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दीपावली! परंपरा नहीं, कर्म की प्रेरणा का अवसर

 

 

दीपावली का पर्व निकट ही है। विजयादशमी और उसके बाद दीपावली आती है। दशहरा अर्थात्‌ विजयादशमी के बीच में अन्तर भले ही लगभग बीस दिन का रहता हो किन्तु दोनों को आपस में संबन्धित माना जाता है। विजयादशमी अर्थात्‌ बुराई के प्रतीक अमर्यादित रावण, जो राक्षसी संस्कृति का प्रतिनिधि माना जाता है, पर मर्यादा के प्रतीक राम की विजय का दिन है। संघर्ष के परिणाम का दिन है। कर्म की सफलता का दिन है। दूसरी ओर दीपावली एक नए उत्तरदायित्व को ग्रहण करने का दिन है। दीपावली के दिन मान्यता के अनुसार मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम ने अयोध्या के राजसिंहासन पर बैठकर एक राजा के कर्त्तव्यों को स्वीकार किया था। एक राजा के रूप में उन्हें क्या करना है? देश के प्रति उनके क्या कर्त्तव्य है? प्रजा में संस्कारों, आदर्शो व चरित्र के उच्च मानदण्डों के लिए उन्होंने अपने पारिवारिक जीवन को भी दाँव पर लगा दिया। व्यक्तिगत व पारिवारिक हितों पर सामाजिक हितों को अधिमान देने का प्रबंधन का सिद्धांत का जीवंत उदाहरण श्री राम का जीवन है। इस प्रकार का प्रजापालक राजा इतिहास में खोजने से भी शायद दूसरा न मिले। शासन व प्रशासन में बैठे व्यक्तियों के लिए मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम से अधिक प्रेरक व्यक्तित्व और कोई दूसरा नहीं हो सकता। राम का चरित्र पूजा करने के लिए नहीं, अनुकरण करने के लिए है। 

हम भारतीयों की सबसे बड़ी कमज़ोरी यह है कि हम कर्त्तव्य की अपेक्षा अधिकार को, विकास की अपेक्षा परंपरा को, व्यवहार की अपेक्षा सिद्धांत को, कर्म की अपेक्षा परिणाम को और पूर्वजों से प्रेरणा ग्रहण करने की अपेक्षा सेलीब्रेशन को प्राथमिकता देते हैं। विजयादशमी पर रावण का पुतला जलाते हैं और अपने आचरण में रावण के ही स्वार्थवादी चरित्र को भी ग्रहण करते हैं। केवल अपने क्षणिक मनोरंजन के लिए समाज और पर्यावरण दोनों को हानि पहुँचाकर उसे धर्म का नाम देकर अधार्मिक कर्म करते हैं। 

मर्यादा व आदर्शो की प्रेरणा ग्रहण करने के लिए विजयादशमी और दीपावली बहुत अच्छे अवसर हैं। राक्षसी और मानवीय संस्कृति के संघर्ष में मानवीय संस्कृति की विजय का प्रतीक विजयादशमी है। राक्षसी संस्कृति मतलब भोगवादी प्रवृत्ति, राक्षसी संस्कृति मतलब अधिकार की प्रवृत्ति, राक्षसी संस्कृति मतलब अवसरवादी प्रवृत्ति, राक्षसी संस्कृति मतलब प्रदर्शन व दिखाते की प्रवृत्ति से है। राक्षसी संस्कृति मतलब अपने लाभ के लिए पर्यावरण को हानि पहुँचाने की प्रवृत्ति। विचार करने की आवश्यकता है कि क्या हम विजयादशमी पर रावण बनाने में मानव प्रयोग के संसाघनों का प्रयोग करके और फिर उसमें आग लगाकर पर्यावरण को हानि पहुँचाकर राक्षसी संस्कृति का ही विस्तार नहीं कर रहे हैं? दीपावली पर उच्चतम न्यायालय के प्रतिबंध को धता बताते हुए पटाखों के माध्यम से पर्यावरण को हानि पहुँचाकर राक्षसी कृत्य नहीं कर रहे हैं? हमें विचार करने की आवश्यकता है कि हम रावण का अनुकरण कर रहे हैं या राम का? 

