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रज्जन का सपना 

 

रज्जन ने कई रात पहले एक सपना देखा। बहुत ही डरावना। देखने के बाद से रज्जन की रातों की नींद उड़ गयी। उसे हर क्षण एक भय सताता रहता है कि अगर सपना सच हो गया तो क्या होगा? वह हर पल अपने दिल को समझाता रहता है कि इसका सच होना तो सम्भव नहीं मगर लोग कहते हैं कि भोर में देखा गया सपना सच होता है। और सच तो ये है कि रज्जन ने सपना भोर में ही देखा था। 

रज्जन ने सपने में देखा कि देश में ‘ख़र्चा-पानी’ नामक हथियार की धार कुंद पड़ गयी, बल्कि सरल शब्दों में कहें तो एकदम ख़त्म हो गयी। उसके ख़त्म होते ही देश में त्राहि-त्राहि मच गयी। लोगो में घबराहट फैल गयी। अब क्या होगा? 

रज्जन को भी अपनी चिन्ता सताने लगी। उसके कार्ड का क्या होगा? सभासद जी ने कहा था कि कुछ ‘खर्चे-पानी’ की व्यवस्था कर लेना तो तुम्हारा पता वेरिफ़ाई करा देंगे। जब से गाँव से शहर आया है, “ख़र्चा-पानी’ की व्यवस्था कर लेना वाले रास्ते ही उसके सारे काम हुए हैं। बल्कि जब से पैदा हुआ है यही हथियार उसका कवच बना हुआ है। 

रौनक़ नामक ठेकेदार ने इसी हथियार से प्रभावित होकर शहर में उसके रहने की व्यवस्था की है। रौनक़ ठेकेदार जन कल्याण की बहुत सी योजनाएँ चलाते हैं। जैसे ग़रीबी भगाओ, बेरोज़गारी दूर करो, कौशल विकसित करो आदि, आदि। इन्हीं में से एक योजना है—ज़रूरतमंद लोगों को छत का आसरा देना। 

रौनक़ ठेकेदार ने रेल की पटरी के किनारे की ज़मीन पर सेवा-भाव से जन-हित में बहुत से आशियानों का निर्माण करा दिया है। जन-जन की भाषा में इन्हें झुग्गी-झोंपड़ी कहते हैं। ज़मीन रेलवे की है। ज़मीन की सुरक्षा का ज़िम्मा जिस रेलवे कर्मचारी के पास है, रौनक़ ठेकेदार उसके ‘ख़र्चा-पानी’ की व्यवस्था कर देता है। जब-जब वह ज़मीन का मुआयना करने आता है, ख़र्चा और पानी दोनों मिलकर उसकी दोनों आँखों को ढक लेते हैं और वह लौट कर रिपोर्ट लगा देता है कि ज़मीन सुरक्षित है और रेलवे के क़ब्ज़े में है। जनहित में उठाया गया रौनक़ ठेकेदार का ये क़दम ग़रीबों की सेवा की एक अद्भुत मिसाल है। इस समाज सेवा के बदले में रौनक़ ठेकेदार तमाम रज्जनों से थोड़ा-थोड़ा ‘ख़र्चा-पानी’ नामक दक्षिणा ग्रहण कर लेता है। 

रौनक़ ठेकेदार की पीठ पर सभासद जी का हाथ है। सभासद जी के पास देवी-देवताओं की तरह बहुत से हाथ हैं जो सदा ही तमाम रौनक़ जैसे ठेकेदारों की पीठ पर रखे रहते हैं। कलयुग में संघ ही शक्ति है के आधार पर सभासद जी की शक्ति तमाम रौनक़ ठेकेदार हैं और रौनक़ ठेकेदार की शक्ति तमाम रज्जन। 

