एक सूखा गुलाब
काव्य साहित्य | कविता विमला भंडारी14 Mar 2015
छूट गया हूँ मैं
पिछली कक्षा में पढ़ी
किताब की तरह
कर लिए गये
जिसके सारे सवाल हल
और पाठों का भी
दोहरान हो चुका
कई बार
परीक्षाओं के उपले
थेप चुका हूँ बार-बार
फेल और पास की
किश्ती खै चुका हूँ
जाने कितनी बार
हो चुके हैं सब बेमानी
इम्तहान और परिणाम
की घोषणा के साथ
बदल गया है साल
पीले पड़े गये कागज़ तमाम
किताब हुई पुरानी
जिस पर लगें है आज भी
निशान, अर्थों और महत्वपूर्ण
टिप्पणियों के साथ
पहले जैसे अब नहीं भरती
पुरानी किताब
फरफराहट का दंभ
आ गई है नई किताब
जो सहेज दी गई
भूरे कवर के साथ
नई किताब की चमक में
छिप गया
पिछले साल का कलेण्डर
जिसपर आया था कभी
वेलेन्टाईन एक बार
कह रहा है आज भी
भीतर रखा
एक सूखा गुलाब
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