प्रलय
काव्य साहित्य | कविता राजीव डोगरा ’विमल’1 Jun 2021 (अंक: 182, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
सुधरो मानव सुधरो
अब भी प्रलय बाक़ी है,
गूँज रहा है जो नाद
महाकाली का,
उसमें काल का अब भी
नृत्य करना बाक़ी है।
बहुत तोड़ी है अहम में
लोगो की नसें,
अभी काल के द्वारा
तुम्हें तोड़ना बाक़ी है।
समझते थे तुमको
सब मानव,
मगर बनकर रह गए
तुम एक दानव।
तभी रण चंडी का हुंकार भर
संहार करना अभी बाक़ी है।
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