बिन पेंदी के लोटे
काव्य साहित्य | कविता दीप्ती देशपांडे गुप्ता15 Sep 2023 (अंक: 237, द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)
लोटे ये लोटे
बिन पेंदी के लोटे
लगते ये सच्चे
होते हैं खोटे
लोटे ये लोटे
बिन पेंदी के लोटे
मिलते ही तुमसे
कर लेते हैं यारी
निभालें जो दोस्ती
तो क़िस्मत तुम्हारी
लोटे ये लोटे
बिन पेंदी के लोटे
जुटाते हैं तुमसे
ख़बरें ये सारी
पूछो जो उनसे तो
कहे याददाश्त तंग हमारी
लोटे ये लोटे
बिन पेंदी के लोटे
ऊँटों के जैसी
इनकी है फ़ितरत
कोई ना जाने
कहाँ लेंगे करवट
लोटे ये लोटे
बिन पेंदी के लोटे
वादें हैं इनके
लोटे से ख़ाली
भरोसे मत रहना
है शब्दों की जाली
लोटे ये लोटे
बिन पेंदी के लोटे
बातों में इनकी
सिक्कों सी खनक
दिल ना लगाना
ये है बाहर कि चमक
लोटे ये लोटे
बिन पेंदी के लोटे
लुढ़के ये कहीं भी
बस तुम ना लुढ़कना
तुम तो हो अच्छे
बस अच्छे ही रहना
लोटे ये लोटे
बिन पेंदी के लोटे
लगते ये सच्चे
होते हैं खोटे
लोटे ये लोटे
बिन पेंदी के लोटे
लोटे ये लोटे
बिन पेंदी के लोटे
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