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चमत्कार 

 

तीन दिन से पूरे नगर में धूम मची हुई थी। कोई बहुत पहुँचे हुए सिद्ध बाबा बालकदास आये हुए थे। महाज्ञानी, तपस्वी भूत भविष्य के जानकार। योग शक्ति से आपका नाम जानकार आपको अपने पास बुलाते हैं फिर चेहरा देख कर आपकी समस्या और समाधान बता देते हैं। खुले आकाश की ओर देख कर भगवान् से बात करते हैं। नगर के हर चौराहे पर यही चर्चा थी। 

रोज़ाना बढ़ती भीड़ इस बात का सूचक थी कि बाबा में शक्ति है। नगर के महेश्वरी स्कूल की लम्बी-चौड़ी छत पर बाबा के भक्तों का दरबार सजता था और अलग-अलग समस्याओं से परेशान लोग अपने दुखों के निवारण के लिए बाबा की शरण में आ रहे थे। 

सैंकड़ों हज़ारों की भीड़ में बाबा अचानक किसी भक्त को नाम लेके बुला लेते थे फिर ख़ुद ही आकाश की और भगवान् से बातें करते हुए उसकी गोपनीय समस्या भी बता देते थे, साथ ही उसका समाधान भी। 

सभी लोग उनके इस चमत्कार से अचंभित और श्रद्धा से परिपूर्ण हो जाते थे। मैं अपने स्वभाव के अनुसार इस अवसर को भी टाल देता और वहाँ ना जाता। लेकिन पत्नी के ज़बरदस्त दबाव के साथ पड़ोसी एसडीओ गुप्ता जी के आग्रह के कारण मुझे सोचना पड़ा और अंततः एक दिन हम चारों प्रातः 9 बजे बाबा के दर्शन के लिए चल पड़े। 

मुझे तो उन दिनों कोई समस्या नहीं थी जो बाबा से पूछता या निवेदन करता। किन्तु उनके दर्शन और आशीर्वाद कि जिज्ञासा थी। हाँ, पड़ोसी गुप्ता जी ज़रूर परेशान थे। उनके पास वैसे तो अच्छी नौकरी, भरपूर पैसा, अच्छा स्वास्थ्य सब कुछ था परन्तु उनकी तीन-तीन लड़कियाँ थीं कोई लड़का नहीं। बस यही दुःख उनको और भाभी जी को दिन-रात सताता था। अतः उनको बाबा की कृपा की बहुत आवश्यकता थी। 

हम लोग महेश्वरी स्कूल पहुँचे। बाबा का बैठक स्थल ऊपर था काफ़ी लोगों का आना-जाना था, भारी भीड़ थी। स्कूल भवन को समाज के लोगों ने बहुत अच्छा सजा रखा था। सीढ़ियाँ चढ़ते-चढ़ते मेरी नज़र छत पर गई। छत के एक ओर बाबा का बैठक स्थान बनाया गया था, वहाँ भगवान् श्री कृष्ण का बड़ा-सा फोटो लगा हुआ था काफ़ी भक्तगण लगभग 600-700 के करीब बड़ी श्रद्धा से बेठे थे। सीढ़ियों के दाहिनी और बाल गोपाल श्री कृष्ण का एक छोटा-सा मंदिर बना था; जहाँ श्री कृष्ण की सुन्दर मूर्ति विराजित थी। सभी भक्तगण उस मंदिर में भगवान् के दर्शन करते हुए बाबा की बैठक में जा रहे थे। 

हम लोगों ने भी उस मंदिर में भगवान् के दर्शन किये। बाबा के दो-तीन शिष्यों ने उक्त मंदिर सम्हाल रखा था। उन्होंने हमें प्रसाद दिया हमारे हालचाल पूछे हमारी समस्या जानकर हमें विश्वास दिलाया कि सब दुःख बाबा दूर कर देंगे, आप बाबा की शरण में जाओ। हम लोग भी औरों के समान बाबा के दरबार में बेठ गए। क़रीब 9:30 पर सिद्ध बाबा बालकदास जी पधारे। उनकी यही दिनचर्या थी। 9:30 पर पूजा-पाठ से निवृत हो कर बैठक में पधारते फिर दो घंटे तक बहुत से भक्तों को बुलाते उनकी समस्या बताते और उसको दूर करने के उपाय भी। 

