भले ही बाग़ तू नीलाम कर दे
शायरी | ग़ज़ल वैभव 'बेख़बर'1 Oct 2024 (अंक: 262, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
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भले ही बाग़ तू नीलाम कर दे
हमारा गुल हमारे नाम कर दे,
है सूरज मुद्दतों से सर के ऊपर
ठिकाना बख़्श दे या शाम कर दे,
बड़ी मग़रूर दौलत हो रही है
ज़रूरत आदमी की आम कर दे,
चमत्कारी कोई र'ब है गर तो
इरादे ज़ुल्म के नाक़ाम कर दे,
मुझे गुलशन का कोई ग़म नहीं है
मेरी मेहनत-कशी गुलफ़ाम कर दे,
मुसीबत देखकर डरने लगें हैं
मुहब्बत का हँसीं अंजाम कर दे
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