पापी पेट का सवाल है
काव्य साहित्य | कविता दीप्ती देशपांडे गुप्ता15 Sep 2023 (अंक: 237, द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)
भटक रहें हैं दुनिया भर में
ताक़ पे रख कर सुंदर सपने
चलते थे कभी चौड़े हो के
पर अब बदली चाल है
क्योंकि
पापी पेट का सवाल है
पेट का सवाल है
बनना चाहते थे कुछ और
दिल ने भी लगाया बड़ा सा ज़ोर
पर ज़िम्मेदारी हँस के बोली
तुझे बनना मालामाल है
क्योंकि
पापी पेट का सवाल है
पेट का सवाल है
चाहते थे हम शेर सा चलना
और दुनिया मुट्ठी में करना
पर जबसे दुनिया बसाई है
चलनी अब भेड़ सी चाल है
क्योंकि
पापी पेट का सवाल है
पेट का सवाल है
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