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दीपावली और पर्यावरण संरक्षण

 

दीपावली का त्योहार प्रकाश, सुख और समृद्धि का प्रतीक है, जो हमारे जीवन में नई ऊर्जा और उत्साह भरता है। यह त्योहार हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है और हमें जीवन के सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है। दीपावली की परंपराएँ हमें तात्कालिक ख़ुशियों की अनुभूति तो कराती हैं, लेकिन दीपावली की वर्तमान परंपराओं के साथ ही पर्यावरण पर भी काफ़ी प्रभाव पड़ता है, जो हमारे लिए चिंता का विषय है। व्यक्ति और समाज दोनों पर ही हानिकारक प्रभाव पड़ते हैं। ऐसे में यह ज़रूरी है कि हम दीपावली का त्योहार मना रहे हैं तो पर्यावरण संरक्षण का भी ध्यान रखें और इसके लिए हमें कुछ विशेष प्रयास करने होंगे। आवश्यकतानुसार हमें अपनी परंपराओं का पुनरावलोकन करना होगा। 

दीपावली के दौरान पटाखों के जलने से वायु प्रदूषण बढ़ता है, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। पटाखों से निकलने वाले हानिकारक रसायन और ध्वनि प्रदूषण भी पर्यावरण को नुक़्सान पहुँचाते हैं। इसके अलावा, पटाखों के अवशेष और अन्य कचरा भी पर्यावरण को प्रदूषित करते हैं। दीपावली के दौरान बढ़ते प्रदूषण के कारण वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) में भी गिरावट आती है, जो हमारे स्वास्थ्य के लिए ख़तरनाक हो सकती है। ख़ुशियों के लिए मनाए जाने वाले उत्सवों की परंपरा ही जब हमारे लिए ख़तरनाक बन जाएँ, तब हमें अपनी ख़ुशियाँ मनाने के तरीक़ों अर्थात्‌ परंपराओं के पुनरावलोकन और सुधार करने की आवश्यकता पड़ती है। स्वयं और समाज के हित में हमें आवश्यकतानुसार परिवर्तन के लिए तैयार रहना ही होगा। परिवर्तन प्रकृति का नियम है और अनिवार्य भी है। परंपराएँ भी परिवर्तन से अछूती नहीं रह सकतीं। 

हमें स्मरण रखना होगा कि समाज के लिए परंपराएँ महत्वापूर्ण तो हैं किन्तु सब कुछ नहीं हैं। हमें स्मरण रखना होगा, ”युग मनुष्य को नहीं बनाता, बल्कि मनुष्य युग का निर्माण करने की क्षमता रखता है। पुरुषार्थ ही युग का निर्माण करता है। एक पुरुषार्थी मनुष्य में ही लकीरों व परंपराओं को बदलने की सामर्थ्य होती है। एफ़.डब्ल्यू. राबर्टसन के अनुसार, ”स्थिति एवं दशा मनुष्य का निर्माण नहीं करतीं, यह मनुष्य है जो स्थिति का निर्माण करता है। एक ग़ुलाम स्वतन्त्र हो सकता है और सम्राट ग़ुलाम बन सकता है।” (It is not the situation which makes the man, but the man makes the situation. The slave may be a free man. The monarch may be a slave.) अर्थात्‌ हम केवल परंपराओं के ग़ुलाम बनकर अपने आप को और समाज को हानि नहीं पहुँचा सकते। आवश्यकतानुसार परंपराएँ बदल सकते हैं। परिस्थितियों के अनुसार पर्यावरण के अनुकूल परंपराएँ विकसित करने में ही हमारे पुरूषार्थ की सिद्धि है। 
पर्यावरण संरक्षण के लिए क्या करें? इस पर गंभीरता पूर्वक विचार कर व्यक्तिगत व सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता है। केवल विचार-विमर्श से काम नहीं चलेगा, प्रभावी कार्य योजना, क्रियान्वयन और निरन्तरता बनाए रखकर, अपने आपको और पर्यावरण को सुरक्षित और स्वस्थ बनाएँ रखने पर काम करते रहने की आवश्यकता है। दीपावली के दौरान पर्यावरण संरक्षण के लिए हम कुछ आसान क़दम उठा सकते हैं जो हमारे त्योहार को और भी अर्थपूर्ण बना सकते हैं:

पटाखों का कम उपयोग करें या पटाखों का उपयोग न करें

दीपावली पर हम पटाखों का प्रयोग न करें और अपने साथियों को भी इसके लिए तैयार करें। यही नहीं, इनकी मात्रा कम करने और ग्रीन पटाखों का प्रयोग करने से भी नुक़्सान को कम करने में मदद मिल सकती है। दीपावली के दौरान पटाखों का उपयोग कम करने से वायु और ध्वनि प्रदूषण को कम किया जा सकता है। इसके बजाय, हम दीये जलाकर और रंगोली बनाकर त्योहार का आनंद ले सकते हैं। एक-दूसरे को अभिवादन करके एक-दूसरे के गले लगकर भी हम अपनी ख़ुशियों को साझा कर सकते हैं। इससे न केवल पर्यावरण को नुक़्सान से बचाया जा सकेगा, बल्कि यह हमारे मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य के लिए भी फ़ायदेमंद होगा। 

दीये जलाएँ, बिजली की लाइट्स का उपयोग करें

दीये जलाने से जहाँ एक ओर पर्यावरण को नुक़्सान नहीं पहुँचता। दीए स्थानीय कलाकारों के लिए रोज़गार का सृजन भी करते हैं, जो स्वदेशी को बढ़ावा देकर देश की अर्थव्यवस्था को मज़बूत करने का काम भी करते हैं। देश की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना ही सही अर्थों में लक्ष्मी पूजन है। वहीं बिजली की लाइट्स का उपयोग भी ऊर्जा की बचत करने में मदद करता है, अगर हम एलईडी लाइट्स का उपयोग करें। इससे हमारे बिजली के बिल में भी कमी आएगी और पर्यावरण को भी लाभ होगा। 

पर्यावरण अनुकूल सामग्री का उपयोग करें

हमें परिस्थितियों के परिवर्तन का ध्यान रखने की आवश्यकता है। हमें जीवन के लिए पर्यावरण के अनुकूलन पर काम करना होगा अन्यथा हम दीपावली मनाने के लिए स्वस्थ नहीं रह सकेंगे। दीपावली के दौरान गिफ़्ट्स और सजावट के लिए पर्यावरण अनुकूल सामग्री का उपयोग करने से पर्यावरण को नुक़्सान कम होता है। हम प्राकृतिक सामग्री जैसे कि फूल, पत्तियाँ, और मिट्टी के बर्तनों का उपयोग करके सजावट कर सकते हैं। इससे न केवल पर्यावरण को लाभ होगा, बल्कि हमारी सजावट भी आकर्षक और अनोखी लगेगी। 

दीपावली के अवसर पर वृक्षारोपण करें

अपनी प्रसन्नता व्यक्त करने और उसे स्मरणीय बनाने का अच्छा तरीक़ा वृक्षारोपण हो सकता है। इससे आत्मिक प्रसन्नता की अनुभूति होगी। प्रसन्नता की अभिव्यक्ति के लिए दीपावली के अवसर पर वृक्षारोपण करना एक अच्छा विकल्प हो सकता है, जिससे पर्यावरण को लाभ पहुँच सकता है। वृक्ष वायु प्रदूषण को कम करने में मदद करते हैं और हमें ऑक्सीजन प्रदान करते हैं। इससे हमारे आसपास की वायु शुद्ध होगी और पर्यावरण भी स्वस्थ रहेगा। 

दीपावली प्रसन्नता का त्योहार है। यह हमें अन्धकार से प्रकाश की ओर जाने का सन्देश देता है। दीप जलाना प्रतीकात्मक रूप से अन्धकार से संघर्ष करने का सन्देश देता है। दीपावली अज्ञान रूपी अन्धकार पर ज्ञान रूपी प्रकाश की विजय की घोषणा करने का दिन है। आसुरी प्रवृत्तियों पर मानवीय मूल्यों की जीत का सन्देश देकर मार्गदर्शन करने का अवसर है। दीपावली का त्योहार हमें प्रकाश और सुख की ओर ले जाता है, लेकिन इसके साथ ही हमें पर्यावरण संरक्षण का भी ध्यान रखना चाहिए। आइए, दीपावली के अवसर पर पर्यावरण संरक्षण के लिए हम सब मिलकर प्रयास करें और एक स्वच्छ और स्वस्थ पर्यावरण का सतत विकास करें। हमें अपने छोटे-छोटे प्रयासों से पर्यावरण को बचाने की कोशिश करनी चाहिए, जिससे हमारा भविष्य सुरक्षित हो सके। इस दीपावली पर, आइए हम पर्यावरण के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी को समझें और उसके अनुसार कार्य करें। 

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