बरगद के अंतस में
काव्य साहित्य | गीत-नवगीत सतीश उपाध्याय15 Apr 2023 (अंक: 227, द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)
दूर-दूर पसारे सन्नाटे
और तपती पुरवाई
धरती के उजले पाँवों में
फिर से फटी बिवाई।
सहमे, सहमे कुएँ बावड़ी
रोते ताल तलैया
गौशाला में बिरजू हाँफे
और चौखट पर गैया।
बूढ़े बरगद के अंतस
किस ने आग लगाई
बूँद बूँद को क़त्ल कर गई
सूरज की तलवार
लहरें सारी ख़फ़ा हो गईं
सूख गई जलधार।
चट्टानों की धड़कन चट-चट
पड़ने लगी सुनाई।
भाग रहीं हैं गर्म हवाएँ
वक़्त ये कैसा खौल रहा
गर्म सलाखें लेकर आया
सूरज हल्ला बोल रहा।
मन दर्पण भी चटक गया
लुप्त कहीं परछाईं
दूर-दूर पसरे सन्नाटे
और तपती पुरवाई॥
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