छोटा सा ब्रेक
कथा साहित्य | लघुकथा दीप्ती देशपांडे गुप्ता15 Feb 2021 (अंक: 175, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
देविका एक बहुत बड़ी कंपनी की उच्च पद पर कार्यरत लड़की थी। ऑफ़िस, घर, बच्चे और पति इन्हीं सब में जूझते-जूझते उसकी ज़िन्दगी कट रही थी कि एक दिन उसके मैनेजर ने एक आवश्यक ट्रेनिंग के लिए एक हफ़्ते के लिए सिडनी जाने के लिए पूछा और अचानक उसके मन में बड़ा सा लड्डू फूटा। उसने एक दिन का समय माँगा, घर पर अपने पति और माता-पिता से सहायता और बच्चों की व्यवस्था तय कर के वो चल पड़ी।
बड़ा सा लड्डू ये था कि एक दिन पहले ही उसे पता चला था की उसका एक बहुत पुराना दोस्त शिशिर भी सिडनी पहुँच रहा है। वे दोनों बचपन के बहुत क़रीबी पड़ोसी थे। देविका की तरह शिशिर भी अपनी गृहस्थी में बहुत व्यस्त और ऊँचे पद की नौकरी की वज़ह से तनावग्रस्त रहता था।
शिशिर और देविका में एक बात जो समान थी वो ये कि इतने साल हो गए थे दोनों को देश छोड़े फिर भी अपनी गली से ज़्यादा प्यारी जगह उन्हें कहीं नहीं लगती थी . . . १५ साल के अंतराल के बाद वाटस अप्प के माध्यम से दोनों कुछ महीने पहले ही जुड़े थे। उन दोनों में एक बहुत ही प्यारा रिश्ता था जो ना दोस्ती था और ना ही प्यार।
दोनों ने पूरे हफ़्ते की सारी मीटिंग्स के मध्यांतर के दौरान और शाम को होटल लौटने से पहले मिलने का तय कर लिया था।
देखते-देखते वो समय आ गया जब वे दोनों इतने सालों बाद आमने-सामने थे। बहुत ख़ुशी से एक दूसरे से वो मिले, पूरा हफ़्ता ढेर सारी बातें ही बातें की। ऐसी बातें जिनका उन दोनों के वर्त्तमान से कोई सम्बन्ध नहीं था। उनकी बचपन की यादें, गली के लोगों की बातें जिन्हें वो दोनों "गली-समाचार" कहते थे। एक दूसरे को चिढ़ाना, बच्चों जैसा लड़ना, गली के घरों से ले कर तो पेड़-पौधों तक सब-कुछ इतना अच्छे से याद था जैसे दोनों सीधे इंडिया के अपने घर से सिडने आये हैं। वो पूरा हफ़्ता दोनों बहुत खुश थे. . .
ऑफ़िस का काम, बच्चों की पढ़ाई, घर की ई.एम.आई. (घर की किश्त) पति-पत्नी वाली बातें जैसे कोई विषय ही नहीं निकले. . .
ऐसे लगा मानों दोनों को आम ज़िन्दगी से एक "छोटा सा ब्रेक" मिल गया हो। ऐसा ब्रेक जो आज के इस तनाव ग्रस्त आग जैसे दिनचर्या में सावन की बारिश का मलहम सा लगा गया। उस एक हफ़्ते में मान लो दोनों ने बरसों से मन में दबी हँसी हँस ली, बरसों का दबा हुआ तनाव दिमाग़ से निकाल कर फेंक दिया और वापस एक नए जोश से अपनी-अपनी दैनिक उधेड़-बुन में गुम हो गए . . .
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