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पेड़ से रिश्ता 

छायाराम सुबह सुबह बड़ी जल्दी में था। हाथ में कुल्हाड़ी थी। वह तेज क़दमों से खेत की तरफ़ बढ़ रहा था। खेत में कुँए के पास खड़े छायादार आम के पेड़ के पास पहुँच गया। न आगे देखा न पीछे, पेड़ पर कुल्हाड़ी मारने ही वाला था; उसी समय पेड़ से आवाज़ आई, “रुक जाओ, छायाराम।”

पेड़ की आवाज़ सुनकर छायाराम हक्का-बक्का रह गया।

“छायाराम तुम्हें पता है, तुम्हारे पिताजी ने तुम्हारे जन्मदिवस पर कितनी ख़ुशी-ख़ुशी से मुझे लगाया था। हम दोनों भी साथ-साथ बड़े हुए। जितना प्यार पिताजी तुम्हें करते, उतना ही स्नेह मुझ पर बरसाते थे। तुम बचपन में कितनी शरारत करते थे मेरी छाया में। धूप के दिनों में तुम्हारा परिवार, आसपास के लोग मेरी छाया में बैठकर गप्पे हाँकते थे। कई बार कच्चे आम खाकर तुम अपने दाँत खट्टे करते थे। तुम्हारे परिवार की भावनाएँ मेरे साथ जुड़ी हैं। तुम्हारे जन्म से ही हमारा रिश्ता बना है। तुम मुझे नहीं परिवार की भावनाओं को काटने जा रहे हो।”

पेड़ की बातें सुनते-सुनते छायाराम की आँखों में शरारत भरा बचपन जाग गया। सचमुच ही आज वह पेड़ नहीं अपने परिवार की भावनाओं को काटने जा रहा था इस बात का उसे एहसास हो गया। पश्चाताप होने पर उसकी आँखें भर आईं। उसकी आँखों से आँसू निकलकर ज़मीन पर गिरने ही वाले थे उससे पहले कुल्हाड़ी हाथ से गिर गई। 

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