चंचल मन सँभाल कर, लक्ष्य लगा आकाश पर
काव्य साहित्य | कविता कुणाल बरडिया15 Oct 2019
चंचल मन सँभाल कर, लक्ष्य लगा आकाश पर
कर विजय निज द्वन्द्व पर, छू सफलता का शिखर
उठते रहना गिर गिर कर, रुक न जाना घबरा कर
दुश्मनों के वार पर, निराश न होना कभी हार पर
क्षण भर की निराशा को न मानना जीवन का सफ़र
कर विजय निज द्वन्द्व पर, छू सफलता का शिखर
मोह का चक्र तोड़ कर, अनसुलझे सवाल भूल कर
कुछ यादों को गौण कर, धारण मन में मौन कर
रख विश्वास अपने भीतर, लड़ना स्वयं से निरंतर
कर विजय निज द्वन्द्व पर, छू सफलता का शिखर
निज स्वार्थ शांत कर, जन साधारण को साथ कर
पवन सा गतिमान बन, निद्रा आराम त्याग कर
पुरुषार्थ से ही आगे बढ़, वीर रस से हर संकट हर
कर विजय निज द्वन्द्व पर, छू सफलता का शिखर
जगा हौसला अपने अन्दर, हर लक्ष्य को हासिल कर
पहचान ख़ुद की क्षमता, बन अपना भगवान प्रखर
जीवन की बुलंद कहानी, बस यूँही लिखना निरंतर,
कर विजय निज द्वन्द्व पर, छू सफलता का शिखर
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