उसी रज्जन ने ऐसा भयानक सपना देखा लिया है और तबसे वह थर-थर काँप रहा है। लगता है बुख़ार आ जायेगा। उसे माँ की याद सताने लगी है। माँ तो गाँव में है। हैं तो पिता जी भी गाँव में, मगर परिवार के लिये मरे समान। पिता जी ने अपनी ज़िन्दगी घर की जगह ठेके पर गुज़ारी। उन्होंने छक कर सोमरस पिआ और सोमरस ने एक-एक करके खेत पिए। इस रस के पीने से उत्पन्न असीमित ऊर्जा, उन्हें माँ से लड़ने और गाली बकने का तो भरपूर साहस देती रही मगर जीवनयापन से जुड़े कोई भी कार्य करने का साहस उनके लिए कभी नहीं जुटा पायी। 

ऊर्जा का सद्पयोग उन्होंने एक और महती रचनात्मक कार्य में किया। 11 औलाद देश को भेंट की। देश के विकास और समृद्धि में ये उनका एक बड़ा योगदान रहा। इस महती कार्य में वे इतने लीन रहे कि परिवार नियोजन जैसे किसी समाधान का नाम-पता कभी जान ही न पाए। बीच-बीच में रात गुज़ारने घर भी आते। उनके घर में घुसते ही माँ सहम जाती। उन्होंने माँ से केवल अधिकार की ही अपेक्षा रखी, ज़िम्मेदारी से तो कभी कोई सरोकार रखा ही नहीं। इन 11 औलादों को देश का सम्मानित नागरिक बनाने की ज़िम्मेदारी देश में चल रहीं तमाम कल्याणकारी योजनाओं और माँ के ऊपर ही आ पड़ी। 

पिता को अपने और देश के लिये मरा मान, माँ ने सरकार से विधवा पेंशन देने का अनुरोध किया। ‘ख़र्चा-पानी’ वाला अचूक हथियार ही काम आया। प्रधानजी ने उनके परिवार के हालातों पर द्रवित हो और ‘ख़र्चा-पानी’ नामक हथियार के चौचक इस्तेमाल से आह्लादित हो, भगवान बन कर ये मेहरबानी अता की। 

रज्जन उन्हीं 11 नौनिहालों में से एक है और वर्तमान में परिवार के ख़स्ता हाल को सुधारने की एक असंभव-सी योजना पर लगातार नये-नये प्रयोग कर रहा है। उन्हीं प्रयोगों के तहत वह गाँव से शहर आ पहुँचा है और कुछ बड़ा करने का डौल बिठा रहा है। उसकी म्यान में एक ग़रीबी नामक हथियार है जिसका प्रयोग वह सामने वाले को द्रवित करके परास्त करने में करता है और दूसरा छिपा हुआ मारक हथियार है—वही ‘ख़र्चा-पानी’। दूसरे हथियार का प्रयोग पहले के विफल होने पर ही किया जाता है। 

पिताजी ये अद्भुत और आश्चर्यजनक रहस्य जान चुके हैं कि उनके ज़िंदा रहते ही उनकी पत्नी विधवा पेंशन पा रही है। अब जब भी माँ से उन्हें उनके नाम से मिलने वाली विधवा पेंशन में से अपना हिस्सा हथियाना होता है तो वो पी कर और गुर्रा कर धमकी देते हैं कि वो उसकी पोल-पट्टी बड़े अफ़सरों के सामने खोल देंगे। अधिकांश माएँ, पिताओं के ऐसे भयादोहन से जन्मों से आक्रान्त हैं। इससे छुटकारे के लिये ये माँ इस पिता जी के मुँह पर एक बोतल के जुगाड़ भर का पैसा दे मारती है। अगले दिन फिर आने की धमकी दे कर पिताजी लड़खड़ाते क़दमों से विदा ले लेते हैं। उनसे मुक्त हो कर रोती-कलपती माँ अपने सबसे लायक़ सपूत रज्जन को आज का अपडेट देती है। शहर में रज्जन तो अपने उस भयानक सपने से ही जूझ रहा है। 

उसने अपने इस सपने की चर्चा अपने तमाम संगी-साथियों के बीच उठते-बैठते कर डाली। कुछ तो घबरा उठे हैं मगर सयानों का मानना है कि ये इस देश में तो सम्भव नहीं है। उन ख़ाली जेब वालों ने अरबों-खरबों रुपयों की शर्त लगा ली है कि चाहे दुनियाँ ख़त्म हो जाए, मगर ‘ख़र्चा-पानी’ वाला हथियार कभी ख़त्म नहीं होगा। ये सब सुन कर रज्जन का हौसला कुछ तो बढ़ा है मगर वह अभी भी सशंकित है। रह-रह कर डर जाता है। रात में चौंक कर उठ बैठता है। संगी-साथियों ने कई बार उसे काँपते हुए भी देखा है। 

आख़िर ध्वनि मत से फ़ैसला हुआ कि इसे लाल बुझक्कड़ के पास ले चलो। मान्यता है कि लाल बुझक्कड़ सर्वज्ञाता हैं। इस ब्रह्मांड में घटने वाली हर घटना को वो बख़ूबी जानते हैं और इसीलिए अपना यू-टयूब चैनल चलाते हैं। जिस समय ये टोली रज्जन को लेकर सर्वज्ञाता लाल बुझक्कड़ के पास पहुँची। वह दुनियाँ तक एक अविश्वसनीय व अनूठा ज्ञान पहुँचाने के प्रयास में तल्लीन थे। रज्जन और टोली को थोड़ा इंतज़ार ज़रूर करना पड़ा मगर लाल बुझक्कड़ जी के अद्भुत, आकर्षक और अबूझ से व्यक्तित्व ने उन सबको सम्मोहित कर लिया। लाल बुझक्कड़ जी अपने मोबाइल फोन के सामने बैठकर अजीब-अजीब सी भाव-भंगिमाएँ बना-बना कर कुछ पहेलियाँ सी बुझाते हुए उनके ना समझ में आने वाले उत्तर दिये जा रहे थे। टोली उनका ये नट जैसा करतब देख कर विस्मित थी। रज्जन घबरा गया कि वह कहीं ग़लत परामर्शी के पास तो नहीं आ गया, मगर टोली ने इशारे से आश्वस्त किया कि चैन से बैठो, ज़्यादा उछल-कूद न करो। उछल-कूद के लिए लाल बुझक्कड़ जी ही पर्याप्त हैं। ये दृश्य काफ़ी देर चला। 

समाप्त होने पर सभी ने राहत की साँस ली। 

लाल बुझक्कड़ जी अब टोली से मुख़ातिब हुए और उनके ग़रीबख़ाने पर तशरीफ़ लाने की वजह जाननी चाही। टोली के सर्वश्रेष्ठ सयाने ने जो भी लाल बुझक्कड़ जी को स्याह-सफ़ेद समझाया, उससे उनकी भाव-भंगिमा अचानक बहुत ही गंभीर हो गयी। उनकी गंभीर भाव-भंगिमा देख टोली सकते में आ गयी। थोड़ी देर को सन्नाटा पसर गया। फिर लाल बुझक्कड़ जी ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगे। वह इतना हँसे, इतना हँसे कि हँसते-हँसते दुहरे हो गये। उनको इतना हँसता देख टोली के सदस्य भी भौचक हो धीरे-धीरे मुस्कुराने लगे। रज्जन भी मुस्कुराने का प्रयास करने लगा। उसको विश्वास ही नहीं हुआ कि अपने इस छोटे से जीवन में वो एक ऐसे अलौकिक दृश्य को देखने का गवाह बन गया है जिसकी उसने दूर-दूर तक कभी कल्पना भी नहीं की थी। हँसी का दौर समाप्त हआ। टोली उत्सुकता से लाल बुझक्कड़ जी के संबोधन का इन्तज़ार करने लगी। 

लाल बुझक्कड़ जी के श्रीमुख से जो ब्रह्म वाक्य टोली को सुनने को मिला, उसमें केवल तीन शब्द थे—‘ऐसा सम्भव नहीं’। ये सुन टोली ख़ुश तो हुई मगर लाल बुझक्कड़ जी के इस ठोस नतीजे पर पहुँचने का कारण न जान सकी। हालाँकि उसकी कारण जानने में कोई विशेष दिलचस्पी भी नहीं थी, वो तो केवल नतीजा ही जानने आयी थी। नतीजा तो लाल बुझक्कड़ जी ने पहले ही घोषित कर दिया था मगर फिर भी इस ठोस नतीजे तक पहुँचने के तमाम कारकों की उन्होंने विस्तृत चर्चा की। उन्होंने बताया कि पाषाण युग में भी मानव इस हथियार का इस्तेमाल करता था, इसके पुख़्ता प्रमाण मौजूद हैं। पाषाण युग से सभ्य मानव बनने तक की इस लम्बी यात्रा में मानव ने इस हथियार को बीच में कहीं खो दिया हो ऐसा एक भी उदाहरण इतिहास में मौजूद नहीं है। मानव ने सदा ही इस हथियार को सहेजा है, सावधानी से पाला-पोसा है और नवोन्मेंषों से उन्नतशील बनाया है। किसी भी देश के निर्माण में, प्रगति में इसकी महती भूमिका है। मानव की अतृप्त इच्छाओं, असीमित कामनाओं और अनगिनत महत्वाकांक्षाओं को पूर्ण करने का ये राम-बाण है। इसलिये मानव इस हथियार को छोड़ेगा—‘ऐसा सम्भव नहीं’। टोली को लाल बुझक्कड़ जी का ये विश्लेषण नाम मात्र भी पल्ले नहीं पड़ा, मगर उनके सम्मान में टोली ने जयघोष किया। सभा विसर्जित हुई। 

कुछ ही दिन बाद अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट जारी हो गयी। तमाम देशों को पछाड़ते हुए भ्रष्टाचार की दौड़ में भी भरपूर आगे निकल अपने देश ने सफलता का परचम लहरा दिया और आने वाले वर्षों में बुलंदियाँ छूने की ओर बढ़ चला। ये सब देश के जाबांज़ों की कड़ी मेहनत का प्रताप रहा कि उन्होंने नाक नहीं कटने दी। चहुँ ओर हर्ष-उल्लास छा गया। उड़ती हुई ये ख़बर रज्जन के पास भी आ पहुँची। उसको यक़ीन ही नहीं हुआ। उसका सपना झूठा हो गया। लाल बुझक्कड़ जी ने जैसा कहा था वही सच निकला। उसने लाल बुझक्कड़ जी के सम्मान में श्रद्धा से शीश झुकाया और नाचने लगा। देखते ही देखते एकल नृत्य, समूह नृत्य में बदल गया और रज्जन के सभी साथी झूम-झूम के नाचने लगे। रज्जन ने तुरंत ही माँ को फोन लगाकर आश्वस्त किया कि घबराने की कोई बात नहीं है। हमारे ‘ख़र्चा-पानी’ नामक हथियार को इस वर्ष और बड़ा सम्मान मिला है। देश के अधिक से अधिक संभ्रात नागरिकों में इसके इस्तेमाल का चलन बढ़ गया है। हथियार और अधिक मान्य हो गया है। रज्जन ने और गद्‌गद्‌ होते हुए कहा—माँ, तम्हारी विधवा पेंशन को अब कोई नहीं बन्द कर सकता, कोई भी नहीं!!! 

रज्जन को इतने दिनों बाद इतना ख़ुश जान माँ की आँखें भी भर आयीं। 

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टिप्पणियाँ

Sindhuja mathur 2025/11/12 12:53 PM

Bahut utkrist prayas kiya gaya h.sabhi ko dhanyvad????????

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