दिल तो चाहता है कि...
काव्य साहित्य | कविता डॉ. कीर्ति श्रीवास्तव15 Jun 2020 (अंक: 158, द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)
ऐसी दुनिया में जाऊँ
सारी मानवता एकजुट हो
ख़ुशियाँ ही ख़ुशियाँ हों
ग़मों का नाम ना हो
अपनत्व का पैग़ाम हो
ग़ैरों का नाम ना हो
दामन में फूल ही फूल हों
काँटों का नामोनिशान ना हो
ऐसे जहां में जाऊँ
अपनों का साथ मिले
अनमोल पलों को जियूँ
आसमान की सैर करूँ
हवाओं को मुट्ठी में भरूँ
पक्षियों के साथ रहूँ
बारिश की बूँदों को छूऊँ
नया सवेरा कुछ जोश भरे
नए नए सपनों को बुनूँ
लेकिन फिर
मन का क्या है
दूर तक चला जाता है
पर कुछ हाथ नहीं आता
चाहत तो बहुत है
साधन भी सीमित है
ये दुनिया कुछ ऐसी है
वापस भी यहीं आना है
मौक़ों को तलाशना है
अपने को सँवारना है
जो कुछ सामने है
उसे ही अच्छा बनाना है
इच्छाएँ तो दूर तक जाकर
वापस लौट आतीं हैं
अपनी यही धरती है
इसे ही स्वर्ग बनाना है
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