अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

भावनाओं और संवेदनाओं का ज्वार है ‘नयी प्रेम कहानी’

 

पुस्तक: नयी प्रेम कहानी
लेखक: कमलेश भारतीय
प्रकाशक: हंस प्रकाशन, नई दिल्ली
वर्ष: 2022 
मूल्य: 250/-रुपये

साहित्य जगत में एक जाना पहचाना नाम है कमलेश भारतीय। अगर हम यह कहें कि पुरानी पीढ़ी से सम्बन्ध रखते हुए भी नयी पीढ़ी के लिए यह लेखक आज भी प्रेरणा प्रदान कर रहा है तो ग़लत नहीं होगा। कमलेश भारतीय की कहानियाँ पढ़ते हुए हम इनके पात्रों में ही खो जाते हैं। केवल खो ही नहीं जाते बल्कि ऐसा अहसास होने लगता है कि सब कुछ हमारे साथ ही घटित हो रहा है। कमलेश भारतीय ने स्वयं यातनाओं को झेला है और अनेक प्रकार की विसंगतियों के बावजूद पहले एक शिक्षक, उसके बाद एक संपादक और अंतत: एक लेखक के रूप में उभरकर सामने आए हैं। 

सुप्रसिद्ध कथाकारा चित्रा मुद्गल ने भूमिका में लिखा है कि एक पीढ़ी जो साहित्य के प्रति समर्पित रही, कमलेश ने उस विरासत को सँभाल लिया है। यह सच है कि समय किसी की प्रतीक्षा नहीं करता और यही बात पुस्तक ‘नयी प्रेम कहानी’ के साथ लागू होती है। पुस्तक में संकलित कहानियों में भावनाओं और संवेदनाओं का ज्वार है। इन कहानियों में व्यक्ति, घर और समाज को विभिन्न दृष्टिकोणों से देखा गया है, उसे जिया गया है और चुनौतियाँ पूरी भी की गई हैं। पुस्तक की कहानियों को पढ़ने के बाद एक पुरानी दुनिया में खो जाने का मन करता है और साथ ही नए जीवन में ख़ुशियाँ ढूँढ़ने के लिए भी हम आगे क़दम बढ़ाने को तैयार होते हैं। 

शीर्षक कहानी ‘नयी प्रेम कहानी’ चाहे एक नायक की असफल प्रेम कहानी है और यह प्रेम कहानी हज़ारों-लाखों दिलों में पनपती रहती है लेकिन उसे बयान ही नहीं किया जाता। कहीं आर्थिक अभाव या असमानता, कहीं क्षेत्रवाद, कहीं बदनामी का डर तो कहीं लव जिहाद का आतंक। हमारे समाज में प्रारंभ से ही प्रेम करना एक घृणित कार्य की श्रेणी में आता है। बहुत से उदाहरण दे-देकर युवाओं को बरगलाया जाता है। प्रसंगवश यह भी पूछना ज़रूरी है कि जो विवाह परिपाटी के अनुसार हुए हैं, क्या वो सब के सब आदर्श बने? कहानी में बार-बार यह प्रदर्शित होता है कि प्रेम गुनाह नहीं है लेकिन सभ्यता एवं संस्कृति में घुली नफ़रत को चाशनी की मिठास में लपेट दिया जाता है। नायक एक दूसरे युवा के मुँह से यह सुनकर कि हम तो पंजाबी हैं और वो लड़की पहाड़ी है, हमारी शादी नहीं हो सकी, नायक भी अपने आपको भी इसी प्रकार की श्रेणी में ले जाता है। हालाँकि नायिका शांता की शादी उसकी माँ पक्की कर देती है क्योंकि वह अपने अंत के निकट है और शांता इस बात को चुपचाप मान लेती है। कहानी में कोई प्रेम प्रसंग नहीं है और न ही वह मिलकर कोई ख़्वाब बुनते हैं। सिर्फ़ नायक अपनी ही कल्पनाओं में उसे अपने साथ रखता है और फिर उसके विवाह पर जाने का निश्चय भी कर लेता है ताकि बाद में भी सम्बन्ध बने रहें। इस कहानी में एक अलग सी विशेषता और भी है और वो है इसमें प्रकृति का ख़ूबसूरत वर्णन। कुछ उदाहरण: 

“किश्ती आगे बढ़ती जा रही है। झील के धुँधलके में, स्याह हो गए पानी में उदास चाँद डगमगाने लगा है—काँपता प्रतिबिंब लहरों के बीच दिखाई दे रहा है।” 

“सुंदरनगर . . . सुनहरी धूप बिलासपुर में ही छूट गई है, हाथ आई है सुंदरनगर की नन्ही-नन्ही बूँदें और काले-काले उड़ते बादल . . . जाने कब बरस जाएँ . . . कहाँ बरस जाएँ . . . कहाँ बरस जाएँ . . .” 

“बाहर बादल सफ़ेद रूई से सफ़ेद हैं। इकट्ठे हो रहे हैं—बरसने के लिए . . . ये भी मेरा साथ देने आ गए हैं। मैं रो आँखों में पी जाता हूँ पर बादल बरस ही उठे हैं।” 

‘नयी प्रेम कहानी’ में ख़ूबसूरत नज़ारे देखने की उत्कंठा और अपने आपको प्रकृति के हवाले कर देने की ज़िद है। इस प्रकार के दृश्यों से कहानी को सहज ही गति मिली है। 

डॉ. नरेंद्र मोहन के नाम समर्पित इस कथा संग्रह में शामिल कहानियों के बारे में लेखक ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि ‘महक से ऊपर’ कहानी उनके सबसे पहले कहानी संग्रह की शीर्षक कहानी है। इस कहानी को पढ़ने के बाद यह साफ़ नज़र आता है कि यदि वरिष्ठ लेखिका राजी सेठ ने अपने समय के जाने-माने कथाकार महीप सिंह को इसे छपवाने न दिया होता तो कमलेश भारतीय के साहित्य संसार को वहीं विराम लग गया होता। आज भी इस कहानी को पढ़ते समय आँखों के सामने वो पिता आकर खड़ा हो जाता है जो अपनी बेटियों के लिए हमेशा ख़ुशी और सुकून तलाश करता है। उसके भीतर के द्वंद्व को एक बेटी का पिता ही महसूस कर सकता है। यह मान लिए जाने के बावजूद कि रिश्ते ऊपर से बनकर आते हैं फिर भी एक परिवार की लड़की के ब्याह के बाद भी माँ-बाप उसके एक सुखी परिवार की कामना करते नहीं थकते। कहानी में पूर्व में ब्याही गई घर की लड़कियों के जीवन से सबक़ लेते हुए सबसे छोटी लड़की को वह क़िस्मत के भरोसे छोड़ने को तैयार नहीं हैं। वास्तव में कुछ तो मिट्टी की महक से ऊपर है। कहानी एक पिता की तमाम संवेदनाओं को प्रकट करने में सक्षम दिखाई पड़ती है। 

कहानी लिखने की कला तो लेखक में कूट-कूट कर भरी हुई है और उससे भी अधिक सार्थक बन पड़ा है किसी पाठक को कहानी के साथ बहाकर ले जाना। पाठक एक पसोपेश में रहते हुए ‘उसके बावजूद’ कहानी को अंत तक जल्दी से पढ़ लेना चाहता है। यह कहानी एक भाई और एक बहन के निश्छल प्रेम की पराकाष्ठा है। बहन के जीवन की कुछ समस्याओं से भाई परिचित तो है लेकिन उसके अंदर की एक और कथा से वह अनजान है। बहन उसे एक कथा के रूप में अपनी जीवन गाथा सुनाती हुई एक नई राह बुनने लगती है। इस कहानी से हम इतना भर तो जान ही लेते हैं कि हमारा अतीत हमें छोड़ता नहीं है। कहानी में हम पाते हैं कि उसकी दीदी बार-बार अतीत में लौटती दिखाई देती है। प्रेम के प्रति रुझान एक सामान्य चीज़ है लेकिन प्रेम में जीना उससे कहीं बिलकुल अलग है। विभिन्न उतार-चढ़ाव कहानी को बोझिल नहीं बनाते और यही विशेषता इसे आम कहानियों से अलग करती है। 

‘नयी प्रेम कहानी’ में उनकी ताज़ातरीन कहानियाँ ‘पड़ोस’, ‘अपडेट’ और ‘जय माता पार्क’ संकलित हैं। इन कहानियों में हमारे आस-पास का आधुनिकीकरण दिखलाई पड़ता है। देश में मीडिया की गिरती साख को महसूस किया जा सकता है। निश्चित रूप से गंदी और स्वार्थ की राजनीति हमारे यहाँ इस क़द्र हावी हो गई है कि एक ईमानदार अधिकारी अपने आपको चारों ओर से घिरा हुआ पाता है। फटाफट और सबसे पहले हम की दुर्भावना ने पत्रकारिता के स्तर को गर्त में ले जाने का प्रयास किया है। ‘अपडेट’ और ‘जय माता पार्क’ इसी प्रकार की कहानियाँ हैं जिनमें आजकल का माहौल हम देख सकते हैं। ‘पड़ोस’ कहानी में एक तरफ़ तो भावनाएँ और संवेदनाएँ हैं जबकि दूसरी तरफ़ केवल अपने बारे में सोचने की प्रवृत्ति भी है। यह ठीक है कि हालात हमेशा एक जैसे नहीं रहते फिर भी, यह सोचकर दुख होता है कि इन्सान के भीतर सबक़ुछ मर चुका है। यह भी ठीक है कि भविष्य हम नहीं देख पाते लेकिन जब मजबूरी हावी हो जाती है तब सभी मान्यताएँ और परम्पराएँ स्वतः ही ढह जाती हैं। कोई किसी की मदद के लिए आगे नहीं आता और जो आते हैं उनको भी शक की निगाह से ही देखा जाता है। फलतः हर आदमी अकेला पड़ जाता है और भटक भी जाता है। 