क्या विजयादशमी के दिन ऊँचे से ऊँचा रावण बनाने की प्रतियोगिता करने से भारतीय जनमानस कोई हित करती है? क्या पटाखों के जलाने से पर्यावरण को सुरक्षा मिलती है? क्या बीमार, बालक और वृद्ध ही नहीं सामान्य जन के लिए इन पटाखों के जलाने से प्राणवायु की शुद्धता सुनिश्चित होती है? क्या वनवासी राम ने राक्षसी संस्कृति से पर्यावरण की रक्षा के लिए ही संघर्ष नहीं किया था? सरकार के स्तर पर किए जाने वाले उपर्युक्त कार्यो व उनके प्रभावों से जनजीवन को सुखद व सुरक्षित बनाने का आश्वासन मिलता है? दशहरा और दीपावली से प्रेरणा लेकर कितने लोग अपने आचरण में श्री राम के चरित्र से प्रेरणा लेकर सुधार करते हैं? क्या जल, जंगल, ज़मीन और जीवन के लिए पुतला दहन और दीपावली पर अधिक से अधिक अनियंत्रित पटाखे जलाने से जीवन और पर्यावरण की सुरक्षा सुनिश्चित हो रही है? 

केवल परंपरा का निर्वाह हमें विकास के पथ पर अग्रसर नहीं कर सकता। किसी भी कर्म को करने से पूर्व यह विचार कर लेना चाहिए कि हम उसके वास्तविक भाव को समझकर उसे यथार्थ रूप में करें ताकि उसके यथार्थ परिणामों को प्राप्त कर सकें। विजयादशमी और दीपावली दोनों पर ही इन पर्वों के मूल भाव को समझते हुए अपने-अपने अन्दर पनपती राक्षसी प्रवृत्तियों पर नियंत्रण करने की आवश्यकता पर विचार करना चाहिए। मानव, मानवता और पर्यावरण की सुरक्षा के लिए श्री राम द्वारा किए गए कर्म से प्रेरणा ग्रहण कर अपने को कर्मपथ पर अग्रसर होना चाहिए। हमें राम की पूजा नहीं, उनके कर्मो को अपने आचरण में उतारकर उनके कर्म पथ पर चलकर अपने आपको उनका सच्चा अनुयायी सिद्ध करना चाहिए। 

आइए! इस विजयाशमी को केवल परंपरा के रूप में नहीं, यथार्थ रूप में अपनी दुष्प्रवृत्तियों पर विजय प्राप्त कर अपनी पारिवारिक व सामाजिक व्यवस्था को अधिक सुरक्षित करने के लिए संकल्प लें। बलात्कार की प्रवृत्ति, सामूहिक बलात्कार की प्रवृत्ति, बलात्कार के झूठे मामले दर्ज कराकर ब्लैकमेलिंग की प्रवृत्ति, नग्नता की प्रवृत्ति, दहेज़ और दहेज़ हत्याओं की प्रवृत्ति, दहेज़ के ख़िलाफ़ बने क़ानूनों का सहारा लेकर झूठे दहेज़ के केस लगाकर धंधेबाज़ औरतों की ब्लैकमेलिंग की प्रवृत्ति, विभिन्न प्रकार के ड्रग्स और नशे की प्रवृत्ति आदि सभी दुष्प्रवृत्तियाँ राक्षसी प्रवृत्तियाँ हैं। ये व्यक्ति, परिवार और समाज को अपूर्णीय क्षति पहुँचा रही हैं। से केवल महिलाओं के लिए ही नहीं, संपूर्ण मानवता की सुरक्षा और संरक्षा के लिए घातक हैं। इन पर विजय पाए बिना हमारे लिए विजयादशमी और दीपावली मनाना, वास्तविकता से दूर भागना है। इनके ख़िलाफ़ खड़े होकर हम संघर्ष करें। यह श्री राम का ही अनुकरण होगा। रावण का पुतला न जलाएँ, इन राक्षसी प्रवृत्तियों को जलाएँ। अपने अन्तर्मन को स्वच्छ करें और पर्यावरण के अनुकूल दीपावली का दीप जलाएँ। 

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