चिड़ियों का संवाद
कथा साहित्य | लघुकथा प्रो. मनोहर जमदाडे15 Aug 2022 (अंक: 211, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
एक चिड़िया पेड़ की छोटी टहनी पर बहुत सिकुड़कर बैठी थी। उसका साथी सुबह अन्न की खोज में बाहर गया था। वापस आने पर भी चिड़िया अपनी जगह पर ही बैठी देखकर उसे बड़ा अचरज हुआ। जो हमेशा खेलती थी, कूदती थी, शैतानी करती थी वह आज इतनी शांत कैसे? साथी से रहा नहीं गया। चिड़िया के पास जाकर चुप्पी का कारण पूछने लगा। बहुत मिन्नतें करने के बाद चिड़िया ने कहा, “कल रात से पेट बहुत ख़राब है,” उसका चेहरा सूख गया था।
“कल तुमने क्या खाया, जो पेट ख़राब हो गया?” साथी ने पूछताछ शुरू की।
“जो रोज़ खाती हूँ, वही खाया,” चिड़िया ने धीमी आवाज़ में उत्तर दिया।
“कल तुमने पानी कहाँ पर पी लिया था?” साथी ने जानना चाहा।
“पड़ोसी गाँव की नदी में,” चिड़िया ने जवाब दिया।
“अरे पगली, वहाँ क्यों गयी पानी पीने?” साथी ने डाँटते हुए कहा।
“क्यों? पहले तो हम उसी नदी का पानी पीते थे,” चिड़िया ने बिलकुल सहजता से कह दिया।
“पहली बात कुछ और थी, पहले उस नदी का पानी बहुत शुद्ध रहता था। पानी में कोई ख़राबी नहीं थी। अब तो नदी के पास से गुज़रना भी मुश्किल हो गया है, बहुत बदबू आती है। अब पानी पीने लायक़ कहाँ रहा है? आए दिन पानी प्रदूषित हो रहा है; ऐसा पानी पीएँगे तो पेट ख़राब नहीं होगा तो क्या होगा? आइंदा उस नदी का पानी कभी मत पीना,” साथी ने सारी हक़ीक़त बताकर हिदायत भी दी।
चिड़िया को अपनी ग़लती का एहसास हुआ तथा पेट ख़राब होने का कारण भी पता चला। उसने दुबारा उस नदी की ओर ही न जाने का निश्चय किया।
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