‘किसी भी शहर में’ कहानी के भीतर चारों ओर एक अजीब सा तनाव फैला हुआ है। यह किसी अकेले का तनाव नहीं है। इस तनाव में राशन की चिंता भी है। एक दहशत भरे माहौल में जब नायक बच्चों के लिए कुछ खाने-पीने का सामान लेने के लिए बाहर निकल पड़ता है तब पाठक भी भयभीत रहता है। जब मौत सिर पर नाचती दिखाई देती है तो डर तो लगता ही है। यही बात नायक को समझाई जाती है तो वो मौत को किनारे रख देता है और खुले आम राशन की खोज में घूमता है। 

एक और कहानी भी तनाव से भरपूर है मगर उसमें एक बच्चे की ज़िद है कि पिकनिक पर जाना ही जाना है। इस तनाव से मुक्त हो जाने पर बच्चे के चेहरे पर ख़ुशियों के फूल खिल जाते हैं और बच्चे का नाना भी सोचने लगता है कि ‘कब गए थे पिकनिक पर’। वास्तव में इस तनाव भरी दुनिया में हम अपने लिए, अपने बच्चों के लिए और इस समाज को ख़ुशनुमा बनाने के लिए समय कहाँ निकाल पाते हैं। आख़िर इतनी व्यस्तता किस काम की? 

‘बस, थोड़ा सा झूठ’ कहानी पूरी तरह दर्द से भरी हुई है। जिसके सीने में दर्द है, वह बुज़ुर्ग है और आशावादी भी है और उसे विश्वास है कि यह सभी दुख-दर्द एक न एक दिन दूर हो जाएँगे। उसकी इसी आशावादिता को बनाए रखने के लिए एक मित्र दूसरे मित्र से यह वादा लेता है कि पीड़ित व्यक्ति के लिए थोड़ा सा झूठ बहुत बड़ा संबल है। कहानी के भीतर से हम सबके जीवन का सच उभर आता है और यही सच इस कहानी में साँस भरने का काम करता है। 

‘नयी प्रेम कहानी’ की कहानियों के संवाद हमें उकसाते भी हैं और बहुत सी मजबूरियों से हमारा परिचय भी कराते हैं। इन कहानियों में रिश्तों का आदर मुखरित हुआ है जबकि विभिन्न पात्रों में कशमकश भी मौजूद है। यह कहानियाँ केवल घर में घटित होने वाली कहानियाँ नहीं हैं। इन कहानियों की घटनाओं को हम हमेशा अपने आस-पास देखते हैं। दरअसल इस संसार में किसी के जीवन की ख़ुशियाँ और किसी का सुख दूसरे से देखा नहीं जाता। इन कहानियों को पढ़कर लगता है कि अगर जीवन में समझौता नाम का शब्द नहीं होता तो न जाने अभी तक कितने घर टूट गए होते, प्रेम बदनाम हो गया होता, रिश्ते तार-तार हो गए होते और नव निर्माण की तो कल्पना ही नहीं होती। कमलेश भारतीय की कहानियों को पढ़ने पर अहसास होता है कि वह यह सब भुगत चुके हैं। सच तो यह है कि हम सब लोग भी इस जीवन की उधेड़बुन से बाहर नहीं निकल पाते हैं। सभी कहानियों के पात्र सहज ही हमारे इर्द-गिर्द मँडराते दिखाई देते हैं। इन कहानियों में कोरी कल्पना नहीं बल्कि एक ऐसा यथार्थ है कि हम उससे मुँह मोड़ने का साहस ही नहीं कर सकते। ‘नयी प्रेम कहानी’ पुस्तक प्रेम करने लायक़ है। 

विभिन्न कहानी संग्रहों, लघु-कथाओं और अन्य पुस्तकों के रचयिता कमलेश भारतीय की ‘नयी प्रेम कहानी’ को हँस प्रकाशन ने प्रकाशित किया है जिसका ख़ूबसूरत आवरण कुँवर रवीन्द्र ने तैयार किया है। 

मुकेश पोपली
'स्वरांगन', ए-38-डी, करणी नगर
पवनपुरी, बीकानेर-334003
मोबाइल: 7073888126
swarangan38@gmail। com

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

ऐतिहासिक

पुस्तक समीक्षा

हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी

कविता

कहानी

लघुकथा

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं