इस सदी का चाँद
काव्य साहित्य | कविता विमला भंडारी14 Mar 2015
मुझे चाँद चाहिए
पर नहीं मिलता
सभी को चाँद
चाँद कर लेता है भेद
लड़के या लड़की का
बेटे या बेटी का
पुरुष या स्त्री का
सत्ता का सवाल
जब भी आया है
वो चुन लेता है किसी पुरुष को
कर्म की वज़ह से नहीं
लिंग की वज़ह से
दोयमी जीवन भोगती
आज की स्त्री कहती है-
क्या करूँगी आधा अधूरा
तो कभी गायब
अमावस का चाँद लेकर
देना है तो पूनम का चाँद दो
मैं कोई बीती सदी नहीं
जो तुम इतिहास दोहराओगे
चाँद को लेना या ना लेना
अब मेरी मर्जी से तय होगा
ज़िद पर उतर आयी तो
इतिहास बदल जायेगा
झोली में नया चाँद उतर आयेगा
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