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छोटा चिंटू

 

एक गाँव था और वहाँ रहता था, चिंटू। चिंटू अपने पापा के साथ रहता था। उसी गाँव में रहती थी टुनटुन चाची। चाची बहुत मीठे-मीठे तरबूज बेचती थी। एक दिन चिंटू को लगी ज़ोरों की भूख। वो गया चाची के पास और उसने चाची से कहा, “चाची . . . चाची मुझे एक तरबूज खाने के लिए दे दो, बहुत ज़ोर से भूख लगी है।” 

चाची ग़ुस्से से बोली, “चार पैसे लेकर आना, तब तरबूज खाना।”

चिंटू था तो नेक।
उसने सोची तरकीब एक। 
चिंटू ने सोचा क्यों न मैं भी पैसे कमाऊँ, 
अपनी तक़दीर चमकाऊँ। 
बेचूँगा मैं भी चीं-चीं करती चिड़िया, 
कहाँ से उसे पकड़कर लाऊँ, जो हो सबसे बढ़िया? 

चिंटू ने अपनी योजना के बारे में पापा को बताया। पापा ने देर नहीं की चिड़िया रखने के लिए झटपट एक पिंजरा बनाना शुरू किया। अभी पिंजरा बन ही रहा था। तभी चिंटू ने देखा कि चाची के आँगन में पीली भूरी छोटी-छोटी कई चिड़ियाँ घूम रही हैंl वो उनमें से तीन चिड़िया पकड़कर ले आया। 

अब वो उनको रखता कहाँ? उसने मन ही मन में सोचा क्या चिड़िया को पानी की बाल्टी में रख सकते हैं? बाल्टी में पानी था चिड़िया तो तैरना नहीं जानती थी। इसलिए उसने उसको बाल्टी में नहीं रखा। क्या चिड़िया को रस्सी से खूँटे में बाँध कर रख सकते हैं? लेकिन चिड़िया की गरदन और पैर बहुत छोटे थे? इसलिए वो उनको बाँध नहीं पाया। पिंजरा अभी भी पूरा बना नहीं था। चिंटू चिड़ियाँ कहाँ रखता? तभी उसकी नज़र चाची के टोकरे पर पड़ी। वो टोकरा उठा कर ले आया। चिंटू बहुत ख़ुश था, मन ही मन मुस्कुरा रहा था। उसने सोचा मैं टोकरे के नीचे चिड़िया को रख देता हूँ। जब पिंजरा बन जाएगा तब पिंजरे के अंदर चिड़िया को रखूँगा और उनको बाज़ार लेकर जाऊँगा। चिड़िया तो थी चंचल। चिंटू जैसे ही एक चिड़िया को टोकरे में रखता दूसरी उड़ने लगती। 

चिड़िया थी चतुर 
उड़ती थी फुर्र फुर्र। 

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