कोरोना का क़हर
काव्य साहित्य | कविता डॉ. रानी कुमारी15 Sep 2020 (अंक: 164, द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)
आज तक
ऐसी बीमारी न देखी
जिसने घरों में क़ैद कर दिया
'वर्क फ़्रॉम होम' का नारा दिया!
चिकित्सकों, पुलिसकर्मियों और
सफ़ाईकर्मियों को
इससे राहत न मिली।
उनकी मुश्किलें और बढ़ीं!
जिनको शिकायतें थीं
पति के घर में ना रुकने की
वे भी उनके रुकने से
फ़िलहाल ख़ुश नहीं हैं...
और जो आलसी थे
और आलसी हो गए!
सब घरों में...
फिर भी कुछ लोग
जान हथेली पर लेकर
घूम रहे हैं...
वो कोई और नहीं
निचले पायदान के लोग हैं
क्योंकि
यह बीमारी अमीरों की थी!
अब धीरे-धीरे
ग़रीबों को मार रही है...
कोरोना का क़हर
सबसे ज़्यादा टूटा है
श्रमजीवी तबक़े पर
जिनके पास
पीने को साफ़ पानी नहीं!
वह हाथ धोएँ कहाँ से...
ठेले रेहड़ी लगाने वाले
दिहाड़ी मज़दूरी करने वाले
लोगों का सारा काम
ठप्प हो गया
दो वक़्त की रोटी
लाएँ कहाँ से..
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