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बूढ़े पेड़ का दुख

 

छाँव में जिसकी खेले बचपन, 
जिसकी छाया में बीते जीवन, 
आज वही पेड़ खड़ा अकेला, 
बता रहा है अपना मन का ग़म। 
 
टहनी-टहनी बिखरी स्मृति, 
पत्तों में छुपी हैं कहानियाँ कितनी। 
कभी था वह गाँव की शान, 
अब अनदेखा, जैसे अनजान। 
 
जड़ें कहती हैं, “मैंने सींचा, 
हर धूप-छाँव में तुमने सीखा। 
फिर क्यों आज तुम भूल गए, 
मुझसे मुँह मोड़ दूर हो गए?” 
 
न खेलते अब बच्चे झूले, 
न कोई थक कर आ बैठता है। 
कभी जिस तने से लगते थे दिल, 
अब उसी पे कुल्हाड़ी चलती है। 
 
कहता है पेड़—
“मैं बूढ़ा हूँ, पर जीवित हूँ, 
हर पत्ता अब भी कविता लिखता है। 
मुझे मत काटो, मत ठुकराओ, 
मैं तुम्हारे कल के लिए जीता हूँ।”

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