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बँधुआ 

 

कपूर साहब ख़ुश हैं। परिवार ख़ुश है। कपूर साहब के लड़के की बड़ी मशहूर बहुराष्ट्रीय कंपनी में नौकरी लगी है। आख़िर ऊपर वाले ने सुन ही ली। दिन बदलने को हैं। कपूर साहब ने पास के पेड़ पर गाना गाती कोयल की आवाज़ पूरी ज़िन्दगी कभी नहीं सुनी थी, आज वह भी सुनाई पड़ रही है, मीठी लग रही है, गुदगुदी पैदा कर रही है, सिहरन जगा रही है। 

बहुराष्ट्रीय कंपनी ने लड़के को 123 न. सिद्धान्त पर नौकरी दी है। इस सिद्धान्त के पीछे गहरी सोच है, ज़बरदस्त चिन्तन है और बरसों की मेहनत है। विकासशील देशों के मानव शास्त्र, समाज शास्त्र, अर्थ शास्त्र और तमाम छोटे-मोटे शास्त्रों को जमकर मथने के बाद ये अमृत सिद्धान्त पैदा हुआ है। भर्तियों का ये अचूक नुस्ख़ा है, राम बाण हैं। जिन कम्पनियों ने भी इसे अपनाया है, उनका वर्तमान उज्जवल हुआ है और भविष्य तो चमकना तय ही मान लिया गया है। 123 न. का सिद्धान्त कहता है कि एक व्यक्ति, दुगुनी तनख़्वाह और तिगुना काम। यानी अगर एक व्यक्ति को उसकी उम्मीद से दुगुनी तनख़्वाह दे दी जाए तो उससे तिगुना, चौगुना, पंचगुना, यहाँ तक की सौ गुना तक काम आसानी से कराया जा सकता है। 

सिद्धान्त के नतीजे उम्मीद से बढ़कर हैं। कम्पनियाँ गद्‌गद्‌ हैं। 

कपूर साहब का लड़का भी देश के एक उभरते हुए नये चमकदार शहर की भीड़ का हिस्सा बन गया है। तरह-तरह के टारगेट उसके ज़िम्मे हैं। ज़ाहिर है कि ये ग्राहकों की संख्या और रुपये-पैसे से सम्बन्धित ही हैं। लड़के को कुछ ऐसा चमत्कार करना है कि पूरा देश कम्पनी का ग्राहक बन जाये और सम्भव हो तो देश की पूरी दौलत कम्पनी को ट्रांसफ़र हो जाए। कुछ इस क़िस्म के टारगेट लड़के को मिलने वाली दुगुनी तनख़्वाह के आधार हैं। 

लड़का अब उड़ने लगा है। जब कभी वह घर आता है, कपूर साहब उसे लेने हवाई अड्डे ज़रूर जाते हैं। रेलवे स्टेशन की भीड़, गंदगी और खिच-खिच से कपूर साहब को अब मतली आती है। लड़का अब क़िस्म-क़िस्म के आई-फोन, आई-पैड, लैपटॉप, बैटरी पैक और तमाम न जाने कैसे-कैसे यंत्रों से सज्जित रहता है। साँस के बिना तो फिर भी जीवन चल सकता है, मगर इन यंत्रों के बिना तो एक क्षण को भी नहीं, असम्भव!! कपूर साहब इन चमकदार यंत्रों को देख-देख मन्द-मन्द मुस्कुराते रहते हैं, ख़ुश होते रहते हैं। 

लड़का बड़ा ही कर्मठ है। इन यंत्रों पर एक मिनट भी काम नहीं बन्द करता, पता नहीं सोता कब है। उसकी माँ उसकी सेहत को लेकर चिन्तित है। अब वह माँ को जीवन के सत्य समझाने लगा है—कुछ पाने के लिये कुछ खोना पड़ता है माँ!! माँ बड़ी-बड़ी बातें करने वाले अपने लाड़ले को पलकें झपका-झपका कर देखते-देखते निहाल है। 

कपूर साहब का लड़का अब मुहल्ले की शान हो गया है। पाँच-पाँच कोस दूर तक के घरों के लड़के कपूर साहब के लड़के के चक्कर में बापों से पिट रहे हैं, घुड़के जा रहे है। उनकी लानत-मलामत हो रही। देखो कपूर साहब के लड़क को, कुछ सीखो उससे!!! कमबख़्त दिन भर कान में तार ठूँसे गाना सुनता रहता है!!! सबको ईर्ष्या है कपूर साहब से। 

कपूर साहब शर्मा जी को बताते रहते हैं कि सिंचाई विभाग के एक्ज़्यूकिटिव इंजीनियर साहब की बेटी का रिश्ता आया है। 50 देने को तैयार है, गाड़ी अलग से। हमने उनसे हँस कर कहा—भाई साहब, आज कल तो मून रूफ़ वाली एस यू वी का ज़माना है। कपूर साहब के इस गहरे मज़ाक़ में शर्मा जी भी बुझे मन से शामिल हैं। शर्मा जी का लड़का उसी उदास शहर में अभी भी टी ई टी की परीक्षा दे रहा है। 

लड़का फ़्लैट ख़रीद रहा है। बताओ यहाँ चाँद गंजी हो गयी किराये के मकान में जीवन काटते-काटते। अभी लड़का 28 का भी पूरा नहीं है। लड़के को छुट्टी बिल्कुल नहीं मिलती। लड़के की माँ की पिछले दिनों बड़ी तबियत ख़राब रही मगर लड़का एक दिन को भी न आ सका। बेचारे कपूर साहब ही दौड़-दौड़ कर घर-अस्पताल एक किये रहे। शर्माजी का लड़का ही रात को अस्पताल में रुका। 

माँ-बाप का मन है लड़के का नया घर देख आएँ। 14वीं मंज़िल पर है। चारों तरफ़ कैसी सुरक्षा, कैसी हरियाली!! बग़ैर पहचान के तो किसी को अन्दर ही नहीं जाने देते। तैरने की भी जगह है। कपूर साहब शरारत से पत्नी से पूछते हैं—तैरोगी? पत्नी भी उतने ही शरारती भोलेपन से चुनौती देती हैं—तुम ही तैर लो, पूरे कर लो अपने अरमान!! कपूर साहब हँस पड़ते हैं। घर में कैसी साफ़-सफ़ाई, फ़र्श कितनी चिकनी-चमकदार। चौका कैसा सलीक़ेवाला। और बाथरूम तो ऐसा कि आदमी ख़ुशी-ख़ुशी अपनी पूरी ज़िन्दगी वहीं गुज़ार दे। 

मगर लड़के के पास तो एक मिनट का भी वक़्त नहीं। वह तो ढाई बजे रात को भी फोन पर यही कहता सुनाई पड़ता है—सो नहीं रहा था सर, रिपोर्ट फ़ाइनल कर रहा था। ऐसा लगता है कि रात में सोता ही नहीं है या सोने जाने से पहले बॉस से पूछना पड़ता होगा—सर, थोड़ी देर सो लें? उधर से बॉस घुड़कता होगा—अभी तक रिपोर्ट मेल नहीं की और सोने की बात करते हो। देख नहीं रहे हो अभी मैं जगा हूँ। अभी यू.एस. मिस्टर हैरिस से वीडियो कान्फ्रेसिंग होनी है। कम्पनी सोने के पैसे नहीं देती समझे!!! बेचारा फिर रिपोर्ट फ़ाइनल करने लगता है। 

शादी ही करना ठीक रहेगा। शादी से एक दिन पहले ही पहुँचा है लड़का। माँ को बता दिया है शादी के तीसरे दिन ही जाना है। इतनी ही छुट्टी मिली है। माँ चुपचाप सुन लेती है। जानती है—कुछ पाने के लिये कुछ खोना पड़ता है!!! तीसरे दिन ही लड़का बहू को लेकर उड़ गया। बहू कुछ दिन साथ रहेगी, कपूर साहब के ये अरमान अब इस जीवन में तो पूरे होते नहीं लगते। चलो ठीक है, जैसे लड़का ख़ुश रहे। अपनी तो कट ही गई। 
बहू बीच-बीच में फोन करके हाल-चाल लेती-देती रहती है। सास दूर हो तो आज-कल की बहुएँ फोन पर उनको संतोषजनक ढंग से मैनेज कर लेती हैं। सास भी बहू की तारीफ़ करती ही घूमती है। आज बहू ने थोड़ी चिन्ता वाली बात बता दी। लड़के का बी पी बहुत बढ़ा हुआ निकला है, डायबीटिज भी पकड़ में आई है। दवा चल रही है मगर सब कन्ट्रोल में है। कपूर साहब के चेहरे पर चिन्ता की लकीरें हैं। इतनी सी उमर में ये सब बीमारियाँ, सुनता ही नहीं है, बिल्कुल अपनी सेहत का ध्यान नहीं रखता, बताओ!!! माँ ने 16 शुक्रवार का व्रत बोल दिया है। हे भगवान, हे दुर्गा माता, क्या भूल हुई हमसे? आप तो बस जा कर देख आइये बच्चे को!!! 

कपूर साहब लड़के-बहू के पास हैं। खाने की तरह रोज़ कितनी गोलियाँ खा रहा है। मीठे का भी परहेज़ हो गया है। कपूर साहब को याद है मीठे का कितना शौक़ीन था। मंगलवार के दिन हनुमान जी को प्रसाद चढ़ाकर जब मंदिर से कपूर साहब लौटते थे तो लड्डू खाने के चक्कर में उनको दरवाज़े पर ही पकड़ लेता था। अब मीठा मना हो गया। ब्लड प्रेशर भी रोज़ ऊपर-नीचे होता रहता है। लड़का-बहू ज़बरदस्त तनाव में हैं। चिड़चिड़े हो गये हैं दोनों। छोटी-छोटी बात पर लड़ पड़ते हैं। लड़के का काम पहले से भी बहुत ज़्यादा बढ़ गया है। 

ऑफ़िस से लौटकर भी लैपटॉप पर ही जुटा रहता है। उससे हटता है तो मोबाइल फोन पर घंटों टहल-टहल कर न मालूम किससे क्या-क्या समझता रहता है, समझाता रहता है। एक दिन मौक़ा देखकर दबे शब्दों में कपूर साहब ने लड़के से कहा—बेटा ये काम तो तुमको मारे डाल रहा है, न हो तो कोई दूसरा देख लेते!! लड़का झुंझला पड़ता है—कुछ पता भी है आपको? आपको लगता है यहाँ नौकरियाँ पेड़ पर लग रहीं हैं? जितनी सैलरी यहाँ है, उसकी आधी भी कही नहीं धरी!! इस घर की किश्त, गाड़ी की किश्त, फ़र्नीचर की किश्त, पेट्रोल का ख़र्च, मेड की सैलरी, बिल्डिंग का मेंन्टीनेन्स चार्ज और ऊपर से ये रोज़-रोज़ के मेडिकल बिल। ये सब हर महीने देने के बाद मुझे लोगों से उधार माँगने की नौबत आ गई है। इस बीमारी की वजह से मेरा परफ़ॉरमेंस गिर गया है। रिव्यू मीटिंग में बॉस दो बार चेतावनी दे चुका है। नौकरी गई तो बस सड़क पर!! ये ही चाहते है आप?

कपूर साहब चुपचाप गुमसुम बैठे हैं। लड़के के घर का माहौल असहज लगने लगा है। एक-एक पल गुज़ारना भारी लग रहा है। 

उदास कपूर साहब बस से वापस लौट रहे हैं। खिड़की के बाहर देख रहे हैं। याद आ रहा है एक बार ऐसे ही पिताजी के साथ बस से गाँव गए थे। रसूख़दार चाचा के यहाँ दिन भर-रात भर काम में जुटा एक कमज़ोर सा आदमी दिखता था। पिताजी ने बताया था—ये हरिया है, चाचा का बँधुआ। छोटे-से कपूर साहब ने अपने पिता से पूछा था—ये बँधुआ क्या होता है? पिताजी ने बताया था—बेटा, जिसे दिन-रात अपने मालिक की सेवा करनी पड़े और जिसके पास कोई अधिकार भी न हो, वही बँधुआ है। भय, आतंक या किसी शर्त की वजह से ही हरिया जैसों को किसी का बँधुआ बनना पड़ता है। हरिया के पिता ने तुम्हारे चाचा से क़र्ज़ लिया था। हरिया का पिता मर गया। अब हरिया उस क़र्ज़ को जीवन भर चुकाता रहेगा। 

कपूर साहब को बार-बार अपने बेटे का चेहरा हरिया के धुँधलाए चेहरे से मिलता-जुलता दिख रहा है। बस अपनी रफ़्तार से भागी जा रही है। 

खिड़की से बाहर देखते-देखते कपूर साहब का मन ज़ोर-ज़ोर से रोने का कर रहा है। 

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