बाँसुरी
काव्य साहित्य | कविता अनुराधा वर्मा15 Oct 2021 (अंक: 191, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
हर एक सुर बाँसुरी का
एक अलग अंदाज़ होता है
सुखों में बाँसुरी दे नृत्य तो
दुखों में दिल भिगोता है।
बजे जब बाँसुरी कान्हा की
राधा मुस्कुराती है
वही बंसी की धुन सुनकर
वो मीरा गुनगुनाती है।
छिड़े जब तान बंसी की
तो ग्वालन सुख बिसराति है
वही बंसी की धुन सुनकर
ये दुनिया ठहर जाती है।
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