इसलिए नाम तक बेख़बर है मेरा
शायरी | ग़ज़ल वैभव 'बेख़बर'1 Oct 2024 (अंक: 262, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
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इसलिए नाम तक बेख़बर है मेरा
मुझको मालुम नहीं क्या हुनर है मेरा,
मुद्दतें हो गयीं उनसे बिछड़े हुए
प्रेम वो आज भी हमसफ़र है मेरा,
फ़िक्र की ही कहाँ मंज़िलों की कभी
रास्तों के हवाले सफ़र है मेरा,
चार दीवार हों, है तमन्ना यही
एक दीवार का नक्श-ए-घर है मेरा,
बैठे-बैठे ख़्यालों में खो जाता है
आज भी उनके दिल पे असर है मेरा
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