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वो वीर अभिमन्यु था . . . 

गुरु कृष्ण, पार्थ पिता जिसके
काल देख साहस के साथ खड़ा
अपार साहस और धैर्य से लड़ा
वो वीर अभिमन्यु था . . .!! 
 
सुभद्रा-सुत पिता तुल्य बलवान था
जन्म से पूर्व प्राप्त चक्रव्यूह का ज्ञान था, 
द्रोणाचार्य ने रचा चक्रव्यूह अभेद, 
धर्मराज करते थे खेद, 
चिंता और व्यथा मिटाकर
आगे बढ़ अर्जुन कुमार ने
कालचक्र में किया प्रवेश
अर्जुन के साथ कृष्ण, 
दुर्योधन के साथ कर्ण था
अकेले शत्रु नाश करने को चला
वो वीर अभिमन्यु था . . .!! 
 
संगिनी उत्तरा कहती रही–
क्या निज परिवार कोई कर्तव्य नहीं 
जहाँ मेरे नाथ अभिमन्यु का शौर्य
कह कर तात क्यों न पहुँचे वहीं
उत्तरा के नेत्र जल से भर गए होंगे, 
कैसे किया होगा विदा
जब निज प्राण समर को गए होंगे
उत्तरा स्वामी, परीक्षित पिता, सुभद्रा-अर्जुन पुत्र
धीरता से, गंभीरता से युद्धक्षेत्र को गया था
वो वीर अभिमन्यु था . . .!! 
 
वीर अभिमन्यु चक्रव्यूह केंद्र पहुँचा ताव से। 
देव गाने लगे वीर गीत बड़े उत्साह से, 
देव और पुरखे
करते पुष्प वर्षा थकते नहीं होंगे
स्वयं सूर्य अवाक्‌ होकर ठहरे वहीं होंगे
रथ का पहिया बना ढाल
लड़ता ही रहा टूटी तलवार सम्हाल
अर्जुन तनय एक, जयद्रथ सहचर सात थे
अन्याय को बना शस्त्र करते वो आघात थे
खींचकर खर-खड्ग करता रिपु नाश था
वो वीर अभिमन्यु था . . .!! 
 
एक क्षण को रण का विचित्र खेल
समझ दुर्योधन भी घबरा गया होगा
अबोध पर करने वार सकुचा गया होगा
द्रोण को देख उनको भी ललकारा था
धर्मयुद्ध कैसा शत्रुओं को धिक्कारा था। 
बारी-बारी सबने मानवता को तार-तार किया, 
युद्ध नियम को भूल गए, क्यों अत्याचार किया, 
पृथ्वी की गोद में वीर अभिमन्यु सोया था
देख उसको कण-कण रोया था
सुभद्रानंदन शक्ति चंदन विलीन था
वो वीर अभिमन्यु था . . .!! 
 
वीरता कब
घटना, समय और आयु की परिधि में रहती है
शौर्य पौरुष है, कर्म है, धर्म है, यही हो भाग्य
गीता भी यही कहती है
जो संघर्ष करता रहा सदैव वीर था
हाँ वो ही वीर अभिमन्यु था
हाँ वो ही वीर अभिमन्यु था। 

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