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हे पार्थ . . .

हे पार्थ फिर उठो..
शस्त्र धरो और युद्ध करो
कर्मों से अपना जीवन शुद्ध करो
हो चुका है शंखनाद
करो अपने सखा कृष्ण को याद
हे पार्थ फिर उठो, शस्त्र धरो युद्ध करो . . .
 
सम्मुख है अंधकार की सेनाएँ
कैसी हलचल कौन बतलाए
जाने क्यों कृष्ण अब तक न आए
जिसके संग हो वासुदेव
साथ आए देव स्वयमेव
हो जाता है जब हृदय विमुख
क्यों नहीं केशव सम्मुख
हे पार्थ धैर्य धरो और युद्ध करो . . .
 
हरि ने तो गीता का सार दिया 
पार्थ तुमने सत्कर्म का संसार दिया
नदियों सा प्रवाह, हिमालय सा ठहराव देखो
सब मोह लालच निरुद्ध करो
मंदिर मस्जिद का मिटा दो भेद
ग़रीबी, सांप्रदायिकता, अशिक्षा न हो खेद
विजय पथ को न अवरुद्ध करो 
हे पार्थ फिर उठो और युद्ध करो . . .
 
जब हो अन्याय कहीं
खो जाए न्याय कहीं
धर्म छुप जाए कोने में 
समय न गँवाना रोने में
चक्रधर को कर याद
श्रेष्ठ क्षत्रिय धर्म निभाना
देख तुम्हारा पुरुषार्थ मुरलीधर को है आना
शोर में सुर संगीत सुनाना
हे धरा के वीर हे अर्जुन
तुमको सारथी का आदेश है
उठो यह वीरों का देश है
अब न यूँ क्षुब्ध रहो
हे पार्थ उठो और युद्ध करो . . .
 
उन्नति के बाद क्षरण नहीं है जीवन 
शौर्य होगा शस्त्र, दो वचन
भुजबल पर अपने गर्व करो
अब न करो प्रलाप
कैसा है यह संताप
निशदिन सूर्य निकलता है
संग तुम्हारे सारथी जो चलता है
उठो जागो बढ़ो . . .
हे पार्थ अब युद्ध करो . . .

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टिप्पणियाँ

Bharti Parimal 2021/05/03 12:31 PM

बहुत सुंदर रचना और भावपूर्ण अभिव्यक्ति...

Priya Sharma 2021/03/03 01:52 PM

Bahut Sunder Rachna

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