काश! मैं वृक्ष होता
काव्य साहित्य | कविता डॉ. मुल्ला अदम अली1 Apr 2025 (अंक: 274, प्रथम, 2025 में प्रकाशित)
रंग बिरंगे पुष्प खिलाता
मन भावन ख़ुश्बू फैलाता।
बिन माँगे ही फल देता
कुछ ना अपने लिए बचाता।
परोपकार में होता दक्ष
काश! मैंं बन जाऊँ वृक्ष।
प्रेम सुधा बरसात सब पर
चाहें खग हो, चाहे चौपाया।
नव जीवन भर देती सब में
मेरी ठंडी, शीतल छाया।
करता न्याय होकर निष्पक्ष
काश! मैंं बन जाऊँ वृक्ष।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
बाल साहित्य कहानी
किशोर साहित्य कहानी
कविता
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं