बदलते जज़्बात
काव्य साहित्य | कविता राजीव डोगरा ’विमल’1 Mar 2024 (अंक: 248, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
आजकल बदलने लगे हैं
तेरे अल्फ़ाज़
तेरे शहर के मौसम के तरह।
आजकल बदलने लगा है
तेरा अंदाज़
गिरगिट के रंग की तरह।
आजकल बदलने लगा है
तेरा इश्क़
तेरी बे-वफ़ाई की तरह।
आजकल बदलने लगा है
तेरा व्यवहार
तेरी निगाह की तरह।
आजकल बदलने लगे हैं
तेरे जज़्बात
तेरे ल्फ़्ज़ों की तरह।
आजकल बदलने लगी है
मेरी अहमियत
तेरी बदलती सोच की तरह।
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