास्तविक रहस्य
- वो लड़की हूँ
- व्यक्तित्व का डर
- वक़्त का पहिया
- वक़्त कहाँ
- शेष है
- श्री सिद्धिविनायक स्तुति
- सँभाल लेना
- संस्कार
- सदाशिव
- सन्नाटा
- समय
- सम्मान
- सामंजस्य
- सामना
- सिलसिला
- स्मृति
- स्वतंत्रता
- स्वयं
- हर बार
- हिमाचल गान
- हे! ईश्वर
- हे! वाग्वादिनी माँ
- ख़ुदा करे
- ख़ुदग़र्ज़ी
- ख़्वाहिश
- ज़िंदादिल इंसान
- फ़र्क़
नज़्म
बाल साहित्य कविता
सामाजिक आलेख
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं