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दें प्रकाश मुक्ति, संबल का . . . 

 

(ज्योति पर्व दीपावली पर)
 
आओ मिलकर दीप जलाएँ, नेह, प्रेम, विश्वास का, 
मन का तिमिर हटाकर लाएँ, नव प्रकाश उल्लास का। 
आओ . . . 
 
शिथिल, अशक्त देह है जिनकी, 
कई व्याधि से घिरी हुई भी, 
निर्बल, निर्धन जो भी जन हैं, 
गहन निराशा से व्याकुल हैं, 
व्याधि मिटाएँ, शक्ति दिलाएँ, 
मन आशा के दीप जलाएँ, 
ला इंद्रधनुष उनके जीवन में, 
हर्ष और उल्लास का। 
आओ . . . 
 
अंधे, लूले, बहरे भाई, 
निशा सदा जीवन घिर आयी
जिन्हें साथ न कोई बिठाये, 
शोषित करे दुःख पहुँचाए, 
नवजीवन उनको हम दे दें, 
गले लगाएँ, आँसू पोंछें, 
अधरों पर चिर मुस्कानें ला, 
गूँजे स्वर मल्हार का। 
आओ . . .
 
जो क़ैदी हैं या अनाथ हैं, 
गहन तिमिर के सदा साथ हैं, 
अवसादों से घिरे हुए जो, 
घोर उपेक्षा भरे जिए जो, 
दें प्रकाश मुक्ति, संबल का, 
नेह, प्रेम, विश्वास सघन सा, 
रोम रोम आलोकित कर दें, 
मन में चिर विश्वास ला। 
 
आओ मिलकर दीप जलाएँ, नेह, प्रेम, विश्वास का, 
मन का तिमिर हटाकर लाएँ, नव प्रकाश उल्लास का। 

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