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गमले में अल्फांसो

 

इधर डीडी नगर की कॉलोनी में ये आम चर्चा उफान पर थी कि मंजुला जी के गमले का आम पक गया है। बारी-बारी से आम को देखने वालों का यह कहना था कि गमले में ही पके हुए आम का पीलापन कुछ ऐसे टपक रहा है, जैसे कृष्ण पीतांबर वस्त्र पहने हुए अपने पग बढ़ा रहे हों। 

आम पर ही ख़ास चर्चा इसलिए भी होने लगी थी, क्योंकि उनके किसी परिचित ने उस पके हुए आम की फोटो उसके पैतृक गमले के साथ सोशल मीडिया में शेयर कर दी थी। अब केवल यह तय करना बाक़ी था कि आम की यह प्रजाति कौन सी है? 

गमले के क़रीब ही खड़े शंकर ने कहा—मैं गूगल में सर्च कर तो लूँ, लेकिन इसके पहले इस लटके हुए पके आम की थ्री डायमेंशन फ़िगर चाहिए और उन्होंने अपने मोबाइल से पीले पड़ चुके आम की फोटो तीन बार अलग-अलग एंगल से क्लिक कर ली। फिर मोबाइल में पके हुए पीले आम की फोटो को ज़ूम करके बोले—फोटो देखकर मैं यह दावे के साथ कह सकता हूँ ये यह आम कोई जनरल आम नहीं है बल्कि ख़ास है। इसका चेहरा किसी अवसाद से पीला नहीं हुआ बल्कि यह नेचुरली मिठास का पीलापन है। 

गमले में ही पके, पीले बड़े साइज़ की डाल से झूलते आम की फोटो व्हाट्सएप में वायरल होने के कारण अग्निहोत्री जी को भी पता चल गया था। वे शाम को ऑफ़िस से सीधे मंजुला जी के घर आ गए। बोले, “सही में आम पक गया, मंजुला जी बधाई हो। वैसे मैंने फोटो तो देखी है आम की, वो कोई विशेष प्रजाति है। यह कोई साधारण आम नहीं है बल्कि मैंगो है विशेष प्रकार का।” 

“हाँ यही तो पड़ताल करना है। आज आम पक गया कल टपकेगा भी, इसके पहले बस यह कन्फ़र्म हो जाए कि ये आम किस प्रजाति का है,” मंजुला जी बोलीं।

कालोनी के सोशल वर्कर शंकर प्रसाद बोले, “बायें साइड से मैंने गमले के नीचे से नाईंटी डिग्री से एक ज़बरदस्त फोटो ली है। उससे समझ में आ जाएगा कि यह कौन सी प्रजाति का आम है। आप धैर्य रखिए, बस।” 

“वैसे मेरा ख़्याल है, यह आम, कोई चलताऊ आम नहीं है। कुछ ख़ास ही है,”अग्निहोत्री जी उबासी लेते हुए बोले, “वैसे मैंने आम विशेषज्ञों को फोटो तो सेंड कर दी है उनके अभिमत आने पर अंतिम निर्णय ले लेंगे और फिर आम की प्रजाति तय हो जाएगी।” 

दूसरे दिन अग्निहोत्री जी ऑफ़िस जाने के पहले आम के सम्बन्ध में कोई नई बात जानने के लिए मंजुला जी के घर आ गए। 

“कुछ पता चला?” 

“अभी तो नहीं? जैसे ही पता चलेगा, सबको, मैसेज सेंड कर दिया जाएगा।” 

“देखिए भूलिएगा नहीं, यदि मैं ऑफ़िस के काम में व्यस्त हो जाऊँ तो फोन कर दीजिएगा। व्हाट्सएप में मैसेज कभी-कभी देख नहीं पाता हूँ। जी . . . डेफ़िनेट?” 

“हाँ, हाँ भाई पक्का। आप विश्वास रखिए।”

अग्निहोत्री जी आम वार्ता के कारण आज ऑफ़िस टाइम से 5 मिनट लेट हो चुके थे वे तेज़ी से निकल गए। 

इधर शंकर प्रसाद जी ने ‘चैटजीपीटी’ का भी सहारा लिया और सर्च किया, “उत्तम प्रजाति के आम”। 

देखते ही देखते कई प्रजाति के आम उनके स्क्रीन पर पल भर में आ गए। वे अपनी तीन कोणों से अलग-अलग खींची गई आम की फोटो से, स्क्रीन में आए हुए आम की फोटो का मिलान करने लगे। लेकिन मंजुला जी के गमले में लगे आम की प्रजाति फिर भी फ़ाइनल न हो सकी। 

फिर उन्होंने सर्च किया, “आम की सबसे मशहूर प्रजाति का नाम बताइए”।

फ़ौरन नाम आ गया। आम की सबसे मशहूर प्रजाति है अल्फांसो। 

उनकी बाँछें खिल गईं। आँखों में चमक आ गई। उन्होंने अपने मोबाइल में वो फोटो निकाली जो उन्होंने काफ़ी मेहनत से खींची थी। पहले गमले के नीचे से आम के क़रीब 90 अंश के कोण वाली अपनी फोटो को अल्फांसो आम की प्रजाति से मिलान किया।