पीली रेशमी धोती कुरता पहने, उन्नत ललाट लम्बे बँधे केश और चन्दन का तिलक बाबा बड़े प्रभावशाली व्यक्तित्व के स्वामी थे। बाबा के आते ही उनका जयजयकार हुआ। बाबा ने भगवान् श्रीकृष्ण की जयजयकार लगवाई कुछ प्रार्थना की तत्पश्चात् उनका मुख्य कार्य शुरू हुआ। मैं बड़ी तन्मयता से एकाग्रचित्त होकर बाबा के भक्तजनों को, श्रीकृष्ण के मनमोहक फोटो को उत्सुकता से देखते हुए आगे क्या होगा ये सोच रहा था। तभी बाबा ने आकाश की और देखा, एक हाथ हवा में ऊँचा किया नज़रें ऊपर कीं और ऐसे जमाईं जैसे कुछ देख रहे हों फिर मुस्कुराते हुए, “आहाहा बाल-गोपाल बड़ा सुन्दर लग रहा है, मुझे शक्ति दे प्रभु तेरे भक्तों की ख़बर लूँ, उनकी तकलीफ़ दूर करूँ।” एसा कहते हुए 1 मिनिट के लिए आँखें मूँद लीं फिर आँखें खोल कर आवाज़ लगाई, “श्याम बाबू . . . श्याम बाबू इधर आओ।” बेठे जनसमूह ने एक दूसरे की तरफ़ नज़रें दौड़ाईं। कौन है कहाँ है श्याम बाबू? तभी बाबा ने फिर दोहराया श्याम बाबू पोस्ट ऑफ़िस वाले। 
 तभी एक दिशा में श्याम बाबू खड़े हुए और बाबा के आसन तक पहुँच गए। 

मैं पहचान गया सिटी पोस्ट ऑफ़िस वाले श्याम बाबू थे। श्याम बाबू जाकर बाबा के सामने बैठे। बाबा ने फिर आसमान की ओर देखा, “गोपाल, श्याम बाबू बहुत परेशान हैं, क्यों परेशान हैं? नौकरी का लफड़ा है, क्या? क्या कहा नौकरी से सस्पेंड है? 

“क्यों श्याम बाबू? क्या नौकरी से सस्पेंड हो?” 

श्याम बाबू सकते में आ चुके थे चार दिन पहले ही सस्पेंड किया गया था, किसी हिसाब की गड़बड़ में। बाबा को कैसे पता चला, जबकि नगर के कई लोगों को बिलकुल पता नहीं था मुझे भी नहीं पता था। 

श्याम बाबू ने सर हिलाया, “हाँ, बाबा मुझे सस्पेंड कर दिया है जबकि मेरी कोई ग़लती नहीं थी।”

बाबा ने फिर आकाश की और देखा, “गोपाल, श्याम बाबू की कोई ग़लती नहीं है तो ये क्यों दुःख पा रहे हैं। इसके उद्धार का रास्ता बता। बता गोपाल।” 

एक मिनिट ध्यान में आँखें बंद कर फिर बाबा ने श्याम बाबू पर पानी के छींटे मारे और उपाय बताया, “21 दिन तक जो मन्त्र दे रहा हूँ उसका जाप करो गुरुवार का व्रत करो—और फिर 21 ब्राह्मण बुलाकर उन्हें भोजन करवाओ, तू फिर से बहाल हो जाएगा। सारी तकलीफ़ें दूर हो जायेंगी।” 

श्याम बाबू अभिभूत हो उठे! उपस्थित जन समुदाय ने जयजयकार किया; श्याम बाबू उठे तभी बाबा ने फिर आकाश की और देखा और आवाज़ लगाई, “पार्वती बाई? कौन है पार्वती बाई?” 

पार्वती बाई उठी और बाबा के पास जा बैठी। मैं और सभी देख रहे थे, चौक बाज़ार वाली पार्वती बाई जिसका बेटा पिछले छह माह से कहीं चला गया था। क्या बाबा इसको भी बता देंगे की इसकी क्या समस्या है और क्या निदान है? तभी बाबा ने आकाश की इंगित होकर बात की फिर बोले, “पार्वती क्या तेरा लड़का छह महीने से घर से ग़ायब है?”

“हाँ बाबा,” रो पड़ी पार्वती। 

“उसे कुछ ग्रहों ने बहका दिया है। ठहर जा बताता हूँ वो कहाँ है?” 

“बताओ महाराज उसे वापस बुला दो,” पार्वती ने बाबा के पैर पकड़ लिए। बाबा ने फिर आकाश की ओर देखा, “तेरा बेटा यहाँ से 100 किलोमीटर की दूरी पर है पश्चिम दिशा में। मैं ये व्रत बताता हूँ, ११ दिन करेगी बेटा वापस घर आ जायेगा। जा व्रत की तैयारी कर। मेरा चेला आएगा तेरे घर वो सब विधि-विधान बता देगा।” 

पार्वती बाई धन्य हो गई बाबा की जय हो! जय हो! बोलती रोने लगी। हम सभी अचम्भित थे बाबा को यहाँ आये लोगों के नाम भी मालूम थे, उनकी समस्या भी और उनका निदान भी। 

पार्वती बाई के बाद नगर के रामलाल सेठ, विशाल साहू, बनवारी पान वाला और 2-3 दूसरों के नाम बाबा इसी तरह से बुलाते रहे उनकी समस्या बताते और उसका उपाय भी साथ में बाबा ऐसी कुछ बातें भी बताते जो किसी दूसरों को मालूम नहीं थीं। मैं जो इन बातों में ज़रा-सा भी विश्वास नहीं रखता, बहुत आश्चर्य में था। मेरे मन में एक कुतर्क ने जन्म लिया, हो सकता है ये लोग बाबा से मिले हुए हों। तभी मेरे कुतर्क को धूल में मिलाते हुए एक आवाज़ गूँजी, “गुप्ता जी?” अब मैं बुरी तरह से चौंका। मैंने गुप्ता जी की ओर देखा, गुप्ता जी भी चौंके, गुप्ता जी ने मेरी और देखा, क्या करें? मैंने कहा, “जाओ तो सही देखें क्या होता है।” 

तभी भीड़ में से एक और व्यक्ति खड़ा हुआ वो भी कोई गुप्ता ही था दोनों ने ठिठकते हुए बाबा की और देखा बाबा ने दूर आकाश में आँखें गड़ाईं, “अरे भाई वो एसडीओ गुप्ता इरिगेशन वाला, वो आये।” 

गुप्ता जी बड़े चमत्कृत हुए और बाबा के पास चल पड़े। मेरी तो हालत ख़राब थी। तभी बाबा ने आदेश दिया, “अपनी पत्नी को भी बुलाओ वो भी आई है न।” 

हमारी ही तरह एक अविश्वास युक्त श्रद्धा में डूबी भाभी जी भी जाकर गुप्ता जी के पास बैठ गई। मेरा दिमाग़ अब घूम रहा था। मैं जानता था कि गुप्ता जी बहुत बुद्धिमान स्पष्टवादी एव दृढ़ व्यक्ति थे, भावुक नहीं। वे कभी बाबा से पहले नहीं मिले। गुप्ता जी को क्या समस्या है ये मैं तो जानता था पर किसी को ज़्यादा ये बात मालूम नहीं थी क्योंकि उन्हें ट्रांसफ़र होके आये को एक साल से ज़्यादा भी नहीं हुआ था। ख़ैर देखें बाबा क्या बताते हैं? मैंने उधर गौर किया। 

बाबा ने आकाश में स्थित उनके इष्ट गोपाल से बातें कीं, “अच्छा, अच्छा जय हो तेरी” ये कहते हुए बाबा गुप्ता जी की और घूमे। “क्यों बेटा तीन-तीन बेटियाँ हैं तेरी?”

“हाँ महाराज।”

“कोई बेटा नहीं?”

“नहीं है महाराज।”

“तो बेटा चाहिए, भगवान् पर विश्वास करते हो गुप्ता जी?”

“जी करता तो हूँ।”

“करते हो पर कम करते हो। कोई बात नहीं अब करोगे जब एक साल बाद तुम्हारे घर में गोपाल की किलकारी गूँजेगी।” 

गुप्ताजी भावुक हो चले थे, भाभी जी की आँखें तो आँसुओं से भीग गईं थीं। वो बाबा के पैरों में नत हो चुकी थीं, मैं भी अवाक् था—बाबा को ये सब कैसे मालूम? 

फिर बाबा ने गुप्ता भाभी को पिछले जन्म की उनकी कोई भूल बताई, जिसके कारण उन्हें बेटे का सुख प्राप्त नहीं हुआ। निदान के लिए एक व्रत और कुछ दान पुन्य का उपाय बताया। इस बीच 10:30 होने वाले थे। मुझे ऑफ़िस जाना था, हम दोनों पति-पत्नी वापस चल दिए। गुप्ता जी अभी वहीं थे। मैं दिन भर ऑफ़िस में रहा लेकिन मेरा दिमाग़ बाबा के बारे में ही सोचता रहा। शाम को घर आया तो एक बात और पता चली कि मेरे जाने के बाद मेरा भी नाम वहाँ पुकारा गया था बैंक वाले बाबूजी . . .! 

अब तो में ज़बरदस्त सोच-विचार में पड़ गया। क्या बाबा के पास कोई शक्ति है? वो कैसे जान जाते हैं हर किसी के बारे में? बाबा के भक्त कहते हैं जिसका मन साफ़ है, जो बाबा में श्रद्धा रखता है उसी का नंबर लगता है। लोग-बाग अपनी अपनी समस्या लेके रोज़ वहाँ जाते हैं कुछ लोगों के नंबर लग जाते हैं। बहुतों के नंबर नहीं आते हैं, बहुत से निराश जन बाबा के दरबार के अलावा भी उनसे मिलने लगे। उन्हें अपना दुःख दर्द बताने लगे और बाबा उन्हें भी प्रेम से निदान बताते। यद्यपि कुछ लोगों के निदान बड़े महँगे होते पर मजबूर लोग क्या करते सब कुछ जो बाबा बताते, वे करते। 

इन सब के बीच मैं बहुत परेशान था। मेरा दिमाग़ यह मानने को तेयार नहीं था कि बाबा के पास ऐसी कोई शक्ति होगी। लेकिन प्रत्यक्ष तो देखा था सब कुछ, सारा घटनाक्रम, जनता की अपार श्रद्धा, रोज़ाना बढ़ती भीड़ आख़िर क्या है? मैं रात भर सो ना सका। 

अगले दिन पुनः बाबा के दरबार में बैठने चल दिया। इसी दौरान घटी एक साधारण-सी बात पर मैंने ग़ौर किया। काफ़ी सोच-विचार करते-करते अचानक मैं चौंक पड़ा। एक बिंदु ऐसा आया कि मैं सशंकित हो उठा, हो सकता है बाबा की शक्ति का यही राज़ हो! पक्का नहीं था लेकिन मेरे दिमाग़ में आशंका ने जन्म ले लिया था। 

अगले दिन सुबह में एसडीओ गुप्ता जी के घर गया, भाभीजी बड़ी श्रद्धा भक्ति से बाबा के बताये व्रत को कर रही थीं। दो घंटे की पूजा के बाद सारा चढ़ावा प्रसाद और भेंट बाबा के यहाँ भेज रहे थे। मैंने गुप्ता जी को साथ में लिया चौंक में पहुँच कर नगर के बड़े सेठ धनराज और उनके नौकर शम्भू को लेकर बाबा के दरबार की ओर चल पड़ा। रास्ते में नगर के चार-पाँच सेठ लोगों से चर्चा कर उन्हें अपनी आशंका बताई और एक योजना बनाई। धनराज सेठ का नौकर शम्भू एक ग़रीब आदिवासी था लेकिन सेठ के यहाँ बचपन से नौकर था। सेठ का ख़ास था, खाता-पिता हष्टपुष्ट प्रभावी शरीर का मालिक था। आज भी सेठ के पुराने कपड़े पहने कहीं से भी नौकर जैसा तो लग ही नहीं रहा था। मैंने उसे अलग ले जाकर 10 मिनिट तक अपना प्लान समझाया। और हम सब चल पड़े बाबा के दरबार में। 

आज भी भक्तों की भीड़ भरपूर थी। छत पर जाने के लिए हम चढ़ावे चढ़ रहे थे। बाबा के एक दो शिष्य आने वाले भक्तों को चढ़ावे के साइड में स्थित मंदिर में बालगोपाल के दर्शन करवाकर प्रसाद दे रहे थे। हम चारों भी उधर ही घूमकर मंदिर में बालगोपाल के सामने बैठकर दर्शन करने लगे। मंदिर के पुजारी बाबा की ही मण्डली के सदस्य थे। उन्होंने हमें प्रसाद दिया बातों-बातों में पूछा कहाँ से आ रहे हैं क्या करते हैं? भगवान् की कृपा तो है कोई कष्ट तो नहीं आदि आदि। मैं पुजारी के प्रश्नों और हरकतों पर ग़ौर कर रहा था तभी धनराज सेठ का नौकर शम्भू मेरे बताये अनुसार शुरू हो गया। 

शम्भू ने पुजारी के पैर पकड़ लिए, रोने लगा भर्राए गले से बोला, “भोपाल से आया हूँ महाराज दिनकरराव नाम है मेरा, लोहे का व्यापारी हूँ बहुत बड़ी दुकान है। किसी ने पुलिस में रिपोर्ट डाल दी कि चोरी का माल रखता हूँ पुलिस ने छापा मारा दुकान सील कर दी। दो लाख का माल ज़ब्त हो गया है, महीने भर से भटक रहा हूँ। बाबा का प्रताप सुना तो दर्शन करने चला आया मेरा दुःख दूर करो महाराज।” 

पुजारी ने शम्भू को सांत्वना दी, “सब ठीक हो जायेगा। बाबा से आशीर्वाद लो, जाओ।” 

हम लोग उठे छत पर जाकर एक स्थान पर बैठे। मेरी योजना का प्रथम चरण सफलतापूर्वक पूरा हो गया था। मैंने चारों और नज़रें दौड़ाईं शाम की मीटिंग के सभी साथी अलग-अलग वहीं बेठे थे। 

रोज़ाना की तरह बाबा 9:30 पर दरबार में प्रकट हुए। जनसमूह ने उनकी जयजयकार की। बाबा ने आकाश में नित्य की भाँति देखते हुए बालगोपाल को प्रणाम किया, कुछ बातें कीं और आवाज़ लगा दी—रामजी जाट गाँव वाले!  . . . रामजी जा रहे थे। फिर उनके बाद और तीन-चार लोगों के बुलावे आते रहे। मैं बेसब्री से भोपाल के दिनकर राव उर्फ़ शम्भू के बुलावे का इन्तज़ार कर रहा था। यदि मेरा अनुमान सही था तो निश्चित रूप से शम्भू को बुलाया जाना था और शम्भू को नहीं बुलाया जाता तो फिर हमारी योजना व्यर्थ होनी थी। 

मेरा दिल बल्लियों उछलने लगा, बाबा ने आवाज़ लगाई, “भोपाल से कोई भक्त आया है दिनकर राव—आ जाओ दिनकर राव।” 

उपस्थित जनसमुदाय की नज़रें घूम गईं कौन है दिनकर राव भोपाल से आने लगे भक्त। बाबा की ख्याति दूर दूर तक फैल गई थी। शम्भू ने मेरी और देखा मैंने इशारे में सर हिलाया और काला चश्मा लगाए शम्भू बाबा के सामने जाकर बैठ गया। बाबा ने आकाश में देखा कुछ सांकेतिक बातें कीं फिर मुस्कुराते हुए शम्भू की ओर घूमे, “भोपाल से आये हो दिनकर राव?”

“हाँ महाराज,” शम्भू बोला, आसपास बैठे कुछ लोग शम्भू को देखने लगे। मैं भयभीत था कहीं हमारा प्लान फ़ेल ना हो जाए। मैंने ईश्वर से भी प्रार्थना की, “प्रभु सत्य की परीक्षा है। किसी संत का या धर्म का मख़ौल नहीं उड़ाना है।” 

बाबा जी फिर बोले, “बहुत परेशान है, बेटा पुलिस परेशान कर रही है। लाखों के घाटे में आ गया है तू?” 

“जी महाराज,” शम्भू ने भर्राते हुए कहा और अपना चश्मा निकाल लिया। शम्भू को नगर के लगभग सब लोग जानते थे। उपस्थित लोगों के चेहरों पर कुछ परेशानी और नासमझी के भाव आ रहे थ॥ उधर बाबा का दिव्य ज्ञान युक्त वार्तालाप जारी था। 

“लोहे का बिज़नेस है ना तेरा। और तेरी दूकान भी सील कर दी है पुलिस ने?” 

“हाँ महाराज बहुत परेशान हूँ। क्यों हो रहा है ये सब? मेरी मुसीबतें दूर करो महाराज,” कहते-कहते शम्भू हाथ जोड़े-जोड़े खड़ा हो गया और चारों और अपना चेहरा घुमाने लगा। 

बाबा फिर बोले, “बेटा ये तेरे परिवार द्वारा किये पापों का परिणाम है पर तू चिंता मत कर। मैं इसका उपाय भी बताऊँगा तुझे।”

बाबा का ये संवाद तो जारी था पर जनता की हैरानी बढ़ती जा रही थी। फुसफुसाहट होने लगी थी, “यार ये तो शम्भू लग रहा है— अरे ये तो शम्भू ही है शायद।” 

तभी बाबा बोले, “तुझे बहुत बड़ा यज्ञ करना पड़ेगा। स्वर्ण दान करना पड़ेगा। मैं तेरा यज्ञ सफल करूँगा बेटा दिनकर राव।” 

“जी बाबा जी,” सारे जनसमूह के बीच खड़ा शम्भू अब मुस्कुराता हुआ कह रहा था। साथ ही वो अब हाथ जोड़े नाचने भी लगा था। जनता के बीच उठती आवाज़ें अब ज़ोर पकड़ने लगीं थी। ये क्या हो रहा है? ये क्या चल रहा है? ये तो शम्भू है—ये कोई भोपाल का व्यापारी नहीं है। 

अब बाबाजी भी कुछ परेशान से लगे, उन्हें समझ नहीं आया क्या माजरा है? तभी अगली पंक्ति में बैठे सेठ धनराज ने बाबाजी से पूछा, “बाबाजी ये भोपाल वाले का क्या नाम है?” 

बाबाजी ने कुछ संकोच से कहा, “दिनकर राव . . .”

तब तक आगे बैठे कुछ युवक खड़े हो चुके थे। 

“झूठ है, झूठ है, ये तो पाखंडी है!” 

बाबा कुछ समझें तब तक चारों तरफ़ शोर मचने लगा—बाबा झूठा है! बाबा झूठा है! 

बाबा को अब पता लग गया कि कुछ ग़लत हो गया है; उनकी पोल खुल रही है। अचानक उनकी नज़र पीछे वाले दरवाज़े की ओर गई, जहाँ से वे रोज़ाना प्रवेश करते थे। और उन्होंने उधर ही तेज़ी से भागने का इरादा किया लेकिन वहाँ सादी वर्दी में दो पुलिस वाले तैनात थे। उन्होंने बाबा का रास्ता रोक लिया इधर चढ़ावे के किनारे खड़े तीनों चेले भी भागने लगे, लेकिन नीचे खड़े चार पुलिस जवानों ने उन्हें भी दबोच लिया। पूरी छत पर अफ़रा-तफ़री का माहौल थ॥ ख़ूब शोरगुल और भागा-दौड़ी मची हुई थी। 

तभी थाना इंचार्ज रानावत वहाँ आ गए। हम उन्हें चढ़ावे के बग़ल में बने मंदिर में ले गए। भगवान् की मूर्ति के आसपास रखी तस्वीरों को हटाया तो बाबा जी का योग सिद्धि का जादू हमें दिखाई दिया—वो था एक बड़ा वाला टेप रेकार्डर! पुलिस ने उसे भी ज़ब्त किया। सारी कहानी सबको समझ में आ रही थी। बाबाजी के दरबार में जाने वाले ज़्यादातर भक्तों को उनके चेले भगवान् के दर्शन के बहाने बुला कर बिठाते थे। प्रसाद देते थे इसी दौरान उनसे उनके नाम, पते, आने का उद्देश्य, समस्या आदि पूछ लेते थे। सारी बातें रिकार्ड होकर बाबा तक पहुँच जाती थीं। उन्हीं में से कुछ लोगों को बाबा बुलाते थे और उनका नाम पता, उनकी समस्या और काल्पनिक निदान भी बताते थे। बस इसी तरह पिछले आठ दिनों से धर्म के नाम पर समस्याग्रस्त भोली जनता को बेवुक़ूफ़ बनाकर स्वार्थ सिद्धि की जा रही थी। 

आम जनता भी बिना ज़्यादा सोचे समझे धर्म के नाम पर बेवुक़ूफ़ बन रही थी। 

अगले दिन नगर के हर गली-मोहल्ले और चौराहे पर बाबाजी की पोल खुलने की चर्चाएँ थीं, और पिछले दिनों जिनको जिनको बाबा ने बुलाया था उनकी समस्या और निदान बताया था वे सब अपने घरों में बैठे शर्मिंदा हो रहे थे। 

उधर बाबा और उनके चेले पुलिस थाने में बैठे अपने छूटने की जुगत लगा रहे थे साथ ही सोच रहे थे आख़िर कहाँ ग़लती हो गई!

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