आषाढ़ का एक दिन और मल्लिका
काव्य साहित्य | कविता निवेदिता तिवारी1 Aug 2023 (अंक: 234, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
ऐसा नहीं कि रोक नहीं सकती थी तुम्हें
किन्तु मैं मल्लिका नहीं
याचक की तरह देखा उस दिन तुमको
समझ जाओगे क्यों, मैं मल्लिका नहीं
तुम्हारी प्रत्येक पराजय में
साथ खड़ी थी मैं शक्ति बन साथ तुम्हारे
तुम कथानायक की तरह थे द्वार पर मेरे
पर मैं मल्लिका नहीं
क्या है प्रेम जान जाते, तुम जो प्रेम करते
सुखद जीवन तुम खोज रहे
मेरे जीवन में कोई विलोम नहीं
हाँ तुम्हारी रचनाओं का आधार हो सकती हूँ
पर मैं मल्लिका नहीं
मैं जाती परछाईं को फिर विदा करती हूँ
मैं जीवन पथ पर सदैव ही संघर्ष करूँगी
किन्तु मैं मल्लिका नहीं
हाँ मैं एकांत में तुमको याद करूँगी
लेकिन अब इंतज़ार न करूँगी
मैं मल्लिका नहीं
तुम नायक की तरह अब मत आना
मेरे हाथ में टूटे हुए मेरे ख़्वाब हैं
चुभ जायेंगे तुम्हें भी
मैं सह लेती हूँ आज भी
तुम्हारी उदासीन प्रतिक्रियाएँ
किन्तु मैं मल्लिका नहीं
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