थोड़ा बहुत अंतर था, पर उनका दिल नहीं मान रहा था। फोटो काफ़ी मेहनत से खींची गई थी इसीलिए उन्होंने माना कि—गमले वाले आम की फोटो दुनिया भर में मशहूर अल्फांसो आम की ही प्रजाति से मिलती-जुलती है। 
उन्होंने तुरंत अग्निहोत्री जी को फोन कर दिया, “हैलो अग्निहोत्री जी, मुझको लगता है मंजुला जी के गमले में पके हुए बिग साइज़ के मैंगो की प्रजाति दुनिया भर में मशहूर अल्फांसो आम की ही प्रजाति है।” 

अग्निहोत्री जी जल्दी में थे। वे बोले—ऑफ़िस पहुँचकर आपसे इत्मीनान से बात करता हूँ और उन्होंने फोन काट दिया। 

कुछ देर बाद अग्निहोत्री जी का ऑफ़िस से फोन आ गया। 

“जी, अब बोलिए, आप क्या कह रहे थे शंकर प्रसाद जी?” 

“जी मैं यह कह रहा था कि देखिए उलझन दूर हो गई है, कन्फ़र्म ही हो गया है समझिये, यह मानकर चलिए कि आम की प्रजाति को मैंने खोज निकाला है। मेरी खींची गई 90 डिग्री की फोटो दुनिया भर में मशहूर आम की प्रजाति ‘अल्फांसो’ से हू-ब-हू मिलती जुलती है। गमले का आम बाएँ साइड से झूल रहा है और गूगल और ‘चैटजीपीटी’ में जो अल्फांसो आम की फोटो दिखाई पड़ रही है वह भी बाएँ साइड से देखने पर सेम टू सेम दिखाई पड़ती है, इसीलिए मुझे तो पक्का यक़ीन है कि गमले वाला पका आम अल्फांसो प्रजाति का ही आम है।” 

अग्निहोत्री जी भी खोजी प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। वे अपने मोबाइल में ऑनलाइन मोड में ही आम की फोटो लेकर दफ़्तर के बड़े बाबू के पास चले गए बोले, “यह देखिए डीडी नगर की हमारी कॉलोनी के मंजुला जी के छत पर अल्फांसो प्रजाति का आम।” 

आम की प्रजाति उच्च कोटि की थी वह भी दुनियाभर में मशहूर अल्फांसो प्रजाति का। जो इस सीज़न में जल्द ही मार्केट में लांच होने जा रहा था, इसीलिए बड़े बाबू भी आम में इंटरेस्ट लेने लगे। वे आम के बड़े शौक़ीन थे और जानकार भी। बड़े बाबू ने भी कई घंटे अग्निहोत्री जी से आम चर्चा की। 

“देखिए अग्निहोत्री जी आम को यूँ ही नहीं फलों का राजा कहा जाता है। आम की तमाम क़िस्मों में ‘अल्फांसो’ को सबसे अच्छा माना जाता है लेकिन अपने बेहतरीन स्वाद एवं कम उत्पादन की वजह से इसके दाम अक़्सर आम लोगों के पहुँच से बहुत दूर होते हैं। भाई आम खाना है, तो खाना है। पिछले साल इसी सीज़न में मैंने ₹800 प्रति दर्जन के भाव से अल्फांसो को ख़रीदा था।” 

दोनों की बातचीत को पास ही खड़ा दफ़्तर का प्यून रामलाल भी सुन रहा था। 

वे रामलाल की तरफ़ देखते हुए बोले, “रामलाल, इस ख़ास आम का स्वाद तुम्हारे जैसे लोगों के लिए और आम जनता तक पहुँचाने के लिए अब नई मार्केटिंग स्टार्ट हो गई है।” 

“कैसे सर? हम भी वो वाला आम खा सकते हैं क्या?”

“अरे क्यों नहीं रामलाल, अब किसी महँगे इलेक्ट्रॉनिक सामान की तरह आसान मासिक किश्तों में यानी ईएमआई पर अल्फांसो को भी ख़रीद सकते हो। जब उसका स्वाद ही लेना है तो ईएमआई से ले लो।” 

“भाई यह आइडिया बहुत अच्छा है जब हम फ़्रिज़ कूलर जैसी दूसरे इलेक्ट्रॉनिक उपकरण को ईएमआई पर ख़रीद सकते हैं तो फिर आम को क्यों नहीं?

“इस तरह हर कोई इस आम को ख़रीद सकता है। आम आदमी भी अल्फांसो आम खा सकता है। अल्फांसो ख़रीदो उसका स्वाद लो, और किश्त पटाते रहो। हाँ इसके लिए क्रेडिट कार्ड होना चाहिए। बस छह या बारह महीने की किश्त ही तो देनी पड़ेगी।” 

“अरे साहब हम कहाँ?” रामलाल थोड़ा झेंपते हुए बोला

दफ़्तर का समय पूरा हो रहा था। रामलाल जल्दी-जल्दी बिखरी हुई फ़ाइल समेटने लगा। 

अग्निहोत्री जी ने कहा, “अच्छी चर्चा रही बड़े बाबू, चलूँ लौटते हुए मंजुला जी के घर भी जाना है। 
फटाफट एक फोन लगा लेता हूँ।” और वे फिर शंकर प्रसाद को फोन लगाने लगे